अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
सूक्त - भृगुः
देवता - त्रैककुदाञ्जनम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
इ॒दं वि॒द्वाना॑ञ्जन स॒त्यं व॑क्ष्यामि॒ नानृ॑तम्। स॒नेय॒मश्वं॒ गाम॒हमा॒त्मानं॒ तव॑ पूरुष ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । वि॒द्वान् । आ॒ऽअ॒ञ्ज॒न॒ । स॒त्यम् । व॒क्ष्या॒मि॒ । न । अनृ॑तम् ।स॒नेय॑म् । अश्व॑म् । गाम् । अ॒हम् । आ॒त्मान॑म् । तव॑ । पु॒रु॒ष॒ ॥९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं विद्वानाञ्जन सत्यं वक्ष्यामि नानृतम्। सनेयमश्वं गामहमात्मानं तव पूरुष ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । विद्वान् । आऽअञ्जन । सत्यम् । वक्ष्यामि । न । अनृतम् ।सनेयम् । अश्वम् । गाम् । अहम् । आत्मानम् । तव । पुरुष ॥९.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(आञ्जन) सर्वत्र अभिव्यक्ति करनेवाले, (पुरुष) हे ब्रह्म -पुरुष ! [पुरुषः] (इदम्) इसे [कि तु हमारी रक्षा करता है "नः पाहि" (मन्त्र ६)] (विद्वान्) जानता हुआ (सत्यम्, वक्ष्यामि) मैं सत्य का ही कथन करूँगा, (न, अनृतम्) अनृत अर्थात् असत्य का नहीं। [इसके प्रतिफल में] (अश्वम्) अश्व, (गाम्) गौ, (तव आत्मानम्) तथा तेरे आत्मस्वरूप को (अहम्, सनेयम्) मैं प्राप्त करूं, या इन सबका भागी बनूं।
टिप्पणी -
[इदम्=यह पद सर्वनाम पद है। सर्वनामपद पूर्व परामर्शी होते हैं। पूर्व के मंत्र ६ में "असन्मन्त्र" आदि से रक्षा की प्रार्थना ब्रह्म से की गई है, अतः 'इदम्' द्वारा उसी का परामर्श मन्त्र ७ में अभिप्रेत है। सदा सत्यकथन से, ब्रह्म-पूरुष प्रसन्न होकर, उपासक को यात्रा के लिए अश्व, और दूध के लिए गौ प्रदान करता है, उसका दुग्ध उपासक के लिए अन्नरूप होता है। साथ ही उपासना ब्रह्म-पुरुष से उसके 'आत्मस्वरूप' की प्राप्ति की सूचना भी करता है।]