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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 91
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - यज्ञपुरुषो देवता छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    च॒त्वारि॒ शृङ्गा॒ त्रयो॑ऽअस्य॒ पादा॒ द्वे शी॒र्षे स॒प्त हस्ता॑सोऽअस्य। त्रिधा॑ ब॒द्धो वृ॑ष॒भो रो॑रवीति म॒हो दे॒वो मर्त्याँ॒ २ऽआवि॑वेश॥९१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    च॒त्वारि॑। शृङ्गा॑। त्रयः॑। अस्य॑। पादाः॑। द्वेऽइति॒ द्वे। शी॒र्षेऽइति॑ शी॒र्षे। स॒प्त। हस्ता॑सः। अ॒स्य॒। त्रिधा॑। ब॒द्धः। वृ॒ष॒भः। रो॒र॒वी॒ति॒। म॒हः। दे॒वः। मर्त्या॑न्। आ। वि॒वे॒श॒ ॥९१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चत्वारि शृङ्गा त्रयोऽअस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासोऽअस्य । त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याँऽआ विवेश ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    चत्वारि। शृङ्गा। त्रयः। अस्य। पादाः। द्वेऽइति द्वे। शीर्षेऽइति शीर्षे। सप्त। हस्तासः। अस्य। त्रिधा। बद्धः। वृषभः। रोरवीति। महः। देवः। मर्त्यान्। आ। विवेश॥९१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 91
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( चत्वारि शृङ्गा ) = चार दिशाएँ सींगवत्  ( त्रयः अस्य ) = तीन इसके  ( पादाः ) = चरण हैं तीन काल अथवा तीन भुवन चरण के समान हैं।  ( द्वे शीर्षे ) = पृथ्वी और द्युलोक दोनों शिर हैं ।  ( अस्य सप्त हस्तास: ) = महत् अहंकार और पाँच भूत ये सात इस भगवान् के हाथ हैं ।  ( त्रिधा बद्धः ) = सत् चित् आनन्द इन तीन स्वरूपों में बद्ध है, वह  ( वृषभ: ) = सब सुखों की वर्षा करनेवाला और सारे जगत् को उठानेवाला  ( रोरवीति ) = वेद ज्ञान का उपदेश कर रहा है, वह  ( महः देवः ) = महादेव  ( मर्त्यान् आविवेश ) = मरण धर्मा मनुष्यों और विनश्वर सब पदार्थों में भी व्यापक है। 

    भावार्थ -

    भावार्थ = इस मन्त्र में अलङ्कार से परमात्मा का कथन है। जैसे कोई ऐसा बैल हो जिसके चार सींग, तीन पाँव, दो सिर, सात हाथ, तीन प्रकार से बंधा हुआ बार-बार बोलता हो, ऐसे बैल की उपमा से प्रभु के स्वरूप का निरूपण किया है। चार दिशाएँ सींगवत् तीन काल वा तीन भुवन पादवत्, पृथिवी और द्युलोक दोनों शिरवत् महत्तत्त्व, अहङ्कार, पाँच भूत ये सात प्रभु के हाथवत् हैं,सत्, चित् आनन्द ( इन तीन) स्वरूप से विराजमान, सब सुखों की वर्षा करनेवाला, वेद ज्ञान का सदा उपदेश कर रहा है । वह महादेव, मरणधर्मा मनुष्यों और सब नश्वर पदार्थों में व्यापक है, ऐसे प्रभु को जानना चाहिये ।

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