यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 36
ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः
देवता - भगवान् देवता
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
67
भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मां धिय॒मुद॑वा॒ दद॑न्नः।भग॒ प्र नो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒ प्र नृभि॑र्नृ॒वन्तः॑ स्याम॥३६॥
स्वर सहित पद पाठभग॑। प्रणे॑तः। प्रने॑तरिति॑ प्रऽने॑तः। भग॑। सत्य॑राध॒ इति॒ सत्य॑ऽराधः। भग॑। इ॒माम्। धिय॑म्। उत्। अ॒व॒। दद॑त्। नः॒ ॥ भग॑। प्र। नः॒। ज॒न॒य॒। गोभिः॑। अश्वैः॑। भग॑। प्र। नृभि॒रिति॒ नृऽभिः॑। नृ॒वन्त॒ इति॑ नृ॒ऽवन्तः॑। स्या॒म॒ ॥३६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमान्धियमुदवा ददन्नः । भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम ॥
स्वर रहित पद पाठ
भग। प्रणेतः। प्रनेतरिति प्रऽनेतः। भग। सत्यराध इति सत्यऽराधः। भग। इमाम्। धियम्। उत्। अव। ददत्। नः॥ भग। प्र। नः। जनय। गोभिः। अश्वैः। भग। प्र। नृभिरिति नृऽभिः। नृवन्त इति नृऽवन्तः। स्याम॥३६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेश्वरप्रार्थनादिकविषयमाह॥
अन्वयः
हे भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भग! त्वं नोऽस्माकमिमां धियं ददत् सदुदव। हे भग! त्वं गोभिरश्वैर्नृभिस्सह नोऽस्मान् प्रजनय। हे भग! येन वयं नृवन्तः प्रस्याम तथा विधेहि॥३६॥
पदार्थः
(भग) ऐश्वर्ययुक्त! (प्रणेतः) पुरुषार्थं प्रति प्रेरक (भग) ऐश्वर्यप्रद! (सत्यराधः) सत्सु साधूनि राधांसि धनानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (भग) भजनीय! (इमाम्) वर्त्तमानाम् (धियम्) प्रज्ञाम् (उत्) (अव) रक्ष। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ॰६.३.१३५] इति दीर्घः। (ददत्) ददानः (नः) अस्माकम् (भग) विद्यैश्वर्यप्रद! (प्र) (नः) अस्मान् (जनय) प्रकटय (गोभिः) धेन्वादिभिः (अश्वैः) अश्वादिभिः (भग) भजमान! (प्र) (नृभिः) नायकैः (नृवन्तः) (स्याम) भवेम॥३६॥
भावार्थः
मनुष्यैर्यदा यदेश्वरस्य प्रार्थना विदुषां सङ्गः क्रियेत, तदा प्रज्ञैव याचनीयोतापि सन्तः पुरुषाः॥३६॥
हिन्दी (5)
विषय
अब ईश्वर की प्रार्थना आदि विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (भग) ऐश्वर्ययुक्त! (प्रणेतः) पुरुषार्थ के प्रति प्रेरक ईश्वर वा हे (भग) ऐश्वर्य के दाता! (सत्यराधः) विद्यमान पदार्थों में उत्तम धनोंवाले (भग) सेवने योग्य विद्वान् आप (नः) हमारी (इमाम्) इस वर्त्तमान (धियम्) बुद्धि को (ददत्) देते हुए (उत्, अव) उत्कृष्टता से रक्षा कीजिये। हे (भग) विद्यारूप ऐश्वर्य के दाता ईश्वर वा विद्वान्! आप (गोभिः) गौ आदि पशुओं (अश्वैः) घोड़े आदि सवारियों और (नृभिः) नायक कुलनिर्वाहक मनुष्यों के साथ (नः) हमको (प्र, जनय) प्रकट कीजिये। हे (भग) सेवा करते हुए विद्वन्! जिससे हम लोग (नृवन्तः) प्रशस्त मनुष्योंवाले (प्रस्याम) अच्छे प्रकार हों, वैसे कीजिये॥