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यजुर्वेद अध्याय - 35

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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 5
    ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    24

    स॒वि॒ता ते॒ शरी॑राणि मा॒तुरु॒पस्थ॒ऽआ व॑पतु।तस्मै॑ पृथिवि॒ शं भ॑व॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता। ते॒। शरी॑राणि। मा॒तुः। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒प॑ऽस्थे॑। आ। व॒प॒तु॒ ॥ तस्मै॑। पृ॒थि॒वि॒। शम्। भ॒व॒ ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता ते शरीराणि मातुरुपस्थ आ वपतु । तस्मै पृथिवि शम्भव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सविता। ते। शरीराणि। मातुः। उपस्थ इत्युपऽस्थे। आ। वपतु॥ तस्मै। पृथिवि। शम्। भव॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    कन्या किं कुर्यादित्याह॥

    अन्वयः

    हे पृथिवि! त्वं यस्यास्ते शरीराणि मातुरुपस्थे सविता आ वपतु, सा त्वं तस्मै पित्रे शम्भव॥५॥

    पदार्थः

    (सविता) उत्पत्तिकर्त्ता पिता (ते) तव (शरीराणि) आश्रयान् (मातुः) जननीवन्मान्यप्रदायाः पृथिव्याः (उपस्थे) समीपे (आ) (वपतु) स्थापयतु (तस्मै) (पृथिवि) भूमिवद्वर्त्तमाने कन्ये (शम्) सुखकारिणी (भव)॥५॥

    भावार्थः

    हे कन्ये! युष्माभिर्विवाहानन्तरमपि जनकस्य जनन्याश्च मध्ये प्रीतिर्नैव त्याज्या, कुतस्ताभ्यामेव युष्माकं शरीराणि निर्मितानि पालितानि च सन्त्यतः॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कन्या क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (पृथिवि) भूमि के तुल्य सहनशील कन्या! तू जिस (ते) तेरे (शरीराणि) आश्रयों को (मातुः) माता के तुल्य मान्य देनेवाली पृथिवी के (उपस्थे) समीप में (सविता) उत्पत्ति करनेवाला पिता (आ, वपतु) स्थापित करे, सो तू (तस्मै) उस पिता के लिये (शम्) सुखकारिणी (भव) हो॥५॥

    भावार्थ

    हे कन्याओ! तुमको उचित है कि विवाह के पश्चात् भी माता और पिता में प्रीति न छोड़ो, क्योंकि उन्हीं दोनों से तुम्हारे शरीर उत्पन्न हुए और पाले गये हैं इससे॥५॥

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    भावार्थ

    हे जीव ! (सविता) सबका प्रेरक राजा ( ते शरीराणि ) तेरे शरीरों को तेरे सम्बन्धी जनों को (मातुः) माता के समान पालक - पोषक पृथिवी के (उपस्थे ) ऊपर (आवपतु ) स्थापित करे । हे ( पृथिवि ) पृथिवी ! (तस्मै) उस प्रजाजन को तू (शं भव) कल्याणकारिणी हो । (२) जीव के प्रजनन पक्ष में — हे जीव उत्पादक पिता तेरे शरीरों को (मातृः) जननी के (उपस्थे) प्रजननाङ्ग में (आवपतु) बीज रूप से वपन करे । हे ( पृथिवि ) पृथिवी के समान आश्रय देने वाली माता ! उस गर्भगत जीव को तू (शं भव) शान्तिदायिनी हो । सविता, सूर्य पृथ्वी पर जीव जगत् के उत्पन्नः होने का कारण है । वही जल के साथ जीवन भी संचारित करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वायुसवितारो । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    माता की गोद में

