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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च गौपयाना लौपयाना वा
देवता - अग्निः
छन्दः - पूर्वार्द्धस्य साम्नी बृहत्युत्तरार्द्धस्य भुरिग्बृहती
स्वरः - मध्यमः
नो॑ बोधि श्रु॒धी हव॑मुरु॒ष्या णो॑ अघाय॒तः स॑मस्मात् ॥ तं त्वा॑ शोचिष्ठ दीदिवः सु॒म्नाय॑ नू॒नमी॑महे॒ सखि॑भ्यः ॥४॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । शो॒चि॒ष्ठ॒ । दी॒दि॒ऽवः॒ । सु॒म्नाय॑ । नू॒नम् । ई॒म॒हे॒ । सखि॑ऽभ्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णो अघायतः समस्मात् ॥ तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठसः। नः। बोधि। श्रुधि। हवम्। उरुष्य। नः। अघऽयतः। समस्मात्। तम्। त्वा। शोचिष्ठ। दीदिऽवः। सुम्नाय। नूनम्। ईमहे। सखिऽभ्यः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
পদার্থ -
তং ত্বা শোচিষ্ট দীদিবঃ সুম্নায় নূনমীমহে সখিভ্যঃ।।৮০।।
(ঋগ্বেদ ৫।২৪।৪)
পদার্থঃ হে (শোচিষ্ট) জ্যোতিস্বরূপ বা পবিত্রস্বরূপ পবিত্রতা দানকারী পরমাত্মা! (দীদিবঃ) প্রকাশমান, (তম্ ত্বা) সেই সর্বত্র প্রসিদ্ধ তোমার থেকে (সুম্নায়) নিজের সুখের নিমিত্ত এবং (সখিভ্যঃ) মিত্রদের জন্য (নূনম্) অবশ্য (ঈমহে) যাচঞা করি।
ভাবার্থ -
ভাবার্থঃ হে প্রকাশস্বরূপ প্রকাশদাতা জগদীশ! তোমার থেকে নিজের ও নিজ মিত্র ও বান্ধবের সুখের জন্য প্রার্থনা করছি। আমরা সবাই তোমার প্রিয় পুত্র, তোমার ভক্তিতে তৎপর হয়ে ইহজন্মে ও পরজন্মে সদা সুখী থাকব, আমাদের ওপর এইরূপ কৃপা করো।।৮০।।
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