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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 147 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 147/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अग्निः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    बोधा॑ मे अ॒स्य वच॑सो यविष्ठ॒ मंहि॑ष्ठस्य॒ प्रभृ॑तस्य स्वधावः। पीय॑ति त्वो॒ अनु॑ त्वो गृणाति व॒न्दारु॑स्ते त॒न्वं॑ वन्दे अग्ने ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बोध॑ । मे॒ । अ॒स्य । वच॑सः । य॒वि॒ष्ठ॒ । मंहि॑ष्ठस्य । प्रऽभृ॑तस्य । स्व॒धा॒ऽवः॒ । पीय॑ति । त्वः॒ । अनु॑ । त्वः॒ । गृ॒णा॒ति॒ । व॒न्दारुः॑ । ते॒ । त॒न्व॑म् । व॒न्दे॒ । अ॒ग्ने॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बोधा मे अस्य वचसो यविष्ठ मंहिष्ठस्य प्रभृतस्य स्वधावः। पीयति त्वो अनु त्वो गृणाति वन्दारुस्ते तन्वं वन्दे अग्ने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बोध। मे। अस्य। वचसः। यविष्ठ। मंहिष्ठस्य। प्रऽभृतस्य। स्वधाऽवः। पीयति। त्वः। अनु। त्वः। गृणाति। वन्दारुः। ते। तन्वम्। वन्दे। अग्ने ॥ १.१४७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 147; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    उपदेश करने का प्रकार बतलाते हैं। [शिष्य] हे ( यविष्ठ ) अति तरुण ! प्रौढ़ ! विद्यासम्पन्न ! हे ( स्वधावः ) उत्तम अन्न को धारण करने वाले ! अथवा हे (स्वधावः) अपने आपको उत्तम रीति से वश करने वाली दमन शक्ति से सम्पन्न ! आप ( मे ) मुझको ( अस्य ) इस ( मंहिष्ठस्य ) अति उत्तम, दान योग्य, प्रशस्त, ( प्रभृतस्य ) उत्तम रीति से धारण करने योग्य, ( वचसः ) वचन, उपदेश को ( बोध ) ज्ञान कराओ । [ आचार्य ] हे शिष्य ! तू ( मे बोध ) मुझसे ज्ञान प्राप्त कर । इस प्रकार परस्पर प्रार्थना और आदेश के बाद (त्वः पीयति) एक तो ज्ञान कोरस के समान पान करता है (त्वः)दूसरा विद्वान्, गुरु (अनु गृणाति) उपदेश करता है । [ शिष्य ] हे (अग्ने) ज्ञानवन् ! मैं ( ते ) तेरी ( वन्दारुः ) स्तुति करने वाला, तेरा प्रिय शिष्य ( तं तन्वं वन्दे ) तेरे शरीर को अभिवादन करता हूं, चरणों में नमस्कार करता हूं । इस प्रकार शिष्य गुरु के चरणों में नमस्कार करे । अथवा—( त्वः पीयति ) एक ताड़ना करता है तो भी ( त्वः अनुगृणाति ) दूसरा उसके अनुकूल विद्याभ्यास करता है इस प्रकार ( दन्दारुः ) अभिवादन शील होकर मैं तेरे चरणों में वन्दना करूं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - दीर्घतमा ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ३, ४, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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