    पदार्थ

    जब हम पिछले मन्त्र के अनुसार जीवन बिताने का प्रयत्न करते हैं तब हमारा जीवन बड़ा सुन्दर व शान्त बनता है। प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि (सविता) = सूर्य (ते) = तेरे (शरीराणि) = 'स्थूल, सूक्ष्म व कारण' सभी शरीरों को (मातुः) = इस पृथिवी माता की [ भूमिमाता पृत्रोऽहं पृथिव्या: 'भूमि माता है और मैं इस पृथिवी का पुत्र हूँ - अथर्व०] (उपस्थे) = गोद में (आवपतु) = ठीक ढंग से स्थापित करे [Fit in instill = वप् ] और हे (पृथिवि) = मातृस्थानापन्न भूमे ! (तस्मै) = उस सूर्य द्वारा तुझमें स्थापति पुरुष के लिए तू (शम् भव) = शान्ति देनेवाली हो। सूर्य के द्वारा रोगकृमियों का संहार होकर स्थूलशरीर नीरोग बनता है। स्वास्थ्य के ठीक होने पर मन की प्रसन्नता उत्पन्न होती है, मन की प्रसन्नता से मस्तिष्क ठीक काम करता है। इस प्रकार यह सूर्य सूक्ष्मशरीर का स्वास्थ्य देता है। आनन्दमयता की उत्पत्ति से कारणशरीर तो ठीक हो ही जाता है, स्थूल व सूक्ष्मशरीर भी अधिक स्वस्थ हो जाते हैं और उस समय हमें सच्ची शान्ति प्राप्त होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्य किरणों के सम्पर्क से हमारे सब शरीर प्रफुल्लित हों और हमें शान्ति प्राप्त हो ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे मुलांनो ! विवाहानंतरही माता व पिता यांच्यावरील प्रेम कमी करू नका. कारण त्या दोघांकडून तुमची शरीरे उत्पन्न झालेली आहेत व पोषणही झालेले आहे.

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    विषय

    कन्येने काय करावे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (पृथिवी) पृथ्वीप्रमाणे सहनशील कन्ये, (ते) तुझ्या (शरीराणि) आश्रयस्थान या शरीरात (मातुः) मातेप्रमाणे मा पृथ्वीच्या (उपस्थे) जवळ (समिता) तुझी उत्पत्ति करणारा तुझा पित (आ, वपतु) स्थापित करो. (तस्मै) त्या पित्याकरिता तू (शम्) शांतिकारिणी (भव) हो. (सविता सूर्य जसा पृथ्वीवर उत्पत्तिचे कारण आहे, तद्वत कन्येचा पिता भूमीवत् मातेमधे गर्भाची स्थापना करतो. अशा पिता व मातेसाठी मुला-मुलीनी सदा सुखकारिणी असावे.) ॥5॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे कन्यानो, तुम्हांस हे उचित कर्तव्य आहे की विवाहानंतरदेखील आईवडिलाविषयीचे प्रेम कमी होऊ देऊ नका, कारण की त्या दोघांच्या संयोगातून तुमचे शरीर उत्पन्न झाले आहे आणि त्यानीच तुमचे लालन-पालन केले आहे. ॥5॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O girl, forbearing like the earth, the father establishes thy asylum on the Earth, kind like a mother, Be pleasant unto him.

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    Meaning

    May Savita, lord of creation and generation, plant your bodies in the womb of the mother and seat you on her lap of love. Mother, mother earth, Mother Nature, be kind and gracious to this soul.

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    Translation

    May the impeller Lord commit your bodies to the bosom of the mother Earth. O mother Earth, may you be pleasing to this person. (1)

    Notes

    Mātuḥ upasthe, in the lap of the mother (Earth). Ac cording to the ritualists, the ashes and bones of the dead body are to be buried in the earth. Sam bhava, be pleasing to him.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কন্যা কিং কুর্য়াদিত্যাহ ॥
    কন্যা কী করিবে এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (পৃথিবি) ভূমি সদৃশ সহ্য শীলা কন্যা ! তুমি (তে) তোমার (শরীরাণি) আশ্রয়সকলকে (মাতুঃ) মাতাতুল্য মান্যপ্রদাত্রী পৃথিবীর (উপস্থে) সমীপে (সবিতা) উৎপত্তিকারী পিতা (আ, বপতু) স্থাপিত করিবে, সুতরাং তুমি (তস্মৈ) সেই পিতার জন্য (শম্) সুখকারিণী (ভব) হও ॥ ৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে কন্যাগণ ! তোমার উচিত যে, বিবাহের পশ্চাৎ মাতা ও পিতার প্রীতি ত্যাগ করিবে না কেননা সেই দুই জনের জন্য তোমার শরীর উৎপন্ন হইয়াছে এবং ইহার দ্বারা পালিত হইয়াছে ॥ ৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স॒বি॒তা তে॒ শরী॑রাণি মা॒তুরু॒পস্থ॒ऽআ ব॑পতু ।
    তস্মৈ॑ পৃথিবি॒ শং ভ॑ব ॥ ৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সবিতেত্যস্যাদিত্যা দেবা বা ঋষয়ঃ । বায়ুসবিতারৌ দেবতে । ভুরিগ্ গায়ত্রী ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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