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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मूत्र मोचन सूक्त
    46

    वि॒द्मा श॒रस्य॑ पि॒तरं॑ च॒न्द्रं श॒तवृ॑ष्ण्यम्। तेना॑ ते त॒न्वे॑३ शं क॑रं पृथि॒व्यां ते॑ नि॒षेच॑नं ब॒हिष्टे॑ अस्तु॒ बालिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विद्म । श॒रस्य॑ । पि॒तर॑म् । च॒न्द्रम् । श॒तऽवृ॑ष्ण्यम् ।तेन॑ । ते॒ । त॒न्वे । शम् । क॒र॒म् । पृ॒थि॒व्याम् । ते॒ । नि॒ऽसेच॑नम् । ब॒हिः । ते॒ । अ॒स्तु॒ । बाल् । इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा शरस्य पितरं चन्द्रं शतवृष्ण्यम्। तेना ते तन्वे३ शं करं पृथिव्यां ते निषेचनं बहिष्टे अस्तु बालिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म । शरस्य । पितरम् । चन्द्रम् । शतऽवृष्ण्यम् ।तेन । ते । तन्वे । शम् । करम् । पृथिव्याम् । ते । निऽसेचनम् । बहिः । ते । अस्तु । बाल् । इति ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (शरस्य) शत्रुनाशक (वा बाणधारी) शूर के (पितरम्) रक्षक, पिता (चन्द्रम्) आनन्द देनेवाले, चन्द्रमारूप उपकारी (शतवृष्ण्यम्) सैकड़ों सामर्थ्यवाले [परमेश्वर को] (विद्म) हम जानते हैं। (तेन) उस [ज्ञान] से.... ॥४॥

    भावार्थ

    (चन्द्र) आनन्द देनेवाला अर्थात् अपनी किरणों से अन्न आदि औषधों को पुष्ट करके प्राणियों को बल देता है। उस चन्द्रमा का भी आह्लादक वह परमेश्वर है, ऐसा ही मनुष्य को आनन्द देनेवाला होना चाहिये ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−चन्द्रम्। स्फायितञ्चीत्यादिना, उ० २।१३। इति चदि आह्लादने-रक्। चन्द्रश्चन्दतेः कान्तिकर्मणः निरु० ११।५। आह्लादकं देवं, हिमांशुम्। इन्दुम्। तद्वत् उपकारकम्। अन्यत्−यथा मं० १ ॥

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    विषय

    चन्द्र

    पदार्थ

    १. हम (शरस्य) = शर के (पितरम्) = पितृस्थानभूत (शतवृष्णयम्) = शतश: शक्तियों को जन्म देनेवाले (चन्द्रम्) = चन्द्र को (मुञ्ज) = जानते हैं। यह चन्द्रमा शरादि ओषधियों में रस का सञ्चार करता है और ओषधियों को पुष्ट कर उन्हें आहादजनक बनाता है। २. (तेन) = इस शर से (ते तन्वे) = तेरे शरीर के लिए (शं करम्) = मैं शान्ति करता हूँ। (ते पृथिव्याम्) = तेरे पृथिवीरूप शरीर में (निषेचनम्) = इस शर के रस का निषेचन होता है और इस निषेचन के द्वारा (बाल् इति) = क्योंकि यह प्राणशक्ति का सञ्चार करनेवाला है, अत: (ते बहिः अस्तु) = तरे शरीर का सारा दोष शरीर से बाहर हो जाए। इसप्रकार तीसरे मन्त्र की भावना ही यहाँ स्पष्ट रूप से प्रतिपादित हो गई है।

    भावार्थ

    शर प्राणशक्ति के सञ्चार के द्वारा हमारे शरीरों को निर्दोष बनाता है।

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    भाषार्थ

    [चन्द्रम् = चदि आह्लादने दीप्तौ च (भ्वादिः)। चन्द्र का प्रकाश आह्लादकारी तथा शीतल होने के कारण सुखों की वर्षा करता है, प्रदान करता है। शेष पूर्ववत्।]

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    विषय

    शर और शलाका का वर्णन ( वस्तिचिकित्सा ) ।

    भावार्थ

    ( शतवृष्ण्यं चन्द्रं शरस्य पितरं विद्म ) नाना बलशाली आह्लादजनक या चन्द्र को शर का पालक जानते हैं ( तेन० ) इत्यादि पूर्ववत् ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः पर्जन्यमित्रादयो बहवो देवताः। १-५ पथ्यापंक्ति, ६-९ अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health of Body and Mind

    Meaning

    We know Shara’s father, the Moon, its profuse herbal energy of a hundredfold vigour and vitality. Thereby I bring you health of body and tranquillity of mind. Let there be infusion of health and vigour, protection of vitality and cleansing of the system here on earth without delay.

