Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 32/ मन्त्र 7
    ऋषिः - स्वयम्भु ब्रह्म ऋषिः देवता - परमात्मा देवता छन्दः - निचृच्छक्वरी स्वरः - धैवतः
    0

    यं क्रन्द॑सी॒ऽ अव॑सा तस्तभा॒नेऽ अ॒भ्यैक्षे॑तां॒ मन॑सा॒ रेज॑माने। यत्राधि॒ सूर॒ऽ उदि॑तो वि॒भाति॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम। आपो॑ ह॒ यद् बृ॑ह॒तीर्यश्चि॒दापः॑॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम्। क्रन्द॑सी॒ऽइति क्रन्द॑सी। अव॑सा। त॒स्त॒भा॒ने इति॑ तस्तऽभा॒ने। अ॒भि। ऐक्षे॑ताम्। मन॑सा। रेज॑माने॒ऽइति॒ रेज॑माने ॥ यत्र॑। अधि॑। सूरः॑। उदि॑त॒ इत्युत्ऽइ॑तः। वि॒भाती॑ति वि॒ऽभाति॑। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒। आपः॑। ह॒। यत्। बृ॒ह॒तीः। यः। चि॒त्। आपः॑ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यङ्क्रन्दसीऽअवसा तस्तभानेऽअभ्ऐक्षेताम्मनसा रेजमाने । यत्राधि सूरऽउदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम । आपो ह यद्बृहतीर्यश्चिदापः॥ गलित मन्त्रः आपो ह यद्बृहतीर्विश्वमायन्गर्भन्दधाना जनयन्तीरग्निम् । ततो देवानाँ समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षन्दधाना जनयन्तीर्यज्ञम् । यो देवेष्वधि देवऽएकऽआसीत्कस्मै देवाय हविषा विधेम॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यम्। क्रन्दसीऽइति क्रन्दसी। अवसा। तस्तभाने इति तस्तऽभाने। अभि। ऐक्षेताम्। मनसा। रेजमानेऽइति रेजमाने॥ यत्र। अधि। सूरः। उदित इत्युत्ऽइतः। विभातीति विऽभाति। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम। आपः। ह। यत्। बृहतीः। यः। चित्। आपः॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 32; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (য়ম্) যে পরমাত্মাকে প্রাপ্ত অর্থাৎ তাহার অধিকারে নিবাসকারী (তস্তভানে) সকলকে ধারণকারী (রেজমানে) চলায়মান (ক্রন্দসী) স্বগুণ দ্বারা প্রশংসা করিবার যোগ্য সূর্য্য ও পৃথিবী লোক (অবসা) রক্ষাদি দ্বারা সকলকে ধারণ করে, (য়ত্র) যে ঈশ্বরে (সূরঃ) সূর্য্য লোক (অধি, উদিতঃ) অধিকতর উদয়কে প্রাপ্ত হইয়াছে (য়ৎ) যাহা (বৃহতীঃ) বৃহৎ (আপঃ) ব্যাপ্ত জল (হ)(য়ঃ) এবং যা কিছু (চিৎ)(আপঃ) আকাশ, তাহাকেও (বিভাতি) বিশেষ করিয়া প্রকাশিত করতঃ প্রকাশক হয়, সেই ঈশ্বরকে অধ্যাপক ও উপদেশক (মনসা) বিজ্ঞান দ্বারা (অভি, ঐক্ষেতাম্) আভিমুখ্য করিয়া দেখে, সেই (কস্মৈ) সুখসাধক (দেবায়) শুদ্ধস্বরূপ পরমাত্মার জন্য (হবিষা) গ্রহণীয় যোগাভ্যাস দ্বারা আমরা (বিধেম) সেবা করিয়া থাকি, তাহাকে তোমরাও ভজনা কর ॥ ৭ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যে সকল দিক দিয়া ব্যাপক পরমেশ্বরে সূর্য্য, পৃথিবী আদি লোক ভ্রমণ করিতে দেখে, যিনি প্রাণ ও আকাশকেও ব্যাপ্ত করিয়াছেন সেই স্বীয় আত্মায় স্থিত ঈশ্বরের তোমরা উপাসনা কর ॥ ৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়ং ক্রন্দ॑সী॒ऽ অব॑সা তস্তভা॒নেऽ অ॒ভ্যৈক্ষে॑তাং॒ মন॑সা॒ রেজ॑মানে ।
    য়ত্রাধি॒ সূর॒ऽ উদি॑তো বি॒ভাতি॒ কস্মৈ॑ দে॒বায়॑ হ॒বিষা॑ বিধেম ।
    আপো॑ হ॒ য়দ্ বৃ॑হ॒তীর্য়শ্চি॒দাপঃ॑ ॥ ৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়ং ক্রন্দসীত্যস্য স্বয়ম্ভু ব্রহ্ম ঋষিঃ । পরমাত্মা দেবতা । নিচৃচ্ছক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top