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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - द्विपदा साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    दे॒वो दे॒वेषु॑ दे॒वः प॒थो अ॑नक्ति॒ मध्वा॑ घृ॒तेन॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व: । दे॒वेषु॑ । दे॒व: । प॒थ: । अ॒न॒क्ति॒ । मध्वा॑ । घृ॒तेन॑ ॥२७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवो देवेषु देवः पथो अनक्ति मध्वा घृतेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देव: । देवेषु । देव: । पथ: । अनक्ति । मध्वा । घृतेन ॥२७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (देवेषु) समस्त दिव्यगुणयुक्त प्रकाशमान् पदार्थों में से (देवः) वह एकमात्र देव सबका प्रकाशक है। वह (देवः) परमदेव (मध्वा) अमृतमय आनन्द और (घृतेन) तेजः-प्रकाश से (पथः) समस्त मार्गों को (अनक्ति) प्रकाशित करता है। देखो० ऋ० १। १४२। ३ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। २ द्विपदा साम्नी भुरिगनुष्टुप्। ३ द्विपदा आर्ची बृहती। ४ द्विपदा साम्नी भुरिक् बृहती। ५ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ६ द्विपदा विराड् नाम गायत्री। ७ द्विपदा साम्नी बृहती। २-७ एकावसानाः। ८ संस्तार पंक्तिः। ९ षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा परातिजगती। १०-१२ परोष्णिहः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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