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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 32
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - सरस्वत्यादयो देवताः छन्दः - विराडतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    होता॑ यक्षदि॒डेडि॒तऽआ॒ जु॒ह्वा॑नः॒ सर॑स्वती॒मिन्द्रं बले॑न व॒र्धय॑न्नृष॒भेण॒ गवे॑न्द्रि॒यम॒श्विनेन्द्रा॑य भेष॒जं यवैः॑ क॒र्कन्धु॑भि॒र्मधु॑ ला॒जैर्न मास॑रं॒ पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। इ॒डा। ई॒डि॒तः। आ॒जुह्वा॑न॒ इत्या॒ऽजुह्वा॑नः। सर॑स्वतीम्। इन्द्र॑म्। बले॑न। व॒र्धय॑न्। ऋ॒ष॒भेण॑। गवा॑। इ॒न्द्रि॒यम्। अ॒श्विना॑। इन्द्रा॑य। भे॒ष॒जम्। यवैः॑। क॒र्कन्धु॑भि॒रिति॑ क॒र्कन्धु॑ऽभिः। मधु॑। ला॒जैः। न। मास॑रम्। पयः॑। सोमः॑। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षदिडेडितऽआजुह्वानः सरस्वतीमिन्द्रम्बलेन वर्धयन्नृषभेण गवेन्द्रियमश्विनेन्द्राय भेषजँयवै र्कर्कन्धुभिर्मधु लाजैर्न मासरम्पयः सोमः परिस्रुता घृतम्मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। इडा। ईडितः। आजुह्वान इत्याऽजुह्वानः। सरस्वतीम्। इन्द्रम्। बलेन। वर्धयन्। ऋषभेण। गवा। इन्द्रियम्। अश्विना। इन्द्राय। भेषजम्। यवैः। कर्कन्धुभिरिति कर्कन्धुऽभिः। मधु। लाजैः। न। मासरम्। पयः। सोमः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। घृतम्। मधु। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 32
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    पदार्थ -
    (होतः) हवनकर्त्ता जन! जैसे (इडा) स्तुति करने योग्य वाणी से (ईडितः) प्रशंसायुक्त (आजुह्वानः) सत्कार से आजुह्वान किया गया (होता) प्रशंसा करने योग्य मनुष्य (बलेन) बल से (सरस्वतीम्) वाणी और (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (ऋषभेण) चलने योग्य उत्तम (गवा) बैल से (इन्द्रियम्) धन तथा (अश्विना) आकाश और पृथिवी को (यवैः) यव आदि अन्नों से (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिये (भेषजम्) औषध को (वर्द्धयन्) बढ़ाता हुआ (कर्कन्धुभिः) बेर की क्रिया को धारण करने वालों से (मधु) मीठे (लाजैः) प्रफुल्लित अन्नों के (न) समान (मासरम्) भात को (यक्षत्) संगत करे, वैसे जो (परिस्रुता) सब ओर से प्राप्त हुए रस के साथ (सोमः) ओषधिसमूह (पयः) रस (घृतम्) घी (मधु) और सहत (व्यन्तु) प्राप्त होवें, उनके साथ वर्त्तमान तू (आज्यस्य) घी का (यज) होम कर॥३२॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुतोपमालङ्कार हैं। मनुष्य ब्रह्मचर्य्य से शरीर और आत्मा के बल को तथा विद्वानों की सेवा विद्या और पुरुषार्थ से ऐश्वर्य को प्राप्त हो पथ्य और औषध के सेवन से रोगों का विनाश कर नीरोगता को प्राप्त हों॥३२॥

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