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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 35
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - स्वराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धाऽ इव धेनवः॑।ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि। त्वा॒। शू॒र॒। नो॒नु॒मः॒। अदु॑ग्धा इ॒वेत्यदु॑ग्धाःऽइव। धे॒नवः॑। ईशा॑नम्। अ॒स्य। जग॑तः। स्व॒र्दृश॒मिति॑ स्वः॒दृऽश॑म्। ईशा॑नम्। इ॒न्द्र॒। त॒स्थुषः॑ ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा शूर नोनुमो दुग्धाऽइव धेनवः । ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। त्वा। शूर। नोनुमः। अदुग्धा इवेत्यदुग्धाःऽइव। धेनवः। ईशानम्। अस्य। जगतः। स्वर्दृशमिति स्वःदृऽशम्। ईशानम्। इन्द्र। तस्थुषः॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 35
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ– হে (শূর) নির্ভয় (ইন্দ্র) সভাপতে (অদুগ্ধা ইব) দুগ্ধ বিনা (ধেনবঃ) গাভিদের সমান আমরা (অস্য) এই (জগতঃ) চর তথা (তস্থুষঃ) অচর সংসারের (ঈশানম্) নিয়ন্তা (স্বদৃর্শম্) সুখপূর্বক দেখিবার যোগ্য ঈশ্বর তুল্য (ঈশানম্) সমর্থ (ত্বা) আপনাকে (অভি, নোনুমঃ) সম্মুখ হইতে সৎকার বা প্রশংসা করি ॥ ৩৫ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ– এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । হে রাজন্! আপনি পক্ষপাত ত্যাগ করিয়া ঈশ্বর তুল্য ন্যায়াধীশ হউন । কদাচিৎ আমরা করও না দিলে তবুও আমাদিগের রক্ষা করুন । আপনার অনুকূল আমরা সর্বদা থাকিব ॥ ৩৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒ভি ত্বা॑ শূর নোনু॒মোऽদু॑গ্ধাऽ ইব ধেনবঃ॑ ।
    ঈশা॑নম॒স্য জগ॑তঃ স্ব॒দৃর্শ॒মীশা॑নমিন্দ্র ত॒স্থুষঃ॑ ॥ ৩৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অভি ত্বেত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । স্বরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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