Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अश्विनावृषी देवता - सभोशो देवता छन्दः - निचृदतिधृतिः स्वरः - षड्जः
    0

    दे॒वस्य॑ त्वा सवि॒तुः प्र॑स॒वेऽश्विनो॑र्बा॒हुभ्यां॑ पू॒ष्णो हस्ता॑भ्याम्। अ॒श्विनो॒र्भैष॑ज्येन॒ तेज॑से ब्रह्मवर्च॒साया॒भि षि॑ञ्चामि॒ सर॑स्वत्यै॒ भैष॑ज्येन वी॒र्याया॒न्नाद्याया॒भि षि॑ञ्चा॒मीन्द्र॑स्येन्द्रि॒येण॒ बला॑य श्रि॒यै यश॑से॒ऽभि षि॑ञ्चामि॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वस्य॑। त्वा॒। स॒वि॒तुः। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। अ॒श्विनोः॑। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। पू॒ष्णः। हस्ता॑भ्याम्। अ॒श्विनोः॑। भैष॑ज्येन। तेज॑से। ब्र॒ह्म॒व॒र्च॒सायेति॑ ब्रह्मऽवर्च॒साय॑। अ॒भि। सि॒ञ्चा॒मि॒। सर॑स्वत्यै। भैष॑ज्येन। वी॒र्या᳖य। अ॒न्नाद्या॒येत्य॒न्नऽअद्या॑य। अ॒भि। सि॒ञ्चा॒मि॒। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒येण॑। बला॑य। श्रि॒यै। यश॑से। अ॒भि। सि॒ञ्चा॒मि॒ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णो हस्ताभ्याम् । अश्विनोर्भैषज्येन तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभि षिञ्चामि सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्यायान्नाद्यायाभिषिञ्चामिऽइन्द्रस्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेभिषिञ्चामि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवस्य। त्वा। सवितुः। प्रसव इति प्रऽसवे। अश्विनोः। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। पूष्णः। हस्ताभ्याम्। अश्विनोः। भैषज्येन। तेजसे। ब्रह्मवर्चसायेति ब्रह्मऽवर्चसाय। अभि। सिञ्चामि। सरस्वत्यै। भैषज्येन। वीर्याय। अन्नाद्यायेत्यन्नऽअद्याय। अभि। सिञ्चामि। इन्द्रस्य। इन्द्रियेण। बलाय। श्रियै। यशसे। अभि। सिञ्चामि॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    Translation -
    At the impulsion of the creator God, with arms of the healers and with hands of the nourisher, with the medical experience of the phyaicians and surgeons, I sprinkle you for the sake of lustre and for the sake of intellectual glory. (1) With the medical experience of the divine Doctress, I sprinkle you for the sake of manly vigour and food grains. (2) With the unique power of the resplendent Lord, I sprinkle you for the sake of strength, glory and fame. (3)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top