३६॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि जब-जब ईश्वर की प्रार्थना तथा विद्वानों का सङ्ग करें, तब-तब बुद्धि की ही प्रार्थना वा श्रेष्ठ पुरुषों की चाहना किया करें॥३६॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( भग ) = भजनीय प्रभो ! ( प्रणेतः) = सबके उत्पादक सत्कर्मों में प्रेरक ( भग ) = ऐश्वर्यप्रद ( सत्यराध: ) = धन के दाता ( भग ) = सत्याचरणी पुरुषों को ऐश्वर्यप्रद आप परमेश्वर ( न: ) = हमें ( इमाम् ) = इस ( धियम् ) = प्रज्ञा को ( ददत् ) = दीजिये, उसके दान से हमारी ( उदव ) = रक्षा कीजिये । हे ( भग ) = भगवन् ! ( गोभिः अश्वैः ) = गाय घोड़े आदि उपकारक पशुओं से हमारी समृद्धि को ( नः ) = हमारे लिए ( प्रजनय ) = प्रकट कीजिए ( भग ) = भगवन्! आपकी कृपा से हम लोग ( नृभिः ) = उत्तम पुरुषों से ( नृवन्तः ) = वीर मनुष्य युक्त ( प्र स्याम ) = अच्छे प्रकार होवें ।
भावार्थ
भावार्थ = हे भजनीय प्रभो! आप सारे संसार को उत्पन्न करनेवाले और सदाचारी अपने सच्चे भक्तों के लिए सच्चा धन ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। जिस बुद्धि से आप हम पर प्रसन्न होवें, ऐसी बुद्धि हमें देकर हमारी रक्षा करें। सारे सुखों की जननी उत्तम बुद्धि ही है। इसलिए हम आपसे ऐसी प्रज्ञा मेधा उज्ज्वल बुद्धि की प्रार्थना करते हैं। भगवन् ! गौ-घोड़े आदि हमें देकर हमारी समृद्धि को बढ़ाएँ और अच्छे-अच्छे विद्वान् और वीर पुरुषों से हमें संयुक्त करें, जिससे हमें किसी प्रकार का भी कष्ट न हो ।
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे भगवन्! परमैश्वर्यवन्!(भग) ऐश्वर्य के दाता संसार वा परमार्थ में आप ही हो तथा (भग प्रणेतः) आपके ही स्वाधीन सकल ऐश्वर्य है, अन्य किसी के अधीन नहीं, आप जिसको चाहो उसको ऐश्वर्य देओ सो आप कृपा से हम लोगों का दारिद्र्य छेदन करके हमको परमैश्वर्यवाला करें, क्योंकि ऐश्वर्य के प्रेरक आप ही हो । हे (सत्यराधः) भगवन् ! सत्यैश्वर्य की सिद्धि करनेवाले आप ही हो, सो आप (इमाम् भगम् नः ददत्) नित्य ऐश्वर्य हमको दीजिए- जो मोक्ष कहाता है उस सत्य ऐश्वर्य का दाता आपसे भिन्न कोई भी नहीं है। हे सत्यभग! पूर्ण ऐश्वर्य, सर्वोत्तम बुद्धि हमको आप दीजिए, जिससे हम लोग आपके गुणों का ग्रहण, आपकी आज्ञा का अनुष्ठान और ज्ञान–इनको यथावत् प्राप्त हों। हमको सत्यबुद्धि, सत्यकर्म और सत्यगुणों को (उदव) [उद्गमय प्रापय] प्राप्त कर, जिससे हम लोग सूक्ष्म से भी सूक्ष्म पदार्थों को यथावत् जानें (भग प्र नो जनय) हे सर्वैश्वर्योत्पादक! हमारे लिए ऐश्वर्य को अच्छे प्रकार से उत्पन्न कर । (गोभिः अश्वैः) सर्वोत्तम गाय, घोड़े और मनुष्य – इनसे सहित अनुत्तम' ऐश्वर्य हमको सदा के लिए दीजिए। हे सर्वशक्तिमन्! आपके कृपाकटाक्ष से हम लोग सब दिन (नृभिः नृवन्तः प्र स्याम) उत्तम- उत्तम पुरुष, स्त्री, सन्तान और भृत्यवाले हों। आपसे हमारी अधिक यही प्रार्थना है कि कोई मनुष्य हममें दुष्ट और मूर्ख न रहे तथा न उत्पन्न हो, जिससे हम लोगों की सर्वत्र सत्कीर्ति हो और निन्दा कभी न हो ॥ ११ ॥
