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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 42
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - होत्रादयो देवताः छन्दः - आर्च्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    होता॑ यक्षद॒श्विनौ॒ सर॑स्वती॒मिन्द्र॑ꣳ सु॒त्रामा॑णमि॒मे सोमाः॑ सु॒रामा॑ण॒श्छागै॒र्न मे॒षैर्ऋ॑ष॒भैः सु॒ताः शष्पै॒र्न तोक्म॑भिर्ला॒जैर्मह॑स्वन्तो॒ मदा॒ मास॑रेण॒ परि॑ष्कृताः शु॒क्राः पय॑स्वन्तो॒ऽमृताः॒ प्र॑स्थिता वो मधु॒श्चुत॒स्तान॒श्विना॒ सर॑स्व॒तीन्द्रः॑ सु॒त्रामा॑ वृत्र॒हा जु॒षन्ता॑ सो॒म्यं मधु॒ पिब॑न्तु॒ मद॑न्तु॒ व्यन्तु॒ होत॒र्यज॑॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। अ॒श्विनौ॑। सर॑स्वतीम्। इन्द्र॑म्। सु॒त्रामा॑णमिति॑ सु॒ऽत्रामा॑णम्। इ॒मे। सोमाः॑। सु॒रामा॑णः। छागैः॑। न। मे॒षैः। ऋ॒ष॒भैः। सु॒ताः। शष्पैः॑। न। तोक्म॑भिरिति॒ तोक्म॑ऽभिः। ला॒जैः। मह॑स्वन्तः। मदाः॑। मास॑रेण। परि॑ष्कृताः। शु॒क्राः। पय॑स्वन्तः। अ॒मृताः॑। प्र॑स्थिता॒ इति॒ प्रऽस्थि॑ताः। वः॒। म॒धु॒श्चुत॒ इति॑ मधु॒ऽश्चुतः॑। तान्। अ॒श्विना॑। सर॑स्वती। इन्द्रः॑। सु॒त्रामा॑। वृ॒त्र॒हा। जु॒षन्ता॑म्। सो॒म्यम्। मधु॑। पिब॑न्तु। मद॑न्तु। व्यन्तु॑। होतः॑। यज॑ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षदश्विनौ सरस्वतीमिन्द्रँ सुत्रामाणमिमे सोमाः सुरामाणश्छागैर्न मेषैरृषभैः सुताः शष्पैर्ब तोक्मभिर्लाजैर्महस्वन्तो मदा मासरेण परिष्कृताः शुक्राः पयस्वन्तोमृताः प्रस्थिता वो मधुश्चुतस्तानश्विना सरस्वतीन्द्रः सुत्रामा वृत्रहा जुषन्ताँ सोम्यम्मधु पिबन्तु व्यन्तु होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। अश्विनौ। सरस्वतीम्। इन्द्रम्। सुत्रामाणमिति सुऽत्रामाणम्। इमे। सोमाः। सुरामाणः। छागैः। न। मेषैः। ऋषभैः। सुताः। शष्पैः। न। तोक्मभिरिति तोक्मऽभिः। लाजैः। महस्वन्तः। मदाः। मासरेण। परिष्कृताः। शुक्राः। पयस्वन्तः। अमृताः। प्रस्थिता इति प्रऽस्थिताः। वः। मधुश्चुत इति मधुऽश्चुतः। तान्। अश्विना। सरस्वती। इन्द्रः। सुत्रामा। वृत्रहा। जुषन्ताम्। सोम्यम्। मधु। पिबन्तु। मदन्तु। व्यन्तु। होतः। यज॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 42
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    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक या जगातील पदार्थविद्या प्राप्त करून सत्यवचनाने रक्षणकर्त्या राजाचा आश्रय घेऊन पशूंचे दूध प्राशन करून पुष्ट होतात व संस्कारित केलेल अन्नपदार्थ खातात, तसेच रस प्राशन करून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यांसाठी प्रयत्न करतात, ते सदैव सुखी होतात.

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