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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 19
    ऋषिः - अवत्सार ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - जगती, स्वरः - निषादः
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    सं त्वम॑ग्ने॒ सूर्य॑स्य॒ वर्च्च॑सागथाः॒ समृषी॑णा स्तु॒तेन॑। सं प्रि॒येण॒ धाम्ना॒ सम॒हमायु॑षा॒ सं वर्च॑सा॒ सं प्र॒जया॒ संꣳरा॒यस्पोषे॑ण ग्मिषीय॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। त्वम्। अ॒ग्ने॒। सूर्य्य॑स्य। वर्च॑सा। अ॒ग॒थाः॒। सम्। ऋषी॑णाम्। स्तु॒तेन॑। सम्। प्रि॒येण॑। धाम्ना॑। सम्। अ॒हम्। आयु॑षा। सम्। वर्च॑सा। सम्। प्र॒जयेति॑ प्र॒ऽजया॑। सम्। रा॒यः। पोषे॑ण। ग्मि॒षी॒य॒ ॥१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सन्त्वमग्ने सूर्यस्य वर्चसागथाः समृषीणाँ स्तुतेन । सम्प्रियेण धाम्ना समहमायुषा सँवर्चसा सम्प्रजया सँ रायस्पोषेण ग्मिषीय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। त्वम्। अग्ने। सूर्य्यस्य। वर्चसा। अगथाः। सम्। ऋषीणाम्। स्तुतेन। सम्। प्रियेण। धाम्ना। सम्। अहम्। आयुषा। सम्। वर्चसा। सम्। प्रजयेति प्रऽजया। सम्। रायः। पोषेण। ग्मिषीय॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 19
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (अग्ने) परमेश्‍वरा, तूच आहेस की जो (सूर्यस्य) सर्वामधे प्राणरूपेण व्याप्त आहेस. (ऋषीणाम्) वेदमंत्रांच्या अर्थाचे मनन व व्याख्यान करणारे विद्वान ऋषी (संस्तुतेन) तुझ्या स्तुतीद्वारे (संप्रियेण) अत्यंत प्रेमभावनेन (संवर्चसा) विद्याध्ययन आणि प्रेरणा प्राप्त करण्यासाठी (धाम्ना) सुखदायक स्थान आणि (समायुधा) सुखी जीवन तसेच (संप्रजया) श्रेष्ठ संतती आणि राज्य प्राप्त करण्यासाठी (रायस्पोषेण) उत्तम समृद्धी, उपयोग आणि पोषण प्राप्त करण्यासाठी तुझी स्तुती करतात आणि तू त्यांची इच्छा-प्रार्थना पूर्ण करतोस. त्याप्रमाणे हे परमेशा, (अहम्) मी याज्ञिक वा तुझा उपासक सर्व सुखांचा (संग्मिषी) स्वामी वा अधिपती होईन, अशी कृपा कर. ॥1॥ दुसरा अर्थ - जो (अग्ने) भौतिक अग्नीवर उल्लेखलेल्या सर्व पदार्थ प्राप्त करण्यासाठी (समगथा:) साधन कारणीभूत होतो, त्या अग्नी पासून योग्य प्रकारे उपयोग घेत (अहम्) मी देखील सर्व इच्छित सुखांचा स्थायी (संग्मिधीत्व) होईन, असे व्हावे. ॥2॥ ॥19॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात श्‍लेषालंकार आहे. (त्यामुळे प्रसंगाप्रमाणे शब्दाचे दोन अर्थ घेता येतात) यात म्हटले आहे की माणसांनी ईश्‍वराज्ञेचे पालन आणि त्यानुकूल पुरूषार्थ-परिश्रम केल्यास ते वरील सुखांची प्राप्ती करू शकतात. त्याचप्रमाणे मनुष्य अग्नी आदी पदार्थांच्या संप्रयोगाद्वारे वर मंत्रात वर्णित सुख प्राप्त करू शकतात. ॥19॥

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