ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 15/ मन्त्र 8
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒तमु॒ त्यं दश॒ क्षिपो॑ मृ॒जन्ति॑ स॒प्त धी॒तय॑: । स्वा॒यु॒धं म॒दिन्त॑मम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तम् । ऊँ॒ इति॑ । त्यम् । दश॑ । क्षिपः॑ । मृ॒जन्ति॑ । स॒प्त । धी॒तयः॑ । सु॒ऽआ॒यु॒धम् । म॒दिन्ऽत॑मम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतमु त्यं दश क्षिपो मृजन्ति सप्त धीतय: । स्वायुधं मदिन्तमम् ॥
स्वर रहित पद पाठएतम् । ऊँ इति । त्यम् । दश । क्षिपः । मृजन्ति । सप्त । धीतयः । सुऽआयुधम् । मदिन्ऽतमम् ॥ ९.१५.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 15; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
विषय - श क्षिपो मृजन्ति
पदार्थ -
[१] (एतम्) = इस (त्यम्) = प्रसिद्ध सोम को (उ) = निश्चय से (दश क्षिपः) = दस विषय-वासनाओं को अपने से परे फेंकनेवाली इन्द्रियाँ तथा (सप्त धीतयः) = सात ध्यान वृत्तियाँ 'कर्णाविमो नासिके चक्षणी मुखम् ' दो कानों, दो नासिका छिद्रों, दो आँखों व मुख से होनेवाली प्रभु की उपासनायें (मृजन्ति) = शुद्ध करती हैं । अर्थात् सोम को शुद्ध रखने के लिये आवश्यक है कि हम इन्द्रियों को विषय प्रवण न होने दें और कान - आँख आदि को प्रभु के ध्यान में लगाने का प्रयत्न करें। [२] यह सुरक्षित सोम ('स्वायुधं') = उत्तम आयुध है। यह हमें रोगों से व वासनाओं से संग्राम में विजयी बनाता है । (मदिन्तमम्) = हमारे अतिशयित हर्ष का यह कारण बनता है। हमें उल्लास को प्राप्त कराता है ।
भावार्थ - भावार्थ - 'इन्द्रियों को विषय प्रवणता से रोकना व प्रभु ध्यान में लगाना' ही सोमरक्षण का साधन है । यह रक्षित सोम हमारा शत्रु संहार के लिये उत्तम आयुध बनता है और हमारे हर्ष व उल्लास का कारण होता है। अगले सूक्त में भी इसी विषय को कहते हैं-
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