अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 14
ऋषिः - मयोभूः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
21
अ॒ग्निर्वै नः॑ पदवा॒यः सोमो॑ दाया॒द उ॑च्यते। ह॒न्ताभिश॒स्तेन्द्र॒स्तथा॒ तद्वे॒धसो॑ विदुः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नि:। वै । न॒: । प॒द॒ऽवा॒य: । सोम॑: । दा॒या॒द: । उ॒च्य॒ते॒ । ह॒न्ता । अ॒भिऽश॑स्ता । इन्द्र॑ । तथा॑ । तत् । वे॒धस॑: । वि॒दु॒: ॥१८.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्वै नः पदवायः सोमो दायाद उच्यते। हन्ताभिशस्तेन्द्रस्तथा तद्वेधसो विदुः ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नि:। वै । न: । पदऽवाय: । सोम: । दायाद: । उच्यते । हन्ता । अभिऽशस्ता । इन्द्र । तथा । तत् । वेधस: । विदु: ॥१८.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदविद्या की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(अग्निः) अग्नि [सूर्य] (वै) ही (नः) हमारा (पदवायः) पथदर्शक, और (सोमः) चन्द्रमा (दायादः) दायभागी (उच्यते) कहा जाता है। (इन्द्रः) परमेश्वर (अभिशस्ता=०−स्तुः) अपवादी का (हन्ता) नाश करनेवाला है। (तथा) वैसा ही (तत्) उस बात को (वेधसः) विद्वान् लोग (विदुः) जानते हैं ॥१४॥
भावार्थ
जो मनुष्य सूर्य चन्द्रमा के समान सन्मार्ग में चलते हैं, वे परमात्मा की कृपा से दुष्कर्मों से बचकर आनन्द भोगते हैं ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(अग्निः) सूर्यः (वै) निश्चयेन (नः) अस्माकम् (पदवायः) पद+वा गतौ−घञ्, युक् च। पथदर्शकः (सोमः) चन्द्रः (दायादः) म० ६। दायभागी। बन्धुः (उच्यते) कथ्यते (हन्ता) नाशकः (अभिशस्ता) शसु हिंसायाम्−तृच्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्याः सुः। अभिशस्तुः। मिथ्यापवादकस्य (इन्द्रः) परमेश्वरः (तथा) तेन प्रकारेण (तत्) वचनम् (वेधसः) अ० १।११।१। मेधाविनः (विदुः) जानन्ति ॥
विषय
'अग्नि, सोम, इन्द्र'
पदार्थ
१. (वेधसः) = ज्ञानी पुरुष तथा उस प्रकार से (तत्) = उस बात को (विदुः) = जानते हैं कि (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (वै) = निश्चय से (नः) = हमारा (पदवायः पथ) = प्रदर्शक है [पदं आसव्यस्थानं वाययति गमयति] हमें लक्ष्य-स्थान की ओर ले-जानेवाला है। २. (सोम:) = सोमरूप प्रभु हमारा (दायादः) = बन्धु (उच्यते) = कहा जाता है। यह इन्द्रः-शत्रु-विद्रावक प्रभु ही अभिशस्ता-अत्याचारियों पर शस्त्र-प्रहार करनेवाला व हन्ता उन्हें विनष्ट करनेवाला है।
भावार्थ
ज्ञानी पुरुष अग्निरूप प्रभु को अपना पथ-प्रदर्शक जानते हैं, वे सोम प्रभु को अपना बन्धु समझते हैं और उन्हें यह विश्वास होता है कि "इन्द्र' प्रभु अत्याचारियों का विनाश करते ही हैं।
भाषार्थ
(वै) निश्चय से (न:) हमारा ( पदवायः) पथ-प्रदर्शक है ( अग्नि: ) यज्ञियाग्नि, और (सोमः) सोमयज्ञ है (दायादः) दाय का अदन करनेवाला उत्तराधिकारी पुत्र। (हन्ता) [हमारे शत्रु का] हनन करनेवाला और (अभिशस्ता) उसकी हिंसा करनेवाला है (इन्द्रः) सम्राट्, (तथा) इस प्रकार (तत्) उसे (बेधस:) मेधावी पुरुष (विदुः) जानते हैं।
टिप्पणी
[वेधा: मेधाविनाम (निघं० ३।१५)। निरीह और परोपकारी ब्रह्मवेत्ता का रक्षक सम्राट् स्वयं होता है। ]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(अग्निः) अग्नि = ज्ञानवान् ही (नः) हमारा (पद-वायः) मार्गदर्शक है। (सोमः) सोम = शान्तिदायक एवं शुभ मार्ग में प्रेरक ही हमारा (दायादः) समस्त धनों का दाता, स्वामी (उच्यते) कहा जाता है। (इन्द्रः) वह बलशाली परमैश्वर्यवान् प्रभु (अभिशस्ता हन्ता) आक्षेपों और शस्त्र-प्रहारों से सताने वाले पुरुषों का विनाशक है। (तथा) इसी प्रकार से (वेधसः) विद्वान् लोग (तद्) उस पर-ब्रह्म के विषय में (विदुः) जानते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। १-३, ६, ७, १०, १२, १४, १५ अनुष्टुभः। ४, ५, ८, ९, १३ त्रिष्टुभः। ४ भुरिक्। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma Gavi
Meaning
Agni, the light and fire of life, is our guide and pioneer, Soma, moon-like spirit of beauty, peace and joy is our kinsman, brother and gracious giver, and Indra, lord of omnipotence, is the destroyer of the reviler, maligner and scandaliser. This, the wise say and tell us.
Translation
The fire-divine is, verily, our guide. The devotional bliss is called our heir. The resplendent Lord is the slayer and curser on our behalf - so the wise ones know.
Translation
The men of sharp sight know—that the fire is our guide in calamities; somah, the constructive force of nature, our relative and Indra, the powerful electricity quels him who curses us.
Translation
God, in sooth, is our Guide. God is known as the Bestower of all riches, God quells him who curses us. Sages know well that this is so.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(अग्निः) सूर्यः (वै) निश्चयेन (नः) अस्माकम् (पदवायः) पद+वा गतौ−घञ्, युक् च। पथदर्शकः (सोमः) चन्द्रः (दायादः) म० ६। दायभागी। बन्धुः (उच्यते) कथ्यते (हन्ता) नाशकः (अभिशस्ता) शसु हिंसायाम्−तृच्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्याः सुः। अभिशस्तुः। मिथ्यापवादकस्य (इन्द्रः) परमेश्वरः (तथा) तेन प्रकारेण (तत्) वचनम् (वेधसः) अ० १।११।१। मेधाविनः (विदुः) जानन्ति ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal