Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 8
    ऋषिः - हिरण्यगर्भ ऋषिः देवता - सूर्य्यो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    ये वा॒मी रो॑च॒ने दि॒वो ये वा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिषु॑। येषा॑म॒प्सु सद॑स्कृ॒तं तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। वा॒। अ॒मीऽइत्य॒मी। रो॒च॒ने। दि॒वः। ये। वा॒। सूर्य्य॑स्य। र॒श्मिषु॑। येषा॑म्। अ॒प्स्वित्य॒प्सु। सदः॑। कृ॒तम्। तेभ्यः॑। स॒र्पेभ्यः॑। नमः॑ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये वामी रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु । येषामप्सु सदस्कृतन्तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। वा। अमीऽइत्यमी। रोचने। दिवः। ये। वा। सूर्य्यस्य। रश्मिषु। येषाम्। अप्स्वित्यप्सु। सदः। कृतम्। तेभ्यः। सर्पेभ्यः। नमः॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    भावार्थ - जलात किंवा आकाशात राहणारे जे दुष्ट प्राणी किंवा सर्प असतात त्यांना माणसांनी शस्त्रांनी नष्ट करावे.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top