टिपण्णी
१. अनुत्तम = सर्वोत्तम, अत्युत्तम, जिससे उत्तम और कोई नहीं ।
२. विशेष
विषय
प्रातः उपासना ।
भावार्थ
हे (भग) ऐश्वर्यवन्! राजन् ! हे (प्रणेत) उत्कृष्ट मार्ग में ले जाने वाले ! उत्तम न्याय के करने हारे ! हे (सत्यराध:) सज्जनों के योग्य धनैश्वर्यो के स्वामिन्! सत्य के पालक, सत्यधन ! तू (नः) हमें ( ददत् ) नाना ऐश्वर्य प्रदान करता हुआ (धियम् उद् भव) हमारे कर्मों और वृद्धि को उन्नत कर । अथवा (नः धियं ददत् उद् भव) हमें सद्बुद्धि और सत्कर्म की शिक्षा प्रदान करता हुआ उन्नत कर । हे (भग) ऐश्वर्यवन् ! (नः) हमें (गोभिः) वेदवाणियों, गौवों और (अश्वै:) विद्वानों और अश्वों से (प्र जनय) उन्नत कर । हे (भग) ऐश्वर्यवन्! हम (नृभिः) उत्तम कुलनायक और नेता पुरुषों से (नृवन्तः) उत्तम नेता पुत्र, भृत्य और सहायकों से युक्त (प्र स्याम) भली प्रकार हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः भगवान् । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
जीवन-यात्रा में धन का महत्त्व
पदार्थ
१. हे (भग) = ऐश्वर्य (प्रणेत:) = तू प्रकृष्ट नेता है, जीवन यात्रा को उत्तमता से ले चलनेवाला है। यह धन २. (सत्यराधः) = सत्य को सिद्ध करनेवाला है। यहाँ 'सत्य' सब उत्तम कर्मों का प्रतीक है, प्रत्येक उत्तम कार्य धन से ही सिद्ध होता है। यज्ञों के लिए, स्वध्याय के लिए, अन्य सभी उत्तम कार्यों के लिए धन की आवश्यकता है। ३. हे नेतृत्व देनेवाले, सत्य को सिद्ध करनेवाले (भग) = ऐश्वर्य ! (नः) = हमारी (इमाम् धियम्) = इस बुद्धि की (ददत्) = हमारी आवश्यकताएँ पूर्ण करते हुए (उदव) = रक्षा कर। जिस समय गरीबी के कारण नमक, तेल, ईंधन की चिन्ता सताती है तब यह बुद्धि को लुप्त कर देती है। ऐश्वर्य हमें इन चिन्ताओं से मुक्त करके स्वस्थ बुद्धिवाला करता है। ४. हे (भग) = ऐश्वर्य ! तू (नः) = हमारा (गोभिः अश्वैः) = उत्तम गौवों व घोड़ों से प्रजनय प्रकृष्ट विकास कर। धन के द्वारा हमारे घर गौवों व घोड़ोंवाले हो सकते है। ५. हे (भग) = ऐश्वर्य ! तेरे द्वारा हम (प्रनृभिः) = उत्तम मनुष्यों से (नृवन्तः) = मनुष्योंवाले (प्रस्याम) = प्रकर्षेण हों। सामान्यतः हम संसार में देखते हैं कि हम सम्पन्न हैं तो हमारा घर बन्धु बान्धवों से भरपूर रहता है, निर्धनता आई और सब गये और घर उजड़ा-सा प्रतीत होने लगता है। [ख] सम्पन्न होने की स्थिति में मैं आये गये मान्य अतिथियों का ठीक स्वागत कर पाता हूँ और वे मेरे यहीं निवास करते हैं। मैं गरीब हूँ तो उनके आतिथ्य की मुझे सुविधा नहीं होती और मेरा घर ऐसे मनुष्यों का निवासस्थान नहीं बनता।
भावार्थ
भावार्थ-धन नेतृत्व करता है, सत्य को सिद्ध करता है, बुद्धि को स्थिर रखता है, हमारी शक्ति व ज्ञान के विकास का कारण बनता है और हमारे घर को उत्तम पुरुषोंवाला बनाता है।
मराठी (3)
भावार्थ
माणसे जेव्हा जेव्हा ईश्वराची प्रार्थना व विद्वानांची संगती करतात तेव्हा तेव्हा त्यांनी बुद्धीची प्रार्थना किंवा श्रेष्ठ पुरुषांच्या संगतीची कामना करावी.
