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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 79
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣣र꣢ण्यो꣣र्नि꣡हि꣢तो जा꣣त꣡वे꣢दा꣣ ग꣡र्भ꣢ इ꣣वे꣡त्सुभृ꣢꣯तो ग꣣र्भि꣡णी꣢भिः । दि꣣वे꣡दि꣢व꣣ ई꣡ड्यो꣢ जागृ꣣व꣡द्भि꣢र्ह꣣वि꣡ष्म꣢द्भिर्मनु꣣꣬ष्ये꣢꣯भिर꣣ग्निः꣢ ॥७९॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣र꣡ण्योः꣢ । नि꣡हि꣢꣯तः । नि꣡ । हि꣣तः । जा꣣तवे꣢दाः꣢ । जा꣣त꣢ । वे꣣दाः । ग꣡र्भः꣢꣯ । इ꣣व । इ꣢त् । सु꣡भृ꣢꣯तः । सु । भृ꣣तः । गर्भि꣡णी꣢भिः । दि꣣वे꣡दि꣢वे । दि꣣वे꣢ । दि꣣वे । ई꣡ड्यः꣢꣯ । जा꣣गृव꣡द्भिः꣢ । ह꣣वि꣡ष्म꣢द्भिः । म꣣नुष्ये꣢꣯भिः । अ꣣ग्निः꣢ ॥७९॥


स्वर रहित मन्त्र

अरण्योर्निहितो जातवेदा गर्भ इवेत्सुभृतो गर्भिणीभिः । दिवेदिव ईड्यो जागृवद्भिर्हविष्मद्भिर्मनुष्येभिरग्निः ॥७९॥


स्वर रहित पद पाठ

अरण्योः । निहितः । नि । हितः । जातवेदाः । जात । वेदाः । गर्भः । इव । इत् । सुभृतः । सु । भृतः । गर्भिणीभिः । दिवेदिवे । दिवे । दिवे । ईड्यः । जागृवद्भिः । हविष्मद्भिः । मनुष्येभिः । अग्निः ॥७९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 79
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 8;
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पदार्थ -
(जातवेदाः-अग्निः) सबको जानने वाला—जातमात्र—उत्पन्नमात्र में विद्यमान प्रकाशस्वरूप परमात्मा (अरण्योः-निहितः) दो लकड़ियों के समान मन और हृदय में निहित है, मन में मनन और हृदय में निदिध्यासन के द्वारा प्रकट होने से (गर्भिणीर्भिः) गर्भवती स्त्रियों द्वारा (गर्भः-इव-इत् सुभृतः) गर्भ की भाँति ही सम्यक् धारित हुआ सा है (जागृवद्भिः-हविष्मद्भिः) जागरूक सावधान एवं हावभाव भरी स्तुतिरूप भेंट देने वाले (मनुष्येभिः) मनुष्यों द्वारा (दिवे दिवे-ईड्यः) दिन दिन—प्रतिदिन स्तवनीय-उपासनीय—उपासना से साक्षात्करणीय है।

भावार्थ - परमात्मा महान् चेतन अग्नि है, जो गर्भवती स्त्रियों में गर्भ की भाँति, उपासकों के हृदय में छिपा हुआ है, तथा दो लकड़ियों में छिपा हुआ अग्नि जैसे उनके सङ्घर्षण से प्रकट होता है ऐसे परमात्मा मन में मनन और हृदय में निदिध्यासन साधन से प्रकाशित होता है, प्रतिदिन उसके प्रति हावभाव भरी स्तुति भेंट देने वाले उपासक सावधान हो श्रद्धा से अपने अन्दर साक्षात् करते हैं॥७॥

विशेष - ऋषिः—विश्वामित्रः (सब जिसके मित्र हैं जो सबका मित्र है सर्वस्नेही उपासक)॥<br>

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