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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 8
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वरुणः छन्दः - त्रिपान्महाबृहती सूक्तम् - सत्यानृतसमीक्षक सूक्त

    यः स॑मा॒म्यो॒ वरु॑णो॒ यो व्या॒म्यो॒ यः सं॑दे॒श्यो॒ वरु॑णो॒ यो वि॑दे॒श्यः। यो दै॒वो वरु॑णो॒ यश्च॒ मानु॑षः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । स॒म्ऽआ॒भ्य᳡: । वरु॑ण: । य: । वि॒ऽआ॒भ्य᳡: । य: । स॒म्ऽदे॒श्य᳡: । वरु॑ण: । य: । वि॒ऽदे॒श्य᳡: । य: । दै॒व: । वरु॑ण: । य: । च॒ । मानु॑ष: ॥१६.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः समाम्यो वरुणो यो व्याम्यो यः संदेश्यो वरुणो यो विदेश्यः। यो दैवो वरुणो यश्च मानुषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । सम्ऽआभ्य: । वरुण: । य: । विऽआभ्य: । य: । सम्ऽदेश्य: । वरुण: । य: । विऽदेश्य: । य: । दैव: । वरुण: । य: । च । मानुष: ॥१६.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    (यः) जो (समाम्यः) एक व्यक्ति के जलोदर-आमय अर्थात् रोग से उत्पन्न (वरुणः) वारुण्य परिणाम है, (य:) जो (व्याम्य:) विविध व्यक्तियों के जलोदर-आमय अर्थात् रोग से उत्पन्न (वरुणः) वारुण्य परिणाम है, (यः) जो (संदेश्यः) एकदेश में जलोदर-आमय अर्थात् रोग से उत्पन्न (वरुणः) वारुण्य परिणाम है, (यः) जो (विदेश्य:) विविध देशों के जलोदर आमय अर्थात् रोग से उत्पन्न (वरुणः) वारुण्य परिणाम है; (यः) जो (दैवः) दिव्यतत्त्वों के विकार से उत्पन्न तथा (मानुषः) मानुष विकारों से उत्पन्न वारुण्य परिणाम है उन [शतेन पाशै: अभि देहि एनम्, मन्त्र ७; अथवा “तैस्त्वा“ (मन्त्र ९)।]

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