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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 68
    ऋषिः - इन्द्र ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृद गायत्री स्वरः - षड्जः
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    वार्त्र॑हत्याय॒ शव॑से पृतना॒षाह्या॑य च। इन्द्र॒ त्वाव॑र्तयामसि॥६८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वार्त्र॑हत्या॒येति॒ वार्त्र॑ऽहत्याय। शव॑से। पृ॒त॒ना॒षाह्या॑य। पृ॒त॒ना॒सह्या॒येति॑ पृतना॒ऽसह्या॑य। च॒। इन्द्र॑। त्वा॒। आ। व॒र्त॒या॒म॒सि॒ ॥६८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च । इन्द्र त्वा वर्तयामसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वार्त्रहत्यायेति वार्त्रऽहत्याय। शवसे। पृतनाषाह्याय। पृतनासह्यायेति पृतनाऽसह्याय। च। इन्द्र। त्वा। आ। वर्तयामसि॥६८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 68
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    Meaning -
    Indra, lord of blazing power and prowess, for your power to break down the anti-life clouds of darkness, for the sake of strength and superiority in advancement, and for your potential to rout the forces of the enemies of humanity, we turn to you, abide by you and act under your command.

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