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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 27
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यो नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता धामा॑नि॒ वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। यो दे॒वानां॑ नाम॒धाऽएक॑ऽए॒व तꣳ स॑म्प्र॒श्नं भुव॑ना यन्त्य॒न्या॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। नः॒। पि॒ता। ज॒नि॒ता। यः। वि॒धा॒तेति॑ विऽधा॒ता। धामा॑नि। वेद॑। भुव॑नानि। विश्वा॑। यः। दे॒वाना॑म्। ना॒म॒धा इति॑ नाम॒ऽधाः। एकः॑। ए॒व। तम्। स॒म्प्र॒श्नमिति॑ सम्ऽप्र॒श्नम्। भुव॑ना। य॒न्ति॒। अ॒न्या ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा । यो देवानान्नामधाऽएक एव तँ सम्प्रश्नम्भुवना यन्त्यन्या ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। नः। पिता। जनिता। यः। विधातेति विऽधाता। धामानि। वेद। भुवनानि। विश्वा। यः। देवानाम्। नामधा इति नामऽधाः। एकः। एव। तम्। सम्प्रश्नमिति सम्ऽप्रश्नम्। भुवना। यन्ति। अन्या॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 27
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( यः ) = जो परमेश्वर ( नः पिता ) = हम सबका पालन करनेवाला ( जनिता ) = जनक ( यः विधाता ) = जो सब सुख और मुक्ति सुख का भी सिद्ध करनेवाना है ( विश्वा भुवनानि ) =  सब लोक लोकान्तरों तथा ( धामानि ) = स्थिति के स्थानों का ( वेद ) = जानता है। ( य: देवानाम् ) = जो भगवान् दिव्य शक्तिवाले सूर्य, चन्द्र, अग्नि आदि देवों के ( नामधा ) = नामों का धारण कर रहा है वह ( एकः एव ) = एक ही अद्वितीय परमात्मा है। ( तम् सम्प्रश्नम् ) = उसी जानने योग्य परमेश्वर को आश्रय करके ( अन्या भुवना यन्ति ) = अन्य सब लोक लोकान्तर गति कर रहे हैं।

    भावार्थ -

    भावार्थ = जो परमेश्वर, हम सबका रक्षक, जनक और हमारे सब कर्मों का फलप्रदाता है, वही भगवान्, सब लोक लोकान्तरों का ज्ञाता और अग्रि, वायु, सूर्य, चन्द्र, वरुण, मित्र, वसु, यम, विष्णु, बृहस्पति, प्रजापति आदि दिव्य, देवों के नामों को धारण करनेवाला एक ही अद्वितीय अनुपम परमात्मा है, उसी परमात्मा के आश्रित होकर, अन्य सब लोक गतिशील हो रहे हैं । दुर्लभ मानवदेह को प्राप्त हो कर, इसी परमात्मा की जिज्ञासा करनी चाहिए । इसी के ज्ञान से मनुष्य देह सफल होगी अन्यथा नहीं।

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