अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 17/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप्
सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त
ओजो॒ऽस्योजो॑ मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठओज॑: । अ॒सि॒ । ओज॑: । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ओजोऽस्योजो मे दाः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठओज: । असि । ओज: । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(ओजः असि) तू ओजस् रूप है, (मे) मुझे (ओजः) ओजस् ( दा:) प्रदान कर, (स्वाहा) सु आह।
टिप्पणी -
[सूक्त में कोई दैवतनाम नहीं। पूर्व सूक्त से विश्वम्भर पद का अन्वय जानना चाहिए। ओजस् है उब्ज आर्जवे (तुदादि:), वह शक्ति जिसे देखते शत्रु ऋजु हो जाता है, और शत्रुता को त्याग देता है।]