विषय
पुढील मंत्रात ईश्वराची प्रार्थना केली आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (भग) ऐश्वर्यवान आणि (प्रणेतः) पुरुषार्था विषयी प्रेरणा करणारे परमेश्वर, हे (भग) ऐश्वर्याला, हे (सत्यराधः) सर्व पदार्थांपैकी उत्तम धनाचे स्वामी, (भग) हे पूजनीय विद्वान, आपण (नः) आमच्या (इमाम्) या वर्तमान (धियम्) बुद्दीला (ददत्) अधिक वाढवीत जा. (उत, अव) आणि त्या बुद्धीचे रक्षण करा (ती पवित्र व विवेकपूर्ण रहावी) हे (भग) विद्यारूप ऐश्वर्याचे दाता ईश्वर अथवा हे विद्वान, आपण (गोभिः) गौ आदी पशुंनी तसेच (अश्विः) सुंदर स्वस्थ घोड्यांनी व वाहनांनी आणि (श्रृभिः) नायक, पालक व प्रशिक्षक मनुष्यांसह (नः) आम्हाला (प्र, जनय) अधिक संपन्न करा. हे (भग) सेवायोग्य विद्वान, ज्यायोगे आम्ही (नृवन्तः) अधिक मनुष्यांचा संग्रह वा संगठन करू शकू (प्रस्याम) संपादित होऊ शकू, तसे आपण करा, ही आमची प्रर्थना ॥36॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांनी ज्या ज्यावेळी ईश्वराची प्रार्थना करावी वा करतील आणि विद्वानांचा संग करतील, त्या त्या वेळी ईश्वराजवळ आणि विद्वांजवळ केवळ उत्तम पवित्र बुद्धीची याचना करावी आणि सदा श्रेष्ठजनांची संगत धरावी. ॥36॥
विषय
प्रार्थना
व्याखान
हे भगवन्ता! परम ऐश्वर्यदात्या! संसारात किंवा परमार्थात ऐश्वर्य तुझ्याच स्वाधीन आहे दुसऱ्या कुणाच्या नाही. तू कुणालाही ऐश्वर्य देऊ शकतोस. म्हणून तुझ्या कृपेने आमचे दारिद्र्य निर्मूलन होऊन आम्ही परम ऐश्वर्यवान होऊ दे. कारण ऐश्वर्याचा प्रेरक तूच आहेस. हे (सत्यराधः) भगवंता! सत्यरूपी ऐश्वर्याची सिद्धी करणारा तूच आहेस म्हणून तू आम्हाला सदैव ऐश्वर्य दे. मोक्षरूपी सत्य ऐश्वर्याचा दाता तुझ्याखेरीज दुसरा कोणी नाही ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वरा सत्यबुद्धीचे पूर्ण ऐश्वर्य तू आम्हाला दे. ज्यामुळे आम्ही तुझे गुणगान गावे व तुझ्या आज्ञेचे पालन करावे.आम्हाला सत्य बुद्धी. सत्यकर्म सत्य गुणांची [ उद्गमय प्रापय] प्राप्ती होऊ दे. त्यायोगे आम्ही सूक्ष्मातील सूक्ष्म पदार्थांना योग्य प्रकारे जाणावे. (भग प्र नो जनय) हे ऐश्वर्य निर्माण करणाऱ्या [ईश्वरा] आमच्यासाठी चांगल्या प्रकारे ऐश्वर्याची निर्मिती कर. सर्वोत्तम गाय घोडे, आणि माणसे यांच्यासह अत्युत्तम ऐश्वर्य तू आम्हाला दे. हे सर्वशक्तिमान! तुझ्या कृपेने आम्ही उत्तम पुरुष, स्त्री व पुत्र आणि सेवक इत्यादींनी युक्त असावे. तुला एवढीच प्रार्थना आहे की आमच्यामध्ये कुणीही माणूस दुष्ट व मूर्ख असता कामा नये. व अशी माणसे निर्माणही होता कामा नये. आमची सदैव सत्कीर्ती व्हावी, निंदा कधीही होऊ नये. ॥११॥
इंग्लिश (4)
Meaning
O Glorious God, Goader of men to action, Giver of wealth, Master of riches, fit for adoration, grant us wisdom and afford us Protection. O God, the Giver of knowledge, increase our store of kine and horses. O God, may we be rich in men and heroes.
Meaning
Lord of glory, lord of inspiration for advancement, lord of truth and beneficence, lord of light and knowledge, blessed us as you have with intelligence, we pray, save this intelligence of ours from sin and lead us to the vision of divinity. Lord of power and prosperity, help us grow with cows and horses, let us advance with manpower, bless us with men of vision and leaders of quality.
