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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 161 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 161/ मन्त्र 12
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - ऋभवः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    स॒म्मील्य॒ यद्भुव॑ना प॒र्यस॑र्पत॒ क्व॑ स्वित्ता॒त्या पि॒तरा॑ व आसतुः। अश॑पत॒ यः क॒रस्नं॑ व आद॒दे यः प्राब्र॑वी॒त्प्रो तस्मा॑ अब्रवीतन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽमील्य॑ । यत् । भुव॑ना । प॒रि॒ऽअस॑र्पत । क्व॑ । स्वि॒त् । तात्या । पि॒तरा॑ । वः॒ । आ॒स॒तुः॒ । अश॑पत । यः । क॒रस्न॑म् । वः॒ । आ॒ऽद॒दे । यः । प्र । अब्र॑वीत् । प्रो इति॑ । तस्मै॑ । अ॒ब्र॒वी॒त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सम्मील्य यद्भुवना पर्यसर्पत क्व स्वित्तात्या पितरा व आसतुः। अशपत यः करस्नं व आददे यः प्राब्रवीत्प्रो तस्मा अब्रवीतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽमील्य। यत्। भुवना। परिऽअसर्पत। क्व। स्वित्। तात्या। पितरा। वः। आसतुः। अशपत। यः। करस्नम्। वः। आऽददे। यः। प्र। अब्रवीत्। प्रो इति। तस्मै। अब्रवीतन ॥ १.१६१.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 161; मन्त्र » 12
    अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे विद्यार्थिनो यूयं संमील्य यद्भुवना सन्ति तानि पर्य्यसर्पत तदा वस्तात्या पितरा क्व स्विदासतुर्निवसतः। यो वः करस्नमाददे यूयं यमशपत यो युष्मान् प्राब्रवीत् तस्मै प्रो अब्रवीतन ॥ १२ ॥

    पदार्थः

    (संमील्य) सम्यक् निमेषणं कृत्वा (यत्) यदा (भुवना) भुवनानि लोकान् (पर्यसर्पत) परितः सर्वतो विजानीत (क्व) कस्मिन् (स्वित्) प्रश्ने (तात्या) तस्मिन्नवसरे भवा। अत्र वाच्छन्दसीति तदव्ययात्त्यप्। (पितरा) जननी जनकश्च (विः) युष्माकम् (आसतुः) (अशपत) सत्यपराधे आकुश्यत (यः) (करस्नम्) बाहुम्। करस्नाविति बाहुना०। निघं० २। ४। (वः) युष्माकम् (आददे) गृह्णाति। अत्रात्मनेपदे तलोपः। (यः) आचार्यः (प्र) (अब्रवीत्) ब्रूयादुपदिशेत् (प्रो) प