अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 127/ मन्त्र 7
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
33
राज्ञो॑ विश्व॒जनी॑नस्य॒ यो दे॒वोऽमर्त्याँ॒ अति॑। वै॑श्वान॒रस्य॒ सुष्टु॑ति॒मा सु॒नोता॑ परि॒क्षितः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठराज्ञ॑: । विश्व॒जनी॑नस्य । य: । दे॒व: । मर्त्या॒न् । अति॑ ॥ वै॒श्वा॒न॒रस्य॒ । सुष्टु॑ति॒म् । आ । सु॒नोत । परि॒क्षित॑: ॥१२७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
राज्ञो विश्वजनीनस्य यो देवोऽमर्त्याँ अति। वैश्वानरस्य सुष्टुतिमा सुनोता परिक्षितः ॥
स्वर रहित पद पाठराज्ञ: । विश्वजनीनस्य । य: । देव: । मर्त्यान् । अति ॥ वैश्वानरस्य । सुष्टुतिम् । आ । सुनोत । परिक्षित: ॥१२७.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो (देवः) देव [विजय चाहनेवाला पुरुष] (मर्त्यान् अति) मनुष्यों में बढ़कर [गुणी है], (विश्वजनीनस्य) सब लोगों के हितकारी, (वैश्वानरस्य) सबके नेता, (परिक्षितः) सब प्रकार ऐश्वर्यवाले (राज्ञः) उस राजा की (सुष्टुतिम्) उत्तम स्तुति को (आ) भले प्रकार (सुनोत) मथो ॥७॥
भावार्थ
सर्वहितकारी पुरुष से सब मनुष्य उत्तम गुणों का ग्रहण करें ॥७॥
टिप्पणी
७−(राज्ञः) तस्य शासकस्य (विश्वजनीनस्य) आत्मन्विश्वजनभोगोत्तरपदात् खः। पा० ।१।९। विश्वजन-खप्रत्ययः। सर्वजनेभ्यो हितस्य (यः) (देवः) विजिगीषुः (मर्त्यान्) मनुष्यान् (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य श्रेष्ठगुणैः-वर्तते (वैश्वानरस्य) सर्वनायकस्य (सुष्टुतिम्) कल्याणीं स्तुतिम् (आ) समन्तात् (सुनीत) मथध्वम् (परिक्षितः) क्षि ऐश्वर्ये-क्विप्। तुक्। सर्वत ऐश्वर्ययुक्तस्य ॥
विषय
विश्वजनीन राजा
पदार्थ
१. उस (राज्ञः) = सम्पूर्ण संसार का शासन [regulation] करनेवाले, (विश्वजनीनस्य) = सब मनुष्यों का हित करनेवाले, (वैश्वानरस्य) = सब मनुष्यों को उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले, (परिक्षितः) = समन्तात् निवास व गतिवाले [सर्वव्यापक] प्रभु की (सुष्टुतिम्) = उत्तम स्तुति को (आसुनोत) = उत्पन्न करो। प्रभु के गुणों का गायन करो। २. उन प्रभु का स्तवन करो (यः) = जोकि (देव:) = प्रकाशमय है तथा (अमान् अति) = अमरणधर्मा देवों को लाँघकर स्थित हैं। सब देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले वे ही 'महादेव' हैं-देवाधिदेव हैं।
भावार्थ
हम संसार के शासक, सबके हितकारी, सबको उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले, सर्वव्यापक प्रभु का स्मरण करें। वे प्रभु ही प्रकाशमय है, देवों के देव 'महादेव' हैं। सबको देवत्व प्राप्त करानेवाले हैं।
भाषार्थ
(यः) जो (देवः) परमेश्वर-देव, (अमर्त्यान्) शक्तियों की दृष्टि से, सभी अमर्त्यों का (अति) अतिक्रमण किये हुए हैं, उस (विश्वजनीनस्य) सर्वजनहितकारी, (वैश्वानरस्य) सब नर-नारियों में वर्तमान, (परिक्षितः) सर्वत्र निवासी सर्वगत, (राज्ञः) जगत् के महाराजा की (सुष्टुतिम् आसुनोत) भक्तिरस से भीनी स्तुतियाँ किया करो।
टिप्पणी
[परिक्षितः=परि+क्षि (निवासे, गतौ)+क्विप्; षष्ट्येकवचन।]
विषय
उत्तम राजा का स्वरूप ‘परिक्षित्’।
भावार्थ