Purport
O God Almighty! O Possessor of all kinds of wealth! You are bestower of riches of both the spheres-mundane and spiritual. All the riches and wealth is under your control and of none else. You can bestow wealth and riches to whom you like. Therefore, by Your kindness destroy our poverty and make us very prosperous and wealthy, because you are the impeller to acquire wealth. Possessor of good fortune O God! You are the accomplisher of true wealth. He who desires to attain liberation, You alone are the Donor of that final Beatitude, none else, therefore, kindly grant us the Eternal wealth. O Possessor of true fortune! Bestow on us auspicious wealth and excellent intelligence, so that we may acquire the knowledge of your attributes and the ways to obey your commands correctly. Kindly endow us with true intelligence, right deeds and true virtues, so that we may be able to know the subtlest things in their true sense. O the Producer of all riches! Generate wealth and prosperity for us in plenty. Kindly bestow upon us excellent cows, horses, men and with these best riches-matchless wealth forever. O Omnipotent God! By your merciful offglance we may always have excellent men, women, springs and servants. In addtion to this, we pray to you that there may not be any wicked or foolish person among us. No such person should take birth in our families, so that our fame and glory should spread everywhere. There should be no defamation of us at all. Nobody should censure us.
Translation
O Lord gracious, the foremost guide to our sacred work, and faithful promiser of wealth, may you, granting our wishes, make our ceremony effective, and enrich us with wisdom and vitality. May we, O gracious Lord, be rich in leaders and followers. (1)
बंगाली (2)
विषय
অথেশ্বরপ্রার্থনাদিকবিষয়মাহ ॥
এখন ঈশ্বরের প্রার্থনাদি বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (ভগ) ঐশ্বর্যযুক্ত ! (প্রণেতঃ) পুরুষকারের প্রতি প্রেরণাদাতা ঈশ্বর বা (ভগ) হে ঐশ্বর্যের দাতা ! (সত্যরাধঃ) বিদ্যমান পদার্থ সকলের মধ্যে উত্তম ধনবানগণ (ভগ) সেবন যোগ্য বিদ্বান্ আপনি (নঃ) আমাদের (ইমাম্) এই বর্ত্তমান (ধিয়ম্) বুদ্ধিকে (দদৎ) প্রদান করিয়া (উত, অব) উৎকৃষ্টতা পূর্বক রক্ষা করুন । হে (ভগ) বিদ্যারূপ ঐশ্বর্য্যের দাতা ঈশ্বর বা বিদ্বান্ ! আপনি (গোভিঃ) গো আদি পশুসকল (অশ্বৈঃ) অশ্বাদি বাহন এবং (নৃভিঃ) নায়ক কুলনির্বাহক মনুষ্যদিগের সঙ্গে (নঃ) আমাদিগকে (প্র, জনয়) প্রকট করুন । হে (ভগ) সেবাকারী বিদ্বন্ ! যাহাতে আমরা (নৃবন্তঃ) প্রশস্ত মনুষ্য (প্রস্যাম) উত্তম প্রকার হই, সেইরূপ করুন ॥ ৩৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, যখন ঈশ্বরের প্রার্থনা তথা বিদ্বান্দিগের সঙ্গ করিবে তখন তখন বুদ্ধিরই প্রার্থনা বা শ্রেষ্ঠ পুরুষদিগের কামনা করিতে থাকিবে ॥ ৩৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ভগ॒ প্রণে॑ত॒র্ভগ॒ সত্য॑রাধো॒ ভগে॒মাং ধিয়॒মুদ॑বা॒ দদ॑ন্নঃ ।
