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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - चतुष्पदा प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    प्र॒जानां॑ प्र॒जन॑नाय गच्छति प्रति॒ष्ठां प्रि॒यः प्र॒जानां॑ भवति॒ य ए॒वं वि॒द्वानु॑द॒कमु॑प॒सिच्यो॑प॒हर॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ऽजाना॑म् । प्र॒ऽजन॑नाय । ग॒च्छ॒ति॒ । प्र॒ति॒ऽस्थाम् । प्रि॒य: । प्र॒ऽजाना॑म् । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वि॒द्वान् । उ॒द॒कम् । उ॒प॒ऽसिच्य॑ । उ॒प॒ऽहर॑ति ॥९.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजानां प्रजननाय गच्छति प्रतिष्ठां प्रियः प्रजानां भवति य एवं विद्वानुदकमुपसिच्योपहरति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रऽजानाम् । प्रऽजननाय । गच्छति । प्रतिऽस्थाम् । प्रिय: । प्रऽजानाम् । भवति । य: । एवम् । विद्वान् । उदकम् । उपऽसिच्य । उपऽहरति ॥९.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 4; मन्त्र » 10

    भाषार्थ -
    (यः) जो अतिथिपति (एवम्) इस प्रकार (विद्वान्) अतिथियज्ञ के महत्त्व को जानता है, और (उदकम् उपसिच्य) उदक सींच कर (उपहरति) उपहार रूप में अन्न प्रदान करता है, (सः) वह (प्रजानाम्) सन्तानों के (प्रजननाय) उत्पादन के लिये होता है, (प्रतिष्ठाम्, गच्छति) प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है, (प्रजानाम्, प्रियः) प्रजाओं का प्यारा (भवति) होता है (य एवम् विद्वान्, उदकम् उपसिच्य, उपहरति) जो इस प्रकार के अतिथियज्ञ के महत्त्व को जानता हुआ उदक सींच कर उपहाररूप में अन्न प्रदान करता है।

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