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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 53
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    दे॒वा दे॒वानां॑ भि॒षजा॒ होता॑रा॒विन्द्र॑म॒श्विना॑। व॒ष॒ट्का॒रैः सर॑स्वती॒ त्विषिं न हृद॑ये म॒तिꣳ होतृ॑भ्यां दधुरिन्द्रि॒यं व॒सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑॥५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा। दे॒वाना॑म्। भि॒षजा॑। होता॑रौ। इन्द्र॑म्। अ॒श्विना॑। व॒ष॒ट्का॒रैरिति॑ वषट्ऽका॒रैः। सर॑स्वती। त्विषि॑म्। न। हृद॑ये। म॒तिम्। होतृ॑भ्या॒मिति॒ होतृ॑ऽभ्याम्। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥५३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा देवानाम्भिषजा होताराविन्द्रमश्विना । वषट्कारैः सरस्वती त्विषिन्न हृदये मतिँ होतृभ्यान्दधुरिन्द्रियँवसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवा। देवानाम्। भिषजा। होतारौ। इन्द्रम्। अश्विना। वषट्कारैरिति वषट्ऽकारैः। सरस्वती। त्विषिम्। न। हृदये। मतिम्। होतृभ्यामिति होतृऽभ्याम्। दधुः। इन्द्रियम्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। व्यन्तु। यज॥५३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 53
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    भावार्थ - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा विद्वानांमधील विद्वान व चांगले वैद्य श्रेष्ठ कर्म करून सर्वांना निरोगी, तेजस्वी व धनवान करतात किंवा जशी विद्वानांची वाणी विद्यार्थ्यांच्या मनाला उत्तम ज्ञानाने उन्नत करते तसे साधारण माणसांनीही विद्या व धन मिळवावे.

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