(विश्वजनीनस्य) समस्त जनों के हितकारी (परिक्षितः) समस्त प्रजा की रक्षार्थ उनके चारों और रक्षक रूप से विद्यमान और अपने इर्द गिर्द प्रजा को बसा लेने वाले (वैश्वानरस्य), समस्त नेताओं और प्रजाजनों के स्वामी, अग्नि के समान सबको जीवनाधार, सूर्य के समान तेजस्वी (राज्ञः) उस राजा की (सुस्तुतिम्) उत्तम स्तुति (आसुनोत) करो, अथवा—(आशृणोत) श्रवण करो। (यः) जो (देवः) दानशील एवं विजयशील होकर (मर्त्यान् अति) मनुष्यों से बढ जाना हैं।
टिप्पणी
‘परीक्षित्’—अग्निर्वै परीक्षित्। अग्निर्हि इमाः प्रजा परिक्षेति अग्निं हिरि। इमाः प्रजाः परिक्षियन्ति। ऐत० ६। ५। ६॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ चतस्रः पारिक्षित्यः।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra
Meaning
O singer and celebrant, sing and intensify your praise of the universal ruler, loving benefactor of the world, who is one Lord refulgent immortal among mortals, universal spirit of humanity, present and vibrating in every form and particle of existence.
Translation
O men, you sing the praise of Parikshita, the year (Samvatsara) which wonderous one overpowers all the mortals, which is radioent and benificial for all and which carries away all the universe in its flow.
Translation
O men, you sing the praise of Parikshita, the year (Samvatsara) which wondrous one overpowers all the mortals, which is radioent and beneficial for all and which carries away all the universe in its flow.
Translation
Under the regime of the all-protecting king, the people are so well-off that the wife asks her husband, as to what she should bring for him, the yoghurt or the churned butter-milk (i.e., matha or lassi) or barley preparation (i.e., There is no dearth of milk and its products as well food grains in the state).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(राज्ञः) तस्य शासकस्य (विश्वजनीनस्य) आत्मन्विश्वजनभोगोत्तरपदात् खः। पा० ।१।९। विश्वजन-खप्रत्ययः। सर्वजनेभ्यो हितस्य (यः) (देवः) विजिगीषुः (मर्त्यान्) मनुष्यान् (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य श्रेष्ठगुणैः-वर्तते (वैश्वानरस्य) सर्वनायकस्य (सुष्टुतिम्) कल्याणीं स्तुतिम् (आ) समन्तात् (सुनीत) मथध्वम् (परिक्षितः) क्षि ऐश्वर्ये-क्विप्। तुक्। सर्वत ऐश्वर्ययुक्तस्य ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(যঃ) যিনি (দেবঃ) দেব [বিজয় অভিলাষী পুরুষ] (মর্ত্যান্ অতি) মনুষ্যেদের থেকে অধিক [গুণী], (বিশ্বজনীনস্য) সকলের হিতকারী, (বৈশ্বানরস্য) সবার নেতা, (পরিক্ষিতঃ) সর্ব প্রকার ঐশ্বর্যযুক্ত (রাজ্ঞঃ) সেই রাজার (সুষ্টুতিম্) উত্তম স্তুতি (আ) ভালোভাবে (সুনোত) মন্থন করো ॥৭॥
भावार्थ
সকল মনুষ্য সর্বহিতকারী পুরুষ হতে উত্তম গুণসমূহ গ্রহণ করুক ॥৭॥
भाषार्थ
(যঃ) যে (দেবঃ) পরমেশ্বর-দেব, (অমর্ত্যান্) শক্তির দৃষ্টিতে, সকল অমর্ত্যদের (অতি) অতিক্রমণ করে আছেন, সেই (বিশ্বজনীনস্য) সর্বজনহিতকারী, (বৈশ্বানরস্য) সকল নর-নারীদের মধ্যে বর্তমান, (পরিক্ষিতঃ) সর্বত্র নিবাসী সর্বগত, (রাজ্ঞঃ) জগতের মহারাজার (সুষ্টুতিম্ আসুনোত) ভক্তিরস দ্বারা স্তুতি করো।
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