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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 29
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अग्न्यश्वीन्द्रसरस्वत्याद्या लिङ्गोक्ता देवताः छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
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    होता॑ यक्षत्स॒मिधा॒ऽग्निमि॒डस्प॒देऽश्विनेन्द्र॒ꣳ सर॑स्वतीम॒जो धू॒म्रो न गो॒धूमैः॒ कुव॑लैर्भेष॒जं मधु॒ शष्पै॒र्न तेज॑ऽइन्द्रि॒यं पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। स॒मिधेति॑ स॒म्ऽइधा॑। अ॒ग्निम्। इ॒डः। प॒दे। अ॒श्विना॑। इन्द्र॑म्। सर॑स्वतीम्। अ॒जः। धू॒म्रः। न। गो॒धूमैः॑। कुव॑लैः। भे॒ष॒जम्। मधु॑। शष्पैः॑। न। तेजः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्यस्य॑। होतः॑। यज॑ ॥२९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्समिधाग्निमिडस्पदे श्विनेन्द्रँ सरस्वतीमजो धूम्रो न गोधूमैः कुवलैर्भैषजम्मधु शष्पैर्न तेजऽइन्द्रियम्पयः सोमः परिस्रुता घृतम्मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। समिधेति सम्ऽइधा। अग्निम्। इडः। पदे। अश्विना। इन्द्रम्। सरस्वतीम्। अजः। धूम्रः। न। गोधूमैः। कुवलैः। भेषजम्। मधु। शष्पैः। न। तेजः। इन्द्रियम्। पयः। सोमः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। घृतम्। मधु। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 29
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    पदार्थ -
    हे (होतः) यज्ञ करने हारे जन! जैसे (होता) देने वाला (इ[स्पदे) पृथिवी और अन्न के स्थान में (समिधा) इन्धनादि साधनों से (अग्निम्) अग्नि को (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा (इन्द्रम्) ऐश्वर्य वा जीव और (सरस्वतीम्) सुशिक्षायुक्त वाणी को (अजः) प्राप्त होने योग्य (धूम्रः) धुमैले मेढ़े के (न) समान कोई जीव (गोधूमैः) गेहूं और (कुवलैः) जिन से बल नष्ट हो, उन बेरों से (भेषजम्) औषध को (यक्षत्) संगत करे, वैसे (शष्पैः) हिंसाओं के (न) समान साधनों से जो (तेजः) प्रगल्भपन (मधु) मधुर जल (इन्द्रियम्) धन (पयः) दूध वा अन्न (परिस्रुता) सब ओर से प्राप्त हुए रस के साथ (सोमः) औषधियों का समूह (घृतम्) घृत (मधु) और सहत (व्यन्तु) प्राप्त हों, उनके साथ (आज्यस्य) घी का (यज) होम कर॥२९॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो लोग इस संसार में साधन और उपसाधनों से पृथिवी आदि की विद्या को जानते हैं, वे सब उत्तम पदार्थों को प्राप्त होते हैं॥२९॥

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