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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 24
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - ब्राह्मी जगती,याजुषी पङ्क्ति, स्वरः - निषादः, पञ्चमः
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    ए॒ष ते॑ गाय॒त्रो भा॒गऽइति॑ मे॒ सोमा॑य ब्रूतादे॒ष ते॒ त्रैष्टु॑भो भा॒गऽइति॑ मे॒ सोमा॑य ब्रूतादे॒ष ते॒ जाग॑तो भा॒गऽइति॑ मे॒ सोमा॑य ब्रूताच्छन्दोना॒माना॒ सा॑म्राज्यङ्ग॒च्छेति॑ मे॒ सोमा॑य ब्रूतादास्मा॒कोऽसि शु॒क्रस्ते॒ ग्रह्यो॑ वि॒चित॑स्त्वा॒ विचि॑न्वन्तु॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः। ते॒। गा॒य॒त्रः। भा॒गः। इति॑। मे॒। सोमा॑य। ब्रू॒ता॒त्। ए॒षः। ते॒। त्रैष्टु॑भः। त्रैस्तु॑भ॒ इति त्रैऽस्तु॑भः। भा॒गः। इति॑। मे॒। सोमा॑य। ब्रू॒ता॒त्। ए॒षः। ते॒। जाग॑तः। भा॒गः। इति॑। मे॒। सोमा॑य। ब्रू॒ता॒त्। छ॒न्दो॒ना॒माना॒मिति॑ छन्दःऽना॒माना॑म्। साम्रा॑ज्य॒मिति॒ साम्ऽरा॑ज्यम्। ग॒च्छ॒। इति॑। मे॒। सोमा॑य। ब्रू॒ता॒त्। आ॒स्मा॒कः। अ॒सि॒। शु॒क्रः। ते॒। ग्रह्यः॑। वि॒चित॒ इति॑ वि॒ऽचितः॑। त्वा॒। वि। चि॒न्व॒न्तु॒ ॥२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष ते गायत्रो भाग इति मे सोमाय ब्रूतादेष ते त्रैष्टुभो भाग इति मे सोमाय ब्रूतादेष ते जागतो भाग इति मे सोमाय ब्रूताच्छन्दोनामानाँ साम्राज्यङ्गच्छेति मे सोमाय ब्रूतादास्माकोसि शुक्रस्ते ग्रह्यो विचितस्त्वा विचिन्वन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः। ते। गायत्रः। भागः। इति। मे। सोमाय। ब्रूतात्। एषः। ते। त्रैष्टुभः। त्रैस्तुभ इति त्रैऽस्तुभः। भागः। इति। मे। सोमाय। ब्रूतात। एषः। ते। जागतः। भागः। इति। मे। सोमाय। ब्रूतात्। छन्दोनामानामिति छन्दःऽनामानाम्। साम्राज्यमिति साम्ऽराज्यम्। गच्छ। इति। मे। सोमाय। बूतात्। आस्माकः। असि। शुक्रः। ते। ग्रह्यः। विचित इति विऽचितः। त्वा। वि। चिन्वन्तु॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 24
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    भावार्थ -

     राजा को अधिकार प्रदान । हे विद्वन् मण्डल ! ( मे सोमाय ) सबके प्रेरक मुझ सोम को ( इति ब्रूतात् ) इस प्रकार स्पष्ट करके बतलाओ कि ( एषः ते गायत्रो भागः ) हे राजन् ! तेरा यह गायत्र = ब्राह्मणों का भाग है। इसी प्रकार ( मे सोमाय इति ब्रूतात् ) मुझ राजा को यह बतलाओ 
    कि ( एष ते त्रैष्टुभो भागः ) त्रैष्टुभ अर्थात् छात्रबल सम्बन्धी यह तेरा भाग है और ( एषः ते जागतो भागः ) यह इतना वैश्य सम्बन्धी तेरा भाग है और मुझ सोम राजा को यह आज्ञा दो कि ( छन्दो- नामानां ) छन्द = प्रजाके पालन और दुष्टों के दमन के समस्त उपायों के ( साम्राज्यम् ) समस्त राजाओं के ऊपर सर्वोपरि विराजमान महाराज के पद को तू ( गच्छ इति ) प्राप्त हो । अथवा प्रत्येक प्रजा के प्रतिनिधि अपना कर या अंश देते हुए बीच के प्रधान पुरुष से कहें, ( इति ) यह ( मे ) मेरा वचन ( सोमाय ब्रूतात् ) सोम राजा को कहो कि हे राजन् (एष ते गायत्रो भागः )ब्राह्मणों की तरफ से यह तेरा सेवनीय अंश है । ( एष ते त्रैष्टुभो भागः ) यह तेरा क्षत्रियों की तरफ से अंश है। (एष ते जागतो भागः ) यह वैश्यों की ओर से तेरा भाग है । ( छन्दो नामानाम् ) छन्द अर्थात् समस्त राष्ट्र के अधिकार पदों और नाम अर्थात् नमन करने के अधिकारों में से सबसे ऊंचे साम्राज्य पदको तू प्राप्त हो । प्रजाजन कहे -हे राजन् ! तू ( अस्माक: असिः ) हमारा ही है । ( शुक्रः ) अति तेजस्वी शरीर में वीर्य के समान सभी राष्ट्र शरीर में तेजस्वी पदार्थ, एवं शासनपद और इसी प्रकार इन्द्र आदि सब अधिकार भी ( ते ग्रह्यः ) तुझे ही स्वीकार करने योग्य हैं और ( विचित: ) विशेष रूप से या विविध प्रकार से चुनने वाले ज्ञानी पुरुष भी ( वा ) तुमको ही ( विचिन्वन्तु ) विशेष रूप से आदर योग्य पद पर चुनें, वरण करके तुझ जैसे योग्य पुरुष को खोज खोज कर अपना राजा बनावें ॥ शतं ० ३।३।२।१-८॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

     लिंगोक्ताः , सोमो यज्ञो वा देवता । ( १ ) ब्राह्मी जगती । निषादः स्वरः ।
    ( २ ) याजूषी पंक्तिः । पञ्चमः स्वरः ॥

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