अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 9
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
16
सुप्र॑पा॒णा च॑ वेश॒न्ता रे॒वान्त्सुप्रति॑दिश्ययः। सुय॑भ्या क॒न्या कल्या॒णी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसुप्र॑पा॒णा । च । वेश॒न्ता । रे॒वान् । सुप्रति॑दिश्यय: ॥ सुय॑भ्या । कन्या॑ । कल्या॒णी । तो॒ता । कल्पे॑षु । सं॒मिता॑ ॥१२८.९॥
स्वर रहित मन्त्र
सुप्रपाणा च वेशन्ता रेवान्त्सुप्रतिदिश्ययः। सुयभ्या कन्या कल्याणी तोता कल्पेषु संमिता ॥
स्वर रहित पद पाठसुप्रपाणा । च । वेशन्ता । रेवान् । सुप्रतिदिश्यय: ॥ सुयभ्या । कन्या । कल्याणी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(च) जैसे (सुप्रपाणा) अच्छे पनघटवाला (वेशन्ता) सरोवर है, [वैसे ही] (सुप्रतिदिश्ययः) सुन्दर प्रतिदान करनेवाला (रेवान्) धनवान् और (सुयभ्या) अच्छे प्रकार मैथुनयोग्य [नीरोग होकर सन्तान उत्पन्न करने में समर्थ] (कल्याणी) सुन्दर (कन्या) कन्या है, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥९॥
भावार्थ
जल भरे सरोवर की उपयोगिता जल काम में आने से, धन की उचित व्यय करने से, और रूपवती स्त्री की वीर सन्तान उत्पन्न करने से होती है ॥९॥
टिप्पणी
९−(सुप्रपाणा) शोभनपानस्थानोपेतः (च) उपमार्थे (वेशन्ता) तडागः (रेवान्) धनवान् (सुप्रतिदिश्ययः) म० ८। योग्यप्रतिदानप्रापकः (सुयभ्या) म० ८। सुमैथुनयोग्या। आरोग्यात् सन्तानोत्पादनसमर्था। अन्यद् गतम् ॥
विषय
रेवान् सुप्रतिदिश्ययः
पदार्थ
१. (सुप्रपाणा च) = जैसे उत्तम प्याऊवाला (वेशान्त) = सरोवर है, उसी प्रकार (सुप्रतिदिश्ययः) = सुन्दर प्रतिदान करनेवाला (रेवान्) = धनी है। २. यह दाता धनी उस (कल्याणी कन्या) = सुन्दररूपवाली युवति के समान है जोकि (सुयम्या) = उत्तमता से मैथुन के योग्य व सन्तानोत्पत्ति के योग्य है। (ता उता ता) = वे सब और निश्चय से वे सब शास्वविधानों में समान माने गये हैं।
भावार्थ
उत्तम दान देनेवाला धनी शास्त्रों में उस सरोवर से उपमित होता है जो उत्तम पनघटवाला है तथा उस सुन्दर युवति से उपमित होता है जोकि उत्तम सन्तान को जन्म देने के योग्य है।
भाषार्थ
(च) और (सुप्रपाणा) उत्तम-प्याऊवाली (वेशन्ता) बावली, (सुप्रतिदिश्ययः) उत्तम-दानी (रेवान्) धनिक, तथा (कल्याणी) सबका कल्याण चाहनेवाली (सुयभ्या कन्या) विवाह योग्य कन्या—(ता उ ता) ये सब (कल्पेषु) कल्प-कल्पान्तरों में (संमिता) एक समान माने गये है—अर्थात् सामाजिक उपयोग के अनुकूल हैं।
विषय
योग्य और योग्य पुरुषों का वर्णन।
भावार्थ
(सुप्रपाणा च वेशन्ता) सरोवर उत्तम पान करने योग्य जल वाला, (रेवान्) धनाढ्य पुरुष (यः च) जो (सुप्रददिः) उत्तम सात्विक दान देने वाला और (कल्याणी कन्या) कल्याणकारी, शुभ, रूप, गुण लक्षणों से युक्त कन्या जो (सुयभ्या) सुखपूर्वक मैथुन करने योग्य अर्थात् गृहस्थ धर्मपालन करने योग्य, ‘सुभगा’ है (ता उ ता) वे वे सब पदार्थ (कल्पेषु) कर्म सामर्थ्यो में (सं-मिता) समान बतलाये गये हैं अर्थात् वे तीनों उत्तम और ग्रहण करने योग्य हैं।
टिप्पणी
‘सुप्रति दिश्ययः’ इति शं० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ षट् जनकल्पाः। अनुष्टुभः॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Prajapati
Meaning
A water resort with ample availability of water, a rich man with generous charity, a comely girl gentle and fertile for marriage and procreation, all these are believed to be equally worthy in society for noble social values and programmes.
Translation
The pools with good drinking places, the wealthy man who gives all gifts and the pretty girl who is cohabitable are treated to be of equal rank and utility in the good dealings.
Translation
The pools with good drinking places, the wealthy man who gives all gifts and the pretty gift who is cohabitable are treated to be of equal rank and utility in the good dealings.
Translation
The following are all considered equally useful. The wife or the queen, beloved and obedient; the soldier who readily goes to the war, the horse thatis fleet-footed and the person, strictly observing all rules and regulations.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(सुप्रपाणा) शोभनपानस्थानोपेतः (च) उपमार्थे (वेशन्ता) तडागः (रेवान्) धनवान् (सुप्रतिदिश्ययः) म० ८। योग्यप्रतिदानप्रापकः (सुयभ्या) म० ८। सुमैथुनयोग्या। आरोग्यात् सन्तानोत्पादनसमर्था। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(চ) যেমন (সুপ্রপাণা) উত্তম ঘাটবিশিষ্ট (বেশন্তা) সরোবর হয়, [তেমনই] (সুপ্রতিদিশ্যযঃ) সুন্দর প্রতিদানকারী (রেবান্) ধনবান এবং (সুয়ভ্যা) উত্তমরূপে মৈথুনযোগ্য [নীরোগ হয়ে সন্তান উৎপন্ন করতে সক্ষম] (কল্যাণী) সুন্দরী (কন্যা) কন্যা হয়, (তোতা) এই-এই কর্ম (কল্পেষু) শাস্ত্রবিধানে (সংমিতা) প্রমাণিত ॥৯॥
भावार्थ
জল পূর্ণ সরোবরের উপযোগিতা জলের ব্যবহারের মাধ্যমে, ধনের যথোপযুক্ত ব্যয় করার মাধ্যমে, এবং রূপবতী স্ত্রীর উপযোগিতা বীর সন্তান উৎপন্ন করার মাধ্যমে হয়॥৯॥
भाषार्थ
(চ) এবং (সুপ্রপাণা) উত্তম-ঘাটবিশিষ্ট (বেশন্তা) বাওলী, (সুপ্রতিদিশ্যযঃ) উত্তম-দানী (রেবান্) ধনী, তথা (কল্যাণী) সকলের কল্যাণ কামনাকারী (সুয়ভ্যা কন্যা) বিবাহ যোগ্য কন্যা—(তা উ তা) এঁরা সবাই (কল্পেষু) কল্প-কল্পান্তরে (সংমিতা) এক সমান মান্য হয়েছে—অর্থাৎ সামাজিক ব্যবহারের অনুকূল।
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