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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 63
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    ये त्वा॑हि॒हत्ये॑ मघव॒न्नव॑र्द्ध॒न्ये शा॑म्ब॒रे ह॑रिवो॒ ये गवि॑ष्टौ।ये त्वा॑ नू॒नम॑नु॒मद॑न्ति॒ विप्राः॒ पिबे॑न्द्र॒ सोम॒ꣳ सग॑णो म॒रुद्भिः॑॥६३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। त्वा। अ॒हि॒हत्य॒ इत्य॑हि॒ऽहत्ये॑। म॒घ॒वन्निति॑ मघऽवन्। अव॑र्द्धन्। ये। शा॒म्ब॒रे। ह॒रि॒व इति॑ हरिऽवः। ये। गवि॑ष्ठा॒विति॒ गोऽइ॑ष्ठौ ॥ ये। त्वा। नू॒नम्। अ॒नुमद॒न्तीत्य॑नु॒मद॑न्ति। विप्राः॑। पिब॑। इ॒न्द्र॒। सोम॑म्। सग॑ण॒ इति॒ सऽग॑णः। म॒रुद्भि॒रिति॑ म॒रुत्ऽभिः॑ ॥६३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये त्वाहिहत्ये मघवन्नवर्धन्ये शाम्बरे हरिवो ये गविष्टौ । ये त्वा नूनमनुमदन्ति विप्राः पिबेन्द्र सोमँ सगणो मरुद्भिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। त्वा। अहिहत्य इत्यहिऽहत्ये। मघवन्निति मघऽवन्। अवर्द्धन्। ये। शाम्बरे। हरिव इति हरिऽवः। ये। गविष्ठाविति गोऽइष्ठौ॥ ये। त्वा। नूनम्। अनुमदन्तीत्यनुमदन्ति। विप्राः। पिब। इन्द्र। सोमम्। सगण इति सऽगणः। मरुद्भिरिति मरुत्ऽभिः॥६३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 63
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    पदार्थ -
    हे (मघवन्) उत्तम पूजित धनवाले सेनापति! (ये) जो (विप्राः) बुद्धिमान् लोग (अहिहत्ये) जहां मेघ का काटना और (गविष्ठौ) किरणों की संगति हो, उस संग्राम में जैसे किरणें सूर्य के तेज को वैसे (त्वा) आपको (अवर्द्धन्) उत्साहित करें। हे (हरिवः) प्रशंसित किरणों के तुल्य चिलकते घोड़ोंवाले शूरवीर जन! (ये) जो लोग (शाम्बरे) मेघ-सूर्य के संग्राम में बिजुली के तुल्य (त्वा) आपको बढ़ावें (ये) जो (नूनम्) निश्चय कर आपकी (अनुमदन्ति) अनूकूलता से आनन्दित होते हैं और (ये) जो आपकी रक्षा करते हैं। हे (इन्द्र) उत्तम ऐश्वर्यवाले जन! (मरुद्भिः) जैसे वायु के (सगणः) गण के साथ सूर्य रस को ग्रहण करे, वैसे रस को ग्रहण करे, वैसे मनुष्यों के साथ (सोमम्) श्रेष्ठ ओषधि रस को (पिब) पीजिये॥६३॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मेघ और सूर्य के संग्राम में सूर्य का ही विजय होता है, वैसे मूर्ख और विद्वानों के संग्राम में विद्वानों का ही विजय होता है॥६३॥

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