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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 9
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अ॒मु॒त्र॒भूया॒दध॒ यद्य॒मस्य॒ बृह॑स्पतेऽ अ॒भिश॑स्ते॒रमु॑ञ्चः।प्रत्यौ॑हताम॒श्विना॑ मृ॒त्युम॑स्माद् दे॒वाना॑मग्ने भि॒षजा॒ शची॑भिः॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒मु॒त्र॒भूया॒दित्य॑मुत्र॒ऽभूया॑त्। अध॑। यत्। य॒मस्य॑। बृह॑स्पते। अ॒भिश॑स्ते॒रित्य॒भिऽश॑स्तेः। अमु॑ञ्चः। प्रति॑। औ॒ह॒ता॒म्। अ॒श्विना॑। मृ॒त्युम्। अ॒स्मा॒त्। दे॒वाना॑म्। अ॒ग्ने॒। भि॒षजा॑। शची॑भिः ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अमुत्रभूयादध यद्यमस्य बृहस्पतेऽअभिसस्तेरमुञ्चः । प्रत्औहतामश्विना मृत्युमस्माद्देवानामग्ने भिषजा शचीभिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अमुत्रभूयादित्यमुत्रऽभूयात्। अध। यत्। यमस्य। बृहस्पते। अभिशस्तेरित्यभिऽशस्तेः। अमुञ्चः। प्रति। आैहताम्। अश्विना। मृत्युम्। अस्मात्। देवानाम्। अग्ने। भिषजा। शचीभिः॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -
    हे (बृहस्पते) बड़ों के रक्षक विद्वन्! आप (अमुत्रभूयात्) परजन्म में होने वाले (अभिशस्तेः) सब प्रकार के अपराध से (अमुञ्चः) छूटिये। (अध) इस के अनन्तर (यत्) जो (यमस्य) धर्मात्मा नियमकर्त्ता जन की शिक्षा में रहे, उस के (मृत्युम्) मृत्यु को छुड़ाइये। हे (अग्ने) उत्तम वैद्य! आप जैसे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक (शचीभिः) कर्म वा बुद्धियों से (भिषजा) रोगनिवारक पदार्थों को (प्रति, औहताम्) विशेष तर्क से सिद्ध करें, वैसे (अस्मात्) इससे (देवानाम्) विद्वानों के आरोग्य को सिद्ध कीजिये॥९॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही श्रेष्ठ अध्यापक और उपदेशक हैं, जो इस लोक और परलोक में सुख होने के लिये सब को अच्छी शिक्षा करें, जिससे ब्रह्मचर्यादि कर्मों का सेवन कर मनुष्य अल्पावस्था में मृत्यु और आनन्द की हानि को न प्राप्त होवें॥९॥

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