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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 605
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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अ꣣ग्नि꣡मी꣢डे पु꣣रो꣡हि꣢तं य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ दे꣣व꣢मृ꣣त्वि꣡ज꣢म् । हो꣡ता꣢रꣳ र꣣त्नधा꣡त꣢मम् ॥६०५॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣ग्नि꣢म् । ई꣣डे । पुरो꣡हि꣢तम् । पु꣣रः꣢ । हि꣣तम् । यज्ञ꣡स्य꣢ । दे꣣व꣢म् । ऋ꣣त्वि꣡ज꣢म् । हो꣡ता꣢꣯रम् । रत्नधा꣡त꣢मम् । र꣣त्न । धा꣡त꣢꣯मम् ॥६०५॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारꣳ रत्नधातमम् ॥६०५॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्निम् । ईडे । पुरोहितम् । पुरः । हितम् । यज्ञस्य । देवम् । ऋत्विजम् । होतारम् । रत्नधातमम् । रत्न । धातमम् ॥६०५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 605
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3;
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भावार्थ -

भा०  = ( यज्ञस्य देवम् ) = समस्त यज्ञों, उपासनाओं के उपास्य देव ( पुरोहितम् ) = प्रकाशमान, ज्ञानवान् पूज्य, साक्षी रूप से अन्धकार में दीपक के समान ज्ञान प्रकाश प्राप्त करने के लिये आगे मुख्य स्थान पर स्थापित ( ऋत्विजम् ) = ऋतुओं आदित्यों और प्राणों द्वारा पूजनीय, ( होतारं ) = सबको धारण करने और सब सुखों को प्रदान करनेहारे, सबके प्रतिपालक ( रत्नधातमम् ) = समस्त रमणीय पदार्थों को धारण करने वाले, ( अग्निम् ) = ज्ञानस्वरूप सबके अग्रणी, प्रकाशक परमात्मा की ( ईडे ) = स्तुति करता हूं। 

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

 

ऋषिः - मधुछन्दा:। 

 देवता - अग्नि:। 

छन्दः - गायत्री।

स्वरः - षड्जः

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