ভগ॒ প্র নো॑ জনয়॒ গোভি॒রশ্বৈ॒র্ভগ॒ প্র নৃভি॑নৃর্বন্॒তঃ॑ স্যাম ॥ ৩৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ভগ ইত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । ভগবান্ দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
ভগ প্রণেতর্ভগ সত্যরাধো ভগেমাং ধিয়মুদবা দদন্নঃ ।
ভগ প্রণো জনয় গোভিরশ্বৈর্ভগ প্রনৃভির্নৃবন্তঃ স্যাম ।।৪৬।।
(যজু ৩৪।৩৬)
পদার্থঃ হে (ভগ) ভজনীয় প্রভু! (প্রণেতঃ) সবার উৎপাদক সৎকর্মের প্রেরণাদাতা, (ভগ) ঐশ্বর্য প্রদাতা, (সত্য রাধঃ) ধনের দাতা, (ভগ) সত্যাচরণকারী ব্যক্তিদের ঐশ্বর্যপ্রদাতা, তুমি পরমেশ্বর (নঃ) আমাদের (ইমাম্) এই (ধিয়ম্) প্রজ্ঞা (দদৎ) দাও, এই দান দ্বারা আমাদের (উৎ অব) উৎকৃষ্টতার সাথে রক্ষা করো। হে (ভগ) ভগবান! (গোভিঃ অশ্বৈঃ) গরু, ঘোড়াসহ সকল উপকারক পশুসমূহ দ্বারা আমাদের সমৃদ্ধিকে (নঃ) আমাদের জন্য (প্রজনয়) প্রকট করো। (ভগ) ভগবান! তোমার কৃপা দ্বারা আমরা (প্র নৃভিঃ) উত্তম পুরুষসমূহ দ্বারা (নৃবন্তঃ) বীর মনুষ্য যুক্ত (প্র স্যাম) ভালোভাবে হই ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে ভজনীয় পরমেশ্বর! তুমি সমস্ত সংসারের উৎপন্নকারী এবং সদাচারী ভক্তদের ধন ঐশ্বর্য প্রদান করো। যে বুদ্ধি দ্বারা তুমি আমাদের উপর প্রসন্ন হও, সে বুদ্ধি দান করে আমাদের রক্ষা করো। উত্তম বুদ্ধিই সর্বসুখের জননী। আমরা তোমার কাছে ঐরূপ প্রজ্ঞা, মেধা, উজ্জ্বল বুদ্ধির প্রার্থনা করছি। ভগবান! গরু, ঘোড়া ইত্যাদি আমাদের প্রদান করে আমাদের সমৃদ্ধ করো এবং বিদ্বান ও বীর ব্যক্তিদের সাথে আমাদের যুক্ত করো যেন কখনো আমাদের কোনো কষ্ট না হয়।।৪৬।।
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे भगवन् ! परमैश्वरर्यवन् ! भग= ऐश्वर्य दाता संसार मा वा परमार्थ मा तपाईं नै हुनुहुन्छ तथा भग प्रणेतः तपाईं कै स्वाधीन नै सकल ऐश्वर्य छ, अन्य कसैको अधीन छैन, तपाईं जसलाई चाहनु हुन्छ तेसलाई ऐश्वर्य दिनुहुन्छ, तपाईंले कृपा गरी हाम्रो दारिद्रय छेदन गरी हामीलाई परम ऐश्वर्यवान् बनाई दिनु होस् किनकि ऐश्वर्य का प्रेरक तपाईं नै हुनुहुन्छ । हे सत्यराधः= भगवन् ! सत्य ऐश्वर्य को सिद्धिकर्ता तपाईं नै हुनुहुन्छ एसर्थ तपाईंले इमाम् भगम् नः ददत्= हामीलाई नित्य ऐश्वर्य दिनु होस्- जुन 'मोक्ष': कहलाउँछ तेस सत्य ऐश्वर्य का दाता तपाईं भिन्न अर्को कोही पनि छैन । हे सत्यभग ! तपाईंले हामीलाई पूर्ण ऐश्वर्य र सर्वोत्तम बुद्धि दिनु होस् । जसले हामीहरु तपाईंका गुण हरु को ग्रहण, तपाईंका आज्ञा हरु को पालन र ज्ञान मा यथावत प्राप्त हौं । हामीलाई सत्यबुद्धि, सत्यकर्म र सत्यगुण हरु उदव - [उद्गमय प्रापय] प्राप्त गराउनु होस् । जसले हामीहरु सूक्ष्म भन्दा पनि सूक्ष्म पदार्थ हरु लाई जानौं । भग प्रनो जनय= हे सर्व ऐश्वर्य उत्पादक ! हाम्रा लागी राम्रो गरी ऐश्वर्य उत्पन्न गरिदिनु होस् । गोभिः अश्वैः= सर्वोत्तम गोवंश घोडा र मानिस हरु ले सहित अनुत्तम सर्वोत्तम ऐश्वर्य हामीलाई सदा का लागि दिनु होस् । हे सर्वशक्तिमन् ! तपाईंको कृपाकटाक्षले हामीहरु सदादिन नृभिः नृवन्तः प्र स्याम= असल-असल पुरुष, स्त्री, सन्तान र भृत्य हरु ले सु-सम्पन्न हौं । तपाई संग हाम्रो यही विशेष प्रार्थना छ, कि हामी भित्र कुनै मानिस दुष्ट र मूर्ख न रहूँन् तथा न उत्पन्न हुन्, जसले हाम्रो सर्वत्र सत्कीर्ति होस् अरू कहिल्यै पनि निन्दा न होस् ॥ ११॥ -
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