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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 5
    ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    स॒वि॒ता ते॒ शरी॑राणि मा॒तुरु॒पस्थ॒ऽआ व॑पतु।तस्मै॑ पृथिवि॒ शं भ॑व॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता। ते॒। शरी॑राणि। मा॒तुः। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒प॑ऽस्थे॑। आ। व॒प॒तु॒ ॥ तस्मै॑। पृ॒थि॒वि॒। शम्। भ॒व॒ ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता ते शरीराणि मातुरुपस्थ आ वपतु । तस्मै पृथिवि शम्भव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सविता। ते। शरीराणि। मातुः। उपस्थ इत्युपऽस्थे। आ। वपतु॥ तस्मै। पृथिवि। शम्। भव॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -
    जब हम पिछले मन्त्र के अनुसार जीवन बिताने का प्रयत्न करते हैं तब हमारा जीवन बड़ा सुन्दर व शान्त बनता है। प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि (सविता) = सूर्य (ते) = तेरे (शरीराणि) = 'स्थूल, सूक्ष्म व कारण' सभी शरीरों को (मातुः) = इस पृथिवी माता की [ भूमिमाता पृत्रोऽहं पृथिव्या: 'भूमि माता है और मैं इस पृथिवी का पुत्र हूँ - अथर्व०] (उपस्थे) = गोद में (आवपतु) = ठीक ढंग से स्थापित करे [Fit in instill = वप् ] और हे (पृथिवि) = मातृस्थानापन्न भूमे ! (तस्मै) = उस सूर्य द्वारा तुझमें स्थापति पुरुष के लिए तू (शम् भव) = शान्ति देनेवाली हो। सूर्य के द्वारा रोगकृमियों का संहार होकर स्थूलशरीर नीरोग बनता है। स्वास्थ्य के ठीक होने पर मन की प्रसन्नता उत्पन्न होती है, मन की प्रसन्नता से मस्तिष्क ठीक काम करता है। इस प्रकार यह सूर्य सूक्ष्मशरीर का स्वास्थ्य देता है। आनन्दमयता की उत्पत्ति से कारणशरीर तो ठीक हो ही जाता है, स्थूल व सूक्ष्मशरीर भी अधिक स्वस्थ हो जाते हैं और उस समय हमें सच्ची शान्ति प्राप्त होती है।

    भावार्थ - भावार्थ- सूर्य किरणों के सम्पर्क से हमारे सब शरीर प्रफुल्लित हों और हमें शान्ति प्राप्त हो ।

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