अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 6
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
30
योऽना॒क्ताक्षो॑ अनभ्य॒क्तो अम॑णि॒वो अहि॑र॒ण्यवः॑। अब्र॑ह्मा॒ ब्रह्म॑णः पु॒त्रस्तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । अना॒क्ता॑क्ष: । अनभ्य॒क्त: । अम॑णि॒व: । अहि॑र॒ण्यव॑: ॥ अब्र॑ह्मा॒ । ब्रह्म॑ण: । पु॒त्र: । तो॒ता । कल्पे॑षु । सं॒मिता ॥१२८.६॥
स्वर रहित मन्त्र
योऽनाक्ताक्षो अनभ्यक्तो अमणिवो अहिरण्यवः। अब्रह्मा ब्रह्मणः पुत्रस्तोता कल्पेषु संमिता ॥
स्वर रहित पद पाठय: । अनाक्ताक्ष: । अनभ्यक्त: । अमणिव: । अहिरण्यव: ॥ अब्रह्मा । ब्रह्मण: । पुत्र: । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो (ब्रह्मणः) ब्रह्मा [वेदज्ञानी] का (पुत्रः) पुत्र (अब्रह्मा) अब्रह्मा [वेद न जाननेवाला, कुमार्गी] (अनाक्ताक्षः) अशुद्ध व्यवहारवाला और (अनभ्यक्तः) अविख्यात है। वह (अमणिवः) मणियों [रत्नों] का न रखनेवाला और (अहिरण्यवः) तेजहीन होवे, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित हैं ॥६॥
भावार्थ
जो कोई ज्ञानी का सन्तान होकर कुमार्गी मूर्ख होवे, वह निर्धन होकर निस्तेज हो जाता है, यह बात वेदशास्त्र से सिद्ध है ॥६॥
टिप्पणी
६−(यः) सन्तानः (अनाक्ताक्षः) अन्+आ+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त। अशुद्धव्यवहारयुक्तः (अनभ्यक्तः) अन्+अभि+अञ्जू व्यक्तौ-क्त। अव्यक्तः। अविख्यातः। (अमणिवः) वप्रकरणेऽन्येभ्योऽपि दृश्यते। वा० पा० ।२।१०९। वो मत्वर्थे। रत्नरहितः। निर्धनः (अहिरण्यवः) तेजोहीनः (अब्रह्मा) अवेदज्ञः (ब्रह्मणः) वेदज्ञस्य (पुत्रः) (तोता) ता+उ+ता। तान्येव तानि कर्माणि (कल्पेषु) शास्त्रविधानेषु (संमिता) प्रमाणितानि ॥
विषय
[कल्येषु संमिता] अमणिः अहिरण्यवान्
पदार्थ
१. (यः) = जो (अनाक्ताक्ष:) = आँख में अञ्जन लगाये हुए नहीं है, इसी प्रकार (अनभ्यक्त:) = अंगों पर जिसने उबटन नहीं लगाया है, (अमणिवः) = जिसने शरीर पर मणियों को धारण नहीं किया हुआ, (अहिरण्यवान्) = जो सोना, चाँदी आदिवाला नहीं है, अर्थात् बहुत धनी नहीं है, (अब्रह्मा) = चारों वेदों का ज्ञाता नहीं है, वह भी (ब्राह्मणः पुत्रः) = उस ब्रह्म का ही पुत्र है। २. (ता उता ता) = वे सब और निश्चय से वे सब (कल्पेषु संमिता) = अनुष्ठानों में [rites] यज्ञ आदि के क्रियाकलापों में समानरूप से सम्मिलित होने योग्य माने गये है [adapted]
भावार्थ
यज्ञ आदि कर्मों के विधि-विधानों में शरीर की बहुत सजावट व बहुत धन, व बहुत ज्ञान का होना आवश्यक नहीं है। पूर्व व पश्चिम में आहुति डालने के लिए बहुत ज्ञान अपेक्षित नहीं।
भाषार्थ
(यः) जिसने (अनाक्ताक्षः) अपनी आँखों में पवित्रता का अञ्जन नहीं लगाया, (अनभ्यक्तः) और जो अभिव्यक्त अर्थात् स्पष्ट और स्वच्छ हृदयवाला नहीं, (ब्रह्मणः) तथा चारों वेदों के ज्ञाता का (पुत्रः) पुत्र जोकि (अब्रह्मा) ब्रह्मा नहीं बना, (ता उ ता) वे सब (अमणिवः अहिरण्यवः) मणि तथा सुवर्ण आदि के दान के पात्र नहीं (कल्पेषु) कल्प-कल्पान्तरों में ये सब (संमिता) एक समान माने गये हैं।
