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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 73

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 73/ मन्त्र 11
    सूक्त - अथर्वा देवता - घर्मः, अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - धर्म सूक्त

    सू॑यव॒साद्भग॑वती॒ हि भू॒या अधा॑ व॒यं भग॑वन्तः स्याम। अ॒द्धि तृण॑मघ्न्ये विश्व॒दानीं॑ पिब शु॒द्धमु॑द॒कमा॒चर॑न्ती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒य॒व॒स॒ऽअत् । भग॑ऽवती । हि । भू॒या: । अध॑ । व॒यम् । भग॑ऽवन्त: । स्या॒म॒ । अ॒ध्दि । तृण॑म् । अ॒घ्न्ये॒ । वि॒श्व॒ऽदानी॑म् । पिब॑ । शु॒ध्दम् । उ॒द॒कम् । आ॒ऽचर॑न्ती ॥७७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूयवसाद्भगवती हि भूया अधा वयं भगवन्तः स्याम। अद्धि तृणमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुयवसऽअत् । भगऽवती । हि । भूया: । अध । वयम् । भगऽवन्त: । स्याम । अध्दि । तृणम् । अघ्न्ये । विश्वऽदानीम् । पिब । शुध्दम् । उदकम् । आऽचरन्ती ॥७७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 73; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    [हे प्रजा, सब स्त्री-पुरुषो !] (सूयवसात्) सुन्दर अन्न आदि भोगनेवाली और (भगवती) बहुत ऐश्वर्यवाली (हि) ही (भूयाः) हो, (अध) फिर (वयम्) हमलोग (भगवन्तः) बड़े ऐश्वर्यवाले (स्याम) होवें। (अघ्न्ये) हे हिंसा न करनेवाली प्रजा ! (विश्वदानीम्) समस्त दानों की क्रिया का (आचरन्ती) आचरण करती हुई तू [हिंसा न करनेवाली गौ के समान] (तृणम्) घास [अल्प मूल्य पदार्थ] को (अद्धि) खा और (शुद्धम्) शुद्ध (उदकम्) जल को (पिब) पी ॥११॥

    भावार्थ - जैसे गौ अल्प मूल्य घास खाकर और शुद्ध जल पीकर दूध घी आदि देकर उपकार करती है, वैसे ही मनुष्य थोड़े व्यय से शुद्ध आहार-विहार करके संसार का सदा उपकार करें ॥११॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।१६४।४० ॥ इति षष्ठोऽनुवाकः ॥

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