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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 72/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वाङ्गिरा देवता - शेपोऽर्कः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वाजीकरण सूक्त
    26

    यथा॒ पस॑स्तायाद॒रं वाते॑न स्थूल॒भं कृ॒तम्। याव॑त्पर॒स्वतः॒ पस॒स्ताव॑त्ते वर्धतां॒ पसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ ।पस॑: । ता॒या॒द॒रम् । वाते॑न । स्थू॒ल॒भम् । कृ॒तम् । याव॑त् । पर॑स्वत: । पस॑: । ताव॑त् । ते॒ । व॒र्ध॒ता॒म् । पस॑: ॥७२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा पसस्तायादरं वातेन स्थूलभं कृतम्। यावत्परस्वतः पसस्तावत्ते वर्धतां पसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा ।पस: । तायादरम् । वातेन । स्थूलभम् । कृतम् । यावत् । परस्वत: । पस: । तावत् । ते । वर्धताम् । पस: ॥७२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 72; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राज्य बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (तायादरम्) प्रबन्ध से आदरयोग्य (पसः) राज्य (वातेन) उद्योग से (स्थूलभम्) मनुष्यों में प्रकाशवाला (कृतम्) बनाया जाता है, (यावत्) जितना (परस्वतः) पालने में समर्थ पुरुष का (पसः) राज्य होता है, (तावत्) उतना (ते) तेरा (पसः) राज्य (वर्धताम्) बढ़े ॥२॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार नीतिनिपुण, उद्योगी और प्रजापालक राजा के राज्य में उन्नति होती है, वैसे ही शुभ गुणों द्वारा मनुष्य अपना राज्य बढ़ावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यथा) (पसः) अ० ४।४।६। पस बन्धे बाधे च−असुन्। राज्यम् (तायादरम्) ताय−आदरम्। तायृ सन्तानपालनयोः−घञ्, सन्तानः प्रबन्धः। तायेन प्रबन्धेनादरः सत्कारो यस्य तद्राज्यम् (वातेन) वा गतिगन्धनयोः−तन्। उद्योगेन (स्थूलभम्) स्थः किच्च। उ० ५।४। इति ष्ठा−ऊरन्, रस्य लः। भा दीप्तौ−ड। स्थूरेषु मनुष्येषु भातीति तत् (कृतम्) अनुष्ठितम् (यावत्) यत्प्रमाणम्। बहुविस्तीर्णमित्यर्थः (परस्वतः) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पॄ पालनपूरणयोः−असुन्। पालनवतः पुरुषस्य (पसः) राज्यप्रबन्धः (तावत्) तत्परिमाणविशिष्टम् (ते) तव (वर्धताम्) प्रवृद्धं भवतु (पसः) राज्यम् ॥

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    विषय

    राष्ट्र का संवर्धन

    पदार्थ

    १. हे राजन्! तू इसप्रकार राष्ट्र के अङ्गों में समन्वय कर (यथा) = जिससे यह (पसः) = राष्ट्र (अरम् तायात्) = खूब ही विस्तारवाला व पालित हो। यह राष्ट्र (वातेन) = क्रियाशीलता के द्वारा [परस्पर समन्वय न होने पर काम ठप्प-सा हो जाता है] (स्थूलभम्) = खूब दीप्तिवाला (कृतम्) = किया जाए [स्थूला भा यस्य]। २. (यावत्) = जितना (परस्वतः) = [प पालनपूरणयोः] पालन करनेवाला राजा का (पस): राष्ट्र होता है (तावत्) = उतना (ते पस:) = तेरा राष्ट्र (वर्धताम्) = वृद्धि को प्राप्त हो।

    भावार्थ

    राष्ट्र के अङ्गों में परस्पर समन्वय होने पर राष्ट्र का विस्तार होता है। क्रियाशीलता द्वारा राष्ट्र चमक उठता है। जितना राजा पालन कर पाता है, उतना ही उसका राष्ट्र बढ़ता है।

