Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 29
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत् आर्षी अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    1

    प्रति॒ पन्था॑मपद्महि स्वस्ति॒गाम॑ने॒हस॑म्। येन॒ विश्वाः॒ परि॒ द्विषो॑ वृ॒णक्ति॑ वि॒न्दते॒ व॒सु॑॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑। पन्था॑म्। अ॒प॒द्म॒हि॒। स्व॒स्ति॒गामिति॑ स्वस्ति॒ऽगाम्। अ॒ने॒हस॑म्। येन॑। विश्वाः॑। परि॑। द्विषः॑। वृ॒णक्ति॑। वि॒न्दते॑। वसु॑ ॥२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रति पन्थामपद्महि स्वस्तिगामनेहसम् येन विश्वाः परि द्विषो वृणक्ति विन्दते वसु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति। पन्थाम्। अपद्महि। स्वस्तिगामिति स्वस्तिऽगाम्। अनेहसम्। येन। विश्वाः। परि। द्विषः। वृणक्ति। विन्दते। वसु॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    Translation -
    May wе follow the path that leads to real bliss and where there is no crime; treading on which one is far from all animosity and achieves the wealth supreme. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top