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    Translation

    We all know the father of the reed, father to be the gladdener having hundred-fold generative power. With this (reed) I shall bring weal and comfort to your body. May there be your out-pouring on the earth. May it come out with a splash (Candra).

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    Translation

    We know the moon possessing hundreds of powers which is the protector of the Sharah. By using this etc.

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    Translation

    We know God, the Master of hundred powers, the pleasure afforded to all like the Moon, is the Father of the warrior, who wields the shaft. With that knowledge, may I bring health unto thy body. May thou prosper on the Earth. May all ills in thy body be soon removed.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−चन्द्रम्। स्फायितञ्चीत्यादिना, उ० २।१३। इति चदि आह्लादने-रक्। चन्द्रश्चन्दतेः कान्तिकर्मणः निरु० ११।५। आह्लादकं देवं, हिमांशुम्। इन्दुम्। तद्वत् उपकारकम्। अन्यत्−यथा मं० १ ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (শরস্য) শত্রুনাশক বীরের (পিতরং) রক্ষক (চন্দ্রং) আহ্লাদ দায়ক চন্দ্রমার তুল্য (শতবৃষ্ণ্যম্) বহু সামর্থযুক্ত পরমেশ্বরকে (বিদ্ম) আমরা জানি। (তেন) তাহাদ্বারা (তে) তোমরা (তন্বে) শরীরের জন্য (শং) আরোগ্য (করং) করি। (পৃথিব্যাং) পৃথিবীতে (তে) তোমার (নি সেচনম্) বহু সিঞ্চন হউক। (তে) তোমার (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বহির্গত (অদ্ভু) হউক । (ইতি) এই পর্যন্ত।।
    ‘চন্দ্ৰ’ চদি আহ্ল-দানে-রক্। চন্দ্র শ্চন্দতেঃ কান্তি কর্মণঃ। নিরুক্ত ১১.৫। আহ্লাদকং দেবং হিমাংশুম্।।

    भावार्थ

    শত্রুনাশক বীরের রক্ষক, জীবের আনন্দ দায়ক চন্দ্র তুল্য বহু সামর্থযুক্ত পরমেশ্বরকে আমরা জানি। সেই জ্ঞান দ্বারা তোমার শরীরকে নীরোগ করি। পৃথিবীতে তোমার বহুবিধ উন্নতি হউক। তোমার শত্রু দূরীভূত হউক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    বিদ্মা শরস্য পিতরং চন্দ্ৰং শতবৃষ্ণ্যম্। তেনা তে তন্বে ৩ শং করং পৃথিব্যাং তে নিসেচনং বহিষ্টে অস্ত্র বালিতি।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। পর্জন্যাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। পথ্যা পঙ্ক্তি

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    मन्त्र विषय

    (শান্তিকরণম্) শান্তির জন্য উপদেশ।

    भाषार्थ

    (শরস্য) শত্রুনাশক (বা বাণধারী) শৌর্যশালীর (পিতরম্) রক্ষক, পিতা (চন্দ্রম্) আনন্দ প্রদানকারী, চন্দ্রমারূপ উপকারী (শতবৃষ্ণ্যম্) শতাধিক সামর্থ্যবান [পরমেশ্বরকে] (বিদ্ম) আমরা জানি। (তেন্) সেই [জ্ঞান] দ্বারাই/থেকেই (তে) তোমার (তন্বে) শরীরের জন্য (শম্) আরোগ্য (করম্) আমি/আমরা প্রদান করি এবং (পৃথিব্যাম্) পৃথিবীতে (তে) তোমার (নিসেচনম্) অনেক সেচন [বৃদ্ধি] হোক এবং (তে) তোমার (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বাইরে (অস্তু) হোক, (ইতি) এটাই আকাঙ্ক্ষা ॥৪॥

    भावार्थ

    (চন্দ্র) আনন্দ প্রদানকারী অর্থাৎ নিজের কিরণ দ্বারা অন্নাদি ঔষধকে পুষ্ট করে প্রাণীদের বল প্রদান করে। সেই চন্দ্রমারও আহ্লাদক হলেন সেই পরমেশ্বর, মনুষ্যদের এমনই আনন্দদায়ী হওয়া উচিত ॥৪॥

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    भाषार्थ

    [চন্দ্রম্ = চদি আহ্লাদনে দীপ্তৌ চ (ভ্বাদিঃ)। চন্দ্রের প্রকাশ আহ্লাদকারী ও শীতল হওয়ার কারণে সুখের বর্ষণ করে, প্রদান করে। শেষ পূর্ববৎ।]

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