विषय
योग्य और योग्य पुरुषों का वर्णन।
भावार्थ
(यः) जो (ब्रह्मणः) ब्रह्म के जानने वाले विद्वान् या बड़े पुरुष का (पुत्रः) पुत्र होकर भी (अब्रह्मा) स्वयं ब्रह्म, वेद का विद्वान नहीं है वह (अनाक्ताक्षः) बिना अंजी आंख के समान उत्तम रूप से देखने और विवेक करने में समर्थ नहीं है। (अनभ्यक्तः) शरीर पर तेल आदि न लगाये हुए के समान सुन्दर और चित्ताकर्षक, या स्वस्थ भी नहीं है। वह (अमणिः) मणि भूषणादि को न पहनने वाले के समान गुणहीन रहता है। वह (अहिरण्यवान्) सुवर्णादि धारण न करने वाले के समान निर्धन और ज्ञान और गुणों का दरिद्र रहता है। (ता उ ता) ये सब (कल्पेषु) क्रिया सामर्थ्यों में (सं-मिता) समान जाने गये हैं।
टिप्पणी
‘ब्रह्मणः पुत्रः’—विद्वान का पुत्र। विद्वान् से उत्पन्न पुत्र और शिष्य दोनों होते हैं। उत्पादकब्रह्मदात्रोर्गरीयान् ब्रह्मदः पिता। ब्रह्मजन्म हि विप्रस्य प्रेत्य चेह च शाश्वतम्॥ १४६॥ कामान्माता पिता चैवं यदुत्पादयतो मिथः। संभूतिं तस्य तां विद्याद् यद् योनावभिजायते॥ १४७॥ आचार्यस्त्वस्य यां जातिं विधिवद् वेदपारगः। उत्पादयति सावित्र्या सा सत्या सा जरामरा॥ १४८॥ ब्राह्मस्य जन्मनः कर्त्ता स्वधर्मस्य च शासिता। बालोऽपि विप्रो वृद्धस्य पिता भवति धर्मतः॥ अज्ञो भवति वै बालः पिता भवति मन्त्रदः॥ १५०॥ मातुरग्रेधिजननं द्वितीयं मौज्जिबन्धने। तृतीयं यज्ञदीक्षायां द्विजस्य श्रुतिचोदनात्॥ १६३॥ तत्र यद् ब्रह्मजन्मास्य मौजीबन्धनचिह्नितम्। तत्रास्य माता सावित्री पिता त्वाचार्य उच्यते॥ १७०॥ वेदप्रदानात् आचार्यं पितरं परिचक्षते। शूद्रेण हि समस्तावद् यावद्वेदे न जायते॥ १७२॥ (मनु० अ० २) पैदा करने वाले पिता से ब्रह्मज्ञान का देने वाला पिता बड़ा है। माता पिता पैदा कर लेते हैं सही, वह तो योनिमात्र से उत्पत्ति है परन्तु आचार्य उसको ‘सावित्री’ से उत्पन्न करता है, वह उसकी नित्य जाति है। ब्राह्म जन्म का देने वाला विद्वान् बालक भी बूढ़े का पिता है। अज्ञानी पुरुष बालक के समान है, ज्ञान देने वाला पिता है। उपनयन द्वितीय जन्म है। उसमें सावित्री माता और पिता आचार्य है। वेद प्रदान करने से आचार्य पिता है। वेद को बिना पढ़े पुरुष शूद है। ‘अमणिवो अहिरण्यवः’। इति शं० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ षट् जनकल्पाः। अनुष्टुभः॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Prajapati
Meaning
Whoever is a man of ungracious eye, whoever is not generous and kind at heart, whoever, though he be the son of a Brahmana, is un-learned and unpriest¬ like at yajna, all these are believed to be unworthy and undeserving of gold and jewel distinction in society and in learned programmes.
Translation
The son of the man who knows and practises the vedas and their teachings is Abrahma (the-Brahman or non-priesty) if he is with unanointed eyes and limbs is wearing no precious stone and is not refulgent with knowledge (Ahiranyayah) this is ordered in the rules.
Translation
The son of the man who knows and practices the vedas; and their teachings is Abrahma:(the-Brahman or non-priesty) if he is with yuanointed eyes and limbs is wearing no precious stone and is not refulgent with knowledge (Ahiranyayah) this is ordered in the rules.
Translation
All the following are considered of the same category in their capacitiesor qualities. The artisan wells or pools, whose water is unfit for drinking or have no ghats to enable persons to drink the water thereof, the wealth, person, who is not a donor; the girl, who is graceful, yet difficult to approach, or who is both unpleasant to look at as well as hard to be won over.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(यः) सन्तानः (अनाक्ताक्षः) अन्+आ+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त। अशुद्धव्यवहारयुक्तः (अनभ्यक्तः) अन्+अभि+अञ्जू व्यक्तौ-क्त। अव्यक्तः। अविख्यातः। (अमणिवः) वप्रकरणेऽन्येभ्योऽपि दृश्यते। वा० पा० ।२।१०९। वो मत्वर्थे। रत्नरहितः। निर्धनः (अहिरण्यवः) तेजोहीनः (अब्रह्मा) अवेदज्ञः (ब्रह्मणः) वेदज्ञस्य (पुत्रः) (तोता) ता+उ+ता। तान्येव तानि कर्माणि (कल्पेषु) शास्त्रविधानेषु (संमिता) प्रमाणितानि ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(যঃ) যে (ব্রহ্মণঃ) ব্রহ্মার [বেদজ্ঞানীর] (পুত্রঃ) পুত্র (অব্রহ্মা) অব্রহ্মা [অবেদজ্ঞ, কুমার্গী] (অনাক্তাক্ষঃ) অশুদ্ধ আচরণকারী এবং (অনভ্যক্তঃ) অবিখ্যাত হয়। সে (অমণিবঃ) মণিরহিত [রত্ন রহিত] এবং (অহিরণ্যবঃ) তেজহীন হবে/হোক, (তোতা) এই-এই কর্ম (কল্পেষু) শাস্ত্রবিধানে (সংমিতা) প্রমাণিত॥৬॥
भावार्थ
যদি কেউ জ্ঞানীর সন্তান হয়ে কুমার্গী মূর্খ হয়, সে নির্ধন ও নিস্তেজ হয়, এই কথা বেদশাস্ত্র দ্বারা সিদ্ধ॥৬॥
भाषार्थ
(যঃ) যে (অনাক্তাক্ষঃ) নিজের চোখে পবিত্রতার অঞ্জন লেপন করেনি, (অনভ্যক্তঃ) এবং যে অভিব্যক্ত অর্থাৎ স্পষ্ট এবং স্বচ্ছ হৃদয়সম্পন্ন নয়, (ব্রহ্মণঃ) তথা চার বেদের জ্ঞাতার (পুত্রঃ) পুত্র যে (অব্রহ্মা) ব্রহ্মা হয়নি, (তা উ তা) সেই/তাঁরা সবাই (অমণিবঃ অহিরণ্যবঃ) মণি তথা সুবর্ণাদির দানের পাত্র নয় (কল্পেষু) কল্প-কল্পান্তরে এঁরা সবাই (সংমিতা) এক সমান মান্য হয়েছে।
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