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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी पङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    13

    ग॒णेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग॒णेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गणेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गणेभ्यः। स्वाहा ॥२२.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    महाशान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (गणेभ्यः) समूहों के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१६॥

    भावार्थ

    स्पष्ट है ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(गणेभ्यः) समूहेभ्यः ॥

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    विषय

    तत्त्वदर्शन

    पदार्थ

    १. संसार के विषयों को तैर जानेवाले ये व्यक्ति ऋषि बनते हैं-तत्त्वद्गष्टा। (ऋषिभ्यः स्वाहा) = इन तत्त्वद्रष्टाओं के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। २. (शिखिभ्यः स्वाहा) = तत्त्वदर्शन के द्वारा उन्नति की शिखा [चोटी] पर पहुँचनेवाले इन शिखियों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। ३. [गण संख्याने] (गणेभ्यः स्वाहा) = संख्यान करनेवाले-प्रत्येक बात के उपाय को सोचनेवाले, इसप्रकार कर्तव्याकर्तव्य का विवेक करनेवाले इन ज्ञानियों के लिए हम शुभ शब्द कहते हैं ४. (महाणेभ्यः स्वाहा) = महान् ज्ञानियों की हम प्रशंसा करते हैं। इनकी प्रशंसा करते हुए इन-जैसा ही बनने के लिए यत्नशील होते हैं।

    भावार्थ

    हम तत्त्वद्रष्टा ऋषियों, तत्त्वदर्शन से उन्नति के शिखर पर पहुँचे हुए व्यक्तियों, उपाय व अपाय को सोचकर कर्तव्याकर्तव्य का विवेक करनेवाले ज्ञानियों व महान् ज्ञानियों का शंसन करते हुए उन-जैसा बनने का प्रयत्न करें।

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    भाषार्थ

    (गणेभ्यः) गणों के स्वास्थ्य के लिए, तदुचित हवियों द्वारा (स्वाहा) आहुतियां हों।

    टिप्पणी

    [सूक्त में प्रायः रोगनिवारण का वर्णन है। इस लिए “गण” शब्द द्वारा व्यक्ति के गणों का ग्रहण करना उचित है। यथा—ज्ञानेन्द्रियगण, कर्मेन्द्रियगण, पञ्चभूतगण, और तदुत्पन्न शरीर, पञ्चतन्मात्रागण, अन्तःकरणचतुष्टयरूपगण। इन गणों के स्वास्थ्य के लिए स्वाहा कहा है।]

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    विषय

    अथर्व सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (गणेभ्यः स्वाहा) गणों में पढ़े गये सलिल, शान्ति सूक्त (महागणेभ्यः स्वाहा) महागण, बड़े गणों में पढ़े गये पृथ्वीसूक्त आदि का भी उत्तम रीति से ज्ञान करो। (सर्वेभ्यः अंगिरोभ्यः विदगणेभ्यः स्वाहा) समस्त आंगिरसवेद के जानने हारे विद्वान् पुरुषों द्वारा देखे गये ज्ञानसूक्तों को भी उत्तम रीति से मनन करो। ‘पृथक् सूक्त’ अर्थात् १८वां काण्ड और ‘सहस्र सूक्त’ अर्थात् पुरुष सूक्त इनका भी ज्ञान उत्तम रीति से प्राप्त करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) समस्त ब्रह्मविषयक सूक्तों का स्वाध्याय करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chhandas

    Meaning

    Svaha for assemblies and organisations.

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    Translation

    Svaha to Ganas (assemblies of seers).

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    Translation

    Attain the knowledge of groups in worldly order and society and appreciate them.

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    Translation

    A thorough knowledge of suktas read in groups, like those of water, peace and security, etc., should be acquired.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(गणेभ्यः) समूहेभ्यः ॥

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