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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    प्र बा॒हवा॑ सिसृतं जी॒वसे॑ न॒ऽआ नो॒ गव्यू॑तिमुक्षतं घृ॒तेन॑।आ मा॒ जने॑ श्रवयतं युवाना श्रु॒तं मे॑ मित्रावरुणा॒ हवे॒मा॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। बा॒हवा॑। सि॒सृ॒त॒म्। जी॒वसे॑। नः॒। आ। नः॒। गव्यू॑तिम्। उ॒क्ष॒त॒म्। घृ॒तेन॑। आ। मा। जने॑। श्र॒व॒य॒त॒म्। यु॒वा॒ना॒। श्रु॒तम्। मे॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। हवा॑। इ॒मा ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र बाहवा सिसृतञ्जीवसे नऽआ नो गव्यूतिमुक्षतङ्घृतेन । आ मा जने श्रवयतँयुवाना श्रुतम्मे मित्रावरुणा हवेमा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। बाहवा। सिसृतम्। जीवसे। नः। आ। नः। गव्यूतिम्। उक्षतम्। घृतेन। आ। मा। जने। श्रवयतम्। युवाना। श्रुतम्। मे। मित्रावरुणा। हवा। इमा॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- (মিত্রাবরুণা) মিত্র ও বরুণ উত্তম ব্যক্তি (বাহবা) দুইটি বাহু তুল্য (য়ুবানা) মিলন ও পৃথককারী তোমরা (নঃ) আমাদের (জীবসে) বাঁচিবার জন্য (মা) আমাকে (প্র, সিসৃতম্) প্রাপ্ত হও (ঘৃতেন) জল দ্বারা (নঃ) আমাদের (গবূ্যতিম্) ক্রোশদ্বয় পর্য্যন্ত (আ, উক্ষতম্) সব দিক্ দিয়া সিঞ্চন কর । নানা প্রকারের কীর্ত্তিকে (আ, অবয়তম্) উত্তম প্রকার শ্রবণ করাও এবং (মে) আমার (জনে) মনুষ্যগণ মধ্যে (ইমা) এইসব (হবা) বাদ-বিবাদকে শ্রবণ কর ॥ ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- অধ্যাপক ও উপদেশক প্রাণ ও উদানের সমান সকলের জীবনের কারণ হউক, বিদ্যা ও উপদেশ দ্বারা সকলের আত্মাসমূহকে জল দ্বারা বৃক্ষ সদৃশ সিঞ্চন করিবে ॥ ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - প্র বা॒হবা॑ সিসৃতং জী॒বসে॑ ন॒ऽআ নো॒ গবূ্য॑তিমুক্ষতং ঘৃ॒তেন॑ ।
    আ মা॒ জনে॑ শ্রবয়তং য়ুবানা শ্রু॒তং মে॑ মিত্রাবরুণা॒ হবে॒মা ॥ ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - প্র বাহবেত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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