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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 20
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - अतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    नमः॑ कृत्स्नाय॒तया॒ धाव॑ते॒ सत्व॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमः॒ सह॑मानाय निव्या॒धिन॑ऽआव्या॒धिनी॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ निष॒ङ्गिणे॑ ककु॒भाय॑ स्ते॒नानां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ निचे॒रवे॑ परिच॒रायार॑ण्यानां॒ पत॑ये॒ नमः॑॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। कृ॒त्स्ना॒य॒तयेति॑ कृत्स्नऽआय॒तया॑। धाव॑ते। सत्व॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। सह॑मानाय। नि॒व्या॒धिन॒ इति॑ निऽव्या॒धिने॑। आ॒व्या॒धिनी॑ना॒मित्याऽव्या॒धिनी॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। नि॒ष॒ङ्गिणे॑। क॒कु॒भाय॑। स्ते॒नाना॑म्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। नि॒चे॒रव॒ इति॑ निऽचे॒रवे॑। प॒रि॒च॒रायेति॑ परिऽच॒राय॑। अर॑ण्यानाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः कृत्स्नायतया धावते सत्वनाम्पतये नमो नमः सहमानाय निव्याधिनऽआव्याधिनीनाम्पतये नमो नमो निषङ्गिणे ककुभाय स्तेनानाम्पतये नमो नमो निचेरवे परिचरायारण्यानाम्पतये नमो वञ्चते नमो ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। कृत्स्नायतयेति कृत्स्नऽआयतया। धावते। सत्वनाम्। पतये। नमः। नमः। सहमानाय। निव्याधिन इति निऽव्याधिने। आव्याधिनीनामित्याऽव्याधिनीनाम्। पतये। नमः। नमः। निषङ्गिणे। ककुभाय। स्तेनानाम्। पतये। नमः। नमः। निचेरव इति निऽचेरवे। परिचरायेति परिऽचराय। अरण्यानाम्। पतये। नमः॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 20
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    पदार्थ -
    मनुष्य लोग (कृत्स्नायतया) सम्पूर्ण प्राप्ति के अर्थ (धावते) इधर-उधर जाने-आने वाले को (नमः) अन्न देवें (सत्वनाम्) प्राप्त पदार्थों की (पतये) रक्षा करने हारे का (नमः) सत्कार करें (सहमानाय) बलयुक्त और (निव्याधिने) शत्रुओं को निरन्तर ताड़ना देने हारे पुरुष को (नमः) अन्न देवें (आव्याधिनीनाम्) अच्छे प्रकार शत्रुओं की सेनाओं को मारने हारी अपनी सेनाओं के (पतये) रक्षक सेनापति का (नमः) आदर करें (निषङ्गिणे) बहुत से अच्छे बाण, तलवार, भुशुण्डी, शतघ्नी अर्थात् बन्दूक तोप और तोमर आदि शस्त्र जिस के हों उस को (नमः) अन्न देवें (निचेरवे) निरन्तर पुरुषार्थ के साथ विचरने तथा (परिचराय) धर्म, विद्या, माता, स्वामी और मित्रादि की सब प्रकार सेवा करने वाले (ककुभाय) प्रसन्नमूर्ति पुरुष का (नमः) सत्कार करें (स्तेनानाम्) अन्याय से परधन लेने हारे प्राणियों को (पतये) जो दण्ड आदि से शुष्क करता हो उस को (नमः) वज्र से मारें (अरण्यानाम्) वन जङ्गलों के (पतये) रक्षक पुरुष को (नमः) अन्नादि पदार्थ देवें॥२०॥

    भावार्थ - राजपुरुषों को चाहिये कि पुरुषार्थियों का उत्साह के लिये सत्कार, प्राणियों के ऊपर दया, अच्छी शिक्षित सेना को रखना, चोर आदि को दण्ड, सेवकों की रक्षा और वनों को नहीं काटना, इन सब को कर राज्य की वृद्धि करें॥२०॥

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