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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१
    15

    ए॒वा हि ते॒ विभू॑तय ऊ॒तय॑ इन्द्र॒ माव॑ते। स॒द्यश्चि॒त्सन्ति॑ दा॒शुषे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । हि । ते॒ । विऽभू॑तय: । ऊ॒तय॑: । इ॒न्द्र॒ । माऽव॑ते ॥ स॒द्य: । चि॒त् । सन्ति॑ । दा॒शुषे॑ ॥७१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा हि ते विभूतय ऊतय इन्द्र मावते। सद्यश्चित्सन्ति दाशुषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । हि । ते । विऽभूतय: । ऊतय: । इन्द्र । माऽवते ॥ सद्य: । चित् । सन्ति । दाशुषे ॥७१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (एव) निश्चय करके (हि) ही (ते) तेरे (विभूतयः) अनेक ऐश्वर्य (मावते) मेरे तुल्य (दाशुषे) आत्मदानी के लिये (सद्यः चित्) तुरन्त ही (ऊतयः) रक्षासाधन (सन्ति) होते हैं ॥॥

    भावार्थ

    राजा अपना ऐश्वर्य श्रेष्ठ उपकारी पुरुषों की रक्षा में लगाता रहे ॥॥

    टिप्पणी

    ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६०।४-६ ॥

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    विषय

    मावान्-दाश्वान्

    पदार्थ

    १. (एवा) = इसप्रकार (हि) = निश्चय से हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (ते विभूतयः) = आपके ऐश्वर्य हैं। ये ऐश्वर्य (मावते) = [प्रमावते] ज्ञानवाले पुरुष के लिए, (ऊतयः) = रक्षा के साधन होते हैं। ज्ञान के द्वारा इनका ठीक प्रयोग करते हुए हम जीवन को 'सत्य-शिव व सुन्दर' बना पाते हैं। २. ये ऐश्वर्य (दाशुषे) = दाश्वान-दानशील-लोभरहित पुरुष के लिए (चित्) = निश्चय से (सद्य:) = शीन (सन्ति) = प्राप्त होते हैं। त्यागशील पुरुष ही इनसे लाभान्वित हो पाता है।

    भावार्थ

    हम ज्ञानवान् व त्यागशील बनकर प्रभु के सब पदार्थों का ठीक व मात्रा में प्रयोग करते हुए अपने कल्याण को सिद्ध करें-अपने जीवन को सुरक्षित बनाएँ।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (एवा=एवम्) इसी प्रकार की अर्थात् विस्तृत [पूर्व मन्त्र ३] (ते) आपकी (विभूतयः) विभूतियाँ हैं, जोकि (मावते) मेरे जैसे उपासक के लिए (ऊतये) रक्षारूप हैं, और (दाशुषे) इन विभूतियाँ के दान करनेवाले के लिए ये विभूतियाँ (सद्यः चित्) शीघ्र ही पुनः उपस्थित (सन्ति) हो जाती हैं।

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    विषय

    परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) परमेश्वर ! राजन् ! (ते) तेरी (एवा) ऐसी ऐसी अलौकिक (विभूतयः) विभूतियां और विविध ऐश्वर्य और (एवा ऊतयः) ऐसी ही तेरी पालन शक्तियें (मावते) मेरे जैसे (दाशुषे) दानशील, अधीन पुरुष के लिये (सद्यः चित्) सदा ही (सन्ति) विद्यमान हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Indra, lord omnipresent, omniscient and omnipotent, such are your wondrous works and attributes, such are your powers, protections and promotions, of life, knowledge and happiness for a person like me. They are ever abundant for the faithful and generous devotee dedicated to love and service.

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    Translation

    For so, O mighty God, are your mighty powers and succours, at once, for the man of munificence like me.

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    Translation

    For so, O mighty God, are your mighty powers and succours, at once, for the man of munificence like me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६०।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত রাজন্] (এব) নিশ্চিতরূপে (হি)(তে) তোমার (বিভূতয়ঃ) অনেক ঐশ্বর্য (মাবতে) আমার তুল্য (দাশুষে) আত্মদানীর জন্য (সদ্যঃ চিৎ) শীঘ্রই (ঊতয়ঃ) রক্ষাসাধন (সন্তি) হয় ॥৫॥

    भावार्थ

    রাজা নিজের ঐশ্বর্য শ্রেষ্ঠ উপকারী পুরুষগণের রক্ষায় কাজে প্রয়োগ করে/করুক ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (এবা=এবম্) এরূপ অর্থাৎ বিস্তৃত [পূর্ব মন্ত্র ৩] (তে) আপনার (বিভূতয়ঃ) বিভূতি, যা (মাবতে) আমার মতো উপাসকের জন্য (ঊতয়ে) রক্ষারূপ, এবং (দাশুষে) এই বিভূতি-সমূহের দাতার জন্য এই বিভূতি-সমূহ (সদ্যঃ চিৎ) শীঘ্রই পুনঃ উপস্থিত (সন্তি) হয়।

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