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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१
    13

    स॑मो॒हे वा॒ य आश॑त॒ नर॑स्तो॒कस्य॒ सनि॑तौ। विप्रा॑सो वा धिया॒यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽओ॒हे । वा॒ । ये । आश॑त । नर॑: । तो॒कस्य॑ । सनि॑तौ ॥ विप्रा॑स: । वा॒ । धि॒या॒ऽयव॑: ॥७१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समोहे वा य आशत नरस्तोकस्य सनितौ। विप्रासो वा धियायवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽओहे । वा । ये । आशत । नर: । तोकस्य । सनितौ ॥ विप्रास: । वा । धियाऽयव: ॥७१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (नरः) नर [नेता लोग] (समोहे) सङ्ग्राम में (वा) और (तोकस्य) सन्तान के (सनितौ) सेवन [पोषण, अध्यापन आदि] में (आशत) लगे हैं, वे (विप्रासः) विद्वान् (वा) और (धियायवः) बुद्धि की कामनावाले हैं ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य साङ्ग्रामिक नीति से प्रजा की रक्षा और सामान्य प्रबन्ध से विद्या की वृद्धि करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(समोहे) सम्+उहिर् अर्दने-घञ्। संग्रामे-निघ० २।१७। (वा) चार्थे (ये) (आशत) अशू व्याप्तौ-लुङ्, च्लेर्लोपः, आडागमः। व्याप्ता अभवन् (नरः) नेतारः (तोकस्य) अ० १।१३।२। तु वृद्धौ पूर्त्तौ च-कप्रत्ययः। सन्तानस्य-निघ० २।२। (सनितौ) षण सम्भक्तौ-क्तिन्। तितुत्रेष्वग्रहादीनामिति वक्तव्यम्। वा० पा० ७।२।९। इडागमः। सेवने। पोषणाध्यापनादौ (विप्रासः) विप्राः। मेधाविनः (वा) चार्थे (धियायवः) धि धारणे-कप्रत्ययः, टाप्। धीयते धार्यते सा धिया प्रज्ञा, ततः क्यच्, उप्रत्ययः। बुद्धिकामाः ॥

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    विषय

    विजय किनको मिलती है

    पदार्थ

    १. संग्राम में विजय (वा) = या तो उन्हें प्राप्त होती है (ये) = जो (समोहे) = संग्राम में (आशत) = शक्ति के कार्यों को करनेवाले इन्द्र को स्तुति से व्यास करते हैं। २. तथा जो (नर:) = उन्नति पर चलनेवाले सब व्यक्ति (तोकस्य) = [तु-पूती] आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक धनों को (सनितौ) = प्राप्त करने में लगते है [आशत] ३. (वा) = तथा (धियायव:) = प्रज्ञा की कामनावाले (विप्रासः) = अपना पूरण करनेवाले होते हैं। वे प्रभु-स्तवन करते हुए विजयी होते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु का स्तवन करते हुए क्षत्रिय संग्राम विजय को, वैश्य धनवृद्धि को तथा ब्राह्मण ज्ञान को प्राप्त करते हैं।

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    भाषार्थ

    (तोकस्य) सन्तान की (सनितौ) प्राप्ति हो जाने पर, (नरः) साधारण नर-नारियाँ, (समोहे) मोहमय गृहस्थ में (आशत) पड़े रहते हैं। (वा) परन्तु (ये) जो (विप्रासः=विप्राः) मेधावी नर-नारियाँ हैं, वे (धियायवः) प्रज्ञा और कर्मों द्वारा प्रगति करते रहते हैं, अर्थात् आश्रम से आश्रमान्तर में जाते रहते हैं।

    टिप्पणी

    [धियायवः=धिया+अय् (गतौ)। वा=समुच्चयार्थः।]

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    विषय

    परमेश्वर।

    भावार्थ

    (ये) जो पुरुष (समोहे वा) संग्राम में (आशत) लगे रहते हैं और जो (नरः) लोग (स्तोकस्य) पुत्रादि सन्तान की (सनितौ) प्राप्ति में व्यग्र हैं और जो (विप्रासः) मेधावी, ज्ञानवान् लोग (धियायवः) सदा अपनी बड़ी धारणाशील, ज्ञानवती बुद्धि को प्राप्त करना चाहते हैं वे तीनों प्रकार के विजयार्थी, पुत्रार्थी और ज्ञानार्थी सब, हे इन्द्र ! तेरी ही स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Men of valour and heroism engage in battles, men of knowledge and piety, in learned gatherings and in the training of youth.

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    Translation

    O Almighty God, the men who engage themselves in battle, the men who are busy in winning children and the learned men who desire to increase their intellects—pray you.

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    Translation

    O Almighty God, the men who engage themselves in battle, the men who are busy in winning children and the learned men who desire to increase their intellects—pray you.

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    Translation

    All the persons, who are engaged in war, or busy generating offspring, or the learned and the wise bent upon achieving pursuits of intelligence and action, (do sing Thy praises).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(समोहे) सम्+उहिर् अर्दने-घञ्। संग्रामे-निघ० २।१७। (वा) चार्थे (ये) (आशत) अशू व्याप्तौ-लुङ्, च्लेर्लोपः, आडागमः। व्याप्ता अभवन् (नरः) नेतारः (तोकस्य) अ० १।१३।२। तु वृद्धौ पूर्त्तौ च-कप्रत्ययः। सन्तानस्य-निघ० २।२। (सनितौ) षण सम्भक्तौ-क्तिन्। तितुत्रेष्वग्रहादीनामिति वक्तव्यम्। वा० पा० ७।२।९। इडागमः। सेवने। पोषणाध्यापनादौ (विप्रासः) विप्राः। मेधाविनः (वा) चार्थे (धियायवः) धि धारणे-कप्रत्ययः, टाप्। धीयते धार्यते सा धिया प्रज्ञा, ततः क्यच्, उप्रत्ययः। बुद्धिकामाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যে) যে (নরঃ) নর [নেতাগণ] (সমোহে) সংগ্রামে (বা) অথবা (তোকস্য) সন্তানের (সনিতৌ) সেবনে [পোষণ, অধ্যাপন আদি]-এর প্রতি (আশত) নিয়োজিত, তাঁরা (বিপ্রাসঃ) বিদ্বান্ (বা) এবং (ধিয়ায়বঃ) বুদ্ধি কামনাকারী ॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য যুদ্ধ নীতির মাধ্যমে প্রজার নিরাপত্তা বিধান এবং সাধারণ ব্যবস্থা দ্বারা বিদ্যা বৃদ্ধি করবে/করুক॥২॥

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    भाषार्थ

    (তোকস্য) সন্তানের (সনিতৌ) প্রাপ্তি হলে, (নরঃ) সাধারণ নর-নারীগণ, (সমোহে) মোহময় গৃহস্থে (আশত) পড়ে থাকে। (বা) কিন্তু (যে) যে (বিপ্রাসঃ=বিপ্রাঃ) মেধাবী নর-নারী আছে, তাঁরা (ধিয়ায়বঃ) প্রজ্ঞা এবং কর্ম দ্বারা প্রগতি করতে থাকে, অর্থাৎ আশ্রম থেকে আশ্রমান্তরে যেতে থাকে।

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