अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
स य ए॒वं वि॒द्वान्मधू॑प॒सिच्यो॑प॒हर॑ति।
स्वर सहित पद पाठस: । य: । ए॒वम् । वि॒द्वान् । मधु॑ । उ॒प॒ऽसिच्य॑ । उ॒प॒ऽहर॑ति ॥९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
स य एवं विद्वान्मधूपसिच्योपहरति।
स्वर रहित पद पाठस: । य: । एवम् । विद्वान् । मधु । उपऽसिच्य । उपऽहरति ॥९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(यः) जो अतिथिपति (एवम्) इस प्रकार (विद्वान्) अतिथियज्ञ के महत्त्व को जानता है, और (मधु) शहद या मधुरशक्कर (उपसिच्य) सींच कर, डाल कर (उपहरति) उपहाररूप में अन्न प्रदान करता है, (सः) वह (सुसमृद्धेन) उत्तम प्रकार से समृद्ध हुए (सत्त्रसद्येन) सत्त्रसद्य यज्ञ द्वारा (इष्ट्वा) यजन करके (यावत्) जितना फल (अवरुन्द्धे) प्राप्त करता या स्वाधिकार में कर लेता है (तावत) उतना फल (अनेन) इस अतिथियज्ञ द्वारा (अवरुन्द्धे) प्राप्त कर लेता या स्वाधिकार में कर लेता है।