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    भाषार्थ

    [हे राजन्!] (यथा) जिस प्रकार कि (पसः) राष्ट्र (अरम्) पर्याप्त (तायात्) विस्तार को प्राप्त हो, [जैसे कि] (वातेन) वात द्वारा [पेट] (स्थूलभम्) स्थूलनिभ (कृतम्) कर दिया जाता है (परस्वतः) पूर्व सृष्टिकाल के चक्रवर्ती राजा का (यावत्) जितना बड़ा (पसः) राष्ट्र था (तावत्) उतना बड़ा (ते) तेरा (पसः) राष्ट्र (वर्धताम्) बढ़े।

    टिप्पणी

    [पसः= राष्ट्रम् (मन्त्र १)। तायात् =तायृ सन्तानपालनयोः (भ्वादिः)। सन्तान= सम्यक् विस्तार। सम् + तनु विस्तारे (तनादिः)। अरम् = अलम्, पर्याप्तम्। वातेन=बात, पित्त, कफ शरीर की धातुएं हैं। वायुविकार द्वारा पेट स्थूल हो जाता है, फूल जाता है। परस्वतः=पूर्वकाल के चक्रवर्ती१ राजा का]। [१. इन्हें जनराट्, (यजु० १०॥८, ९॥४०); (अथर्व० २०।२१।९); तथा एकराट् (अथर्व० २।४॥१) कहा है। अर्थात् पृथिवी के सब जनों का एक राजा, चक्रवर्ती राजा हैं। ]

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    विषय

    प्रजनन अंगों की पूर्ण वृद्धि।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (पसः) पुरुष का प्रजननाङ्ग (वातेन) प्राण के बल से (स्थूलभं कृतम्) स्थूलरूप किया जाकर (तायादरम्) सन्तान उत्पादक अंग योनि भाग में प्रवेश योग्य हो जाता है। और (यावत्) जितना (परस्वतः) पूर्णता प्राप्त पुरुष का (पसः) प्रजननाङ्ग होना चाहिये (तावत्) उतना हे पुरुष ! (ते पसः) तेरा प्रजननाङ्ग भी (वर्धताम्) वृद्धि को प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। शेपोऽर्को देवता। १ जगती। २ अनुष्टुप्। ३ भुरिगनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manliness

    Meaning

    O ruler, just as parts of the body are built and grow strong by the energy of nature, and the dominion of a ruler is expanded and strengthened by the strength and endeavour of the people, so let your body politic grow as far as that of any other strong and perfect ruler.

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    Translation

    Just as the male organ of tayadara (an animal) becomes _ enlarged due to wind, so may your male organ become as large as that of the wild ass (parasvin).

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    Translation

    As the genital organ of male made stout with the power of vital air, becomes capable of impregnation and as proportionate is the organ of well-developed man so great stout proportionately be your organ, O man of house-hold life.

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    Translation

    Just as government is made worthy of respect through nice administration, and is rendered enlightened in the eyes of the people through exertion, Just as the sway of a strong man extends far and wide, so should thy rule be extended.

    Footnote

    Just as the government of a wise, enterprising, subjects-nourishing king makes progress, so should men improve their government through noble virtues.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यथा) (पसः) अ० ४।४।६। पस बन्धे बाधे च−असुन्। राज्यम् (तायादरम्) ताय−आदरम्। तायृ सन्तानपालनयोः−घञ्, सन्तानः प्रबन्धः। तायेन प्रबन्धेनादरः सत्कारो यस्य तद्राज्यम् (वातेन) वा गतिगन्धनयोः−तन्। उद्योगेन (स्थूलभम्) स्थः किच्च। उ० ५।४। इति ष्ठा−ऊरन्, रस्य लः। भा दीप्तौ−ड। स्थूरेषु मनुष्येषु भातीति तत् (कृतम्) अनुष्ठितम् (यावत्) यत्प्रमाणम्। बहुविस्तीर्णमित्यर्थः (परस्वतः) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पॄ पालनपूरणयोः−असुन्। पालनवतः पुरुषस्य (पसः) राज्यप्रबन्धः (तावत्) तत्परिमाणविशिष्टम् (ते) तव (वर्धताम्) प्रवृद्धं भवतु (पसः) राज्यम् ॥

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