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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1127
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣भि꣢ प्रि꣣यं꣢ दि꣣व꣢स्प꣣द꣡म꣢ध्व꣣र्यु꣢भि꣣र्गु꣡हा꣢ हि꣣त꣢म् । सू꣡रः꣢ पश्यति꣣ च꣡क्ष꣢सा ॥११२७॥

स्वर सहित पद पाठ

अभि꣢ । प्रि꣡य꣢म् । दि꣣वः꣢ । प꣣द꣢म् । अ꣣ध्वर्यु꣡भिः꣢ । गु꣡हा꣢꣯ । हि꣣त꣢म् । सू꣡रः꣢꣯ । प꣣श्यति । च꣡क्ष꣢꣯सा ॥११२७॥


स्वर रहित मन्त्र

अभि प्रियं दिवस्पदमध्वर्युभिर्गुहा हितम् । सूरः पश्यति चक्षसा ॥११२७॥


स्वर रहित पद पाठ

अभि । प्रियम् । दिवः । पदम् । अध्वर्युभिः । गुहा । हितम् । सूरः । पश्यति । चक्षसा ॥११२७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1127
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
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पदार्थ -

(सूरः) = विद्वान् (चक्षसा) = ज्ञान की दृष्टि से (अभिपश्यति) = अन्दर और बाहर देखता हुआ अनुभव करता है कि ('तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः') वे प्रभु इस शरीर के अन्दर भी हैं और ब्रह्माण्ड के सब पदार्थों में भी हैं। उनकी महिमा शरीर में भी अनुभव होती है और सूर्य-चन्द्रनक्षत्रादि में भी। किस प्रभु की ? १. (प्रियम्) = जो प्रभु तृप्त करनेवाले हैं और अत्यन्त कान्ति-सम्पन्न हैं । संसार का कोई भी पदार्थ अनन्त तृप्ति नहीं दे पाता। प्रभु का दर्शन ही उस अविनश्वर तृप्ति का देनेवाला है, २. (दिवस्पदम्) = वे प्रभु सम्पूर्ण ज्योति का आधार है। सूर्यादि उसी की ज्योति से चमक रहे हैं, ३. (अध्वर्युभिः) = हिंसारहित जीवनवाले लोगों से वह प्रभु (गुहा हितम्) = बुद्धिरूपी गुहा में निहित होते हैं। हम अपना जीवन हिंसाशून्य बनाते हैं तो हमारी बुद्धि निर्मल होकर प्रभु का आभास पाती है। 

भावार्थ -

भावार्थ - प्रभु का दर्शन ज्ञानी ही करता है ।
 

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