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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 21
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - वाग्विद्युतौ देवते छन्दः - विराट् आर्षी बृहती, स्वरः - मध्यमः
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    वस्व्य॒स्यदि॑तिरस्यादि॒त्यासि॑ रु॒द्रासि॑ च॒न्द्रासि॑। बृह॒स्पति॑ष्ट्वा सु॒म्ने र॑म्णातु रु॒द्रो वसु॑भि॒राच॑के॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वस्वी॑। अ॒सि॒। अदि॑तिः। अ॒सि॒। आ॒दि॒त्या। अ॒सि॒। रु॒द्रा। अ॒सि॒। च॒न्द्रा। अ॒सि॒। बृह॒स्पतिः॑। त्वा॒। सु॒म्ने। र॒म्णा॒तु॒। रु॒द्रः। वसु॑भि॒रिति॒॑ वसु॑ऽभिः। आ। च॒के॒ ॥२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वस्व्यस्यदितिरस्यादित्यासि रुद्रासि चन्द्रासि । बृहस्पतिष्ट्वा सुम्ने रम्णातु रुद्रो वसुभिरा चके ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वस्वी। असि। अदितिः। असि। आदित्या। असि। रुद्रा। असि। चन्द्रा। असि। बृहस्पतिः। त्वा। सुम्ने। रम्णातु। रुद्रः। वसुभिरिति वसुऽभिः। आ। चके॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 21
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    Translation -
    (O illuminating intellect), you are the wealth incarnate. You are the eternity. You are the child of eternity as well. You are dreadful; you are bestower of bliss. May the Lord Supreme keep you in comfort and may the dreadful Lord of creatures make you glitter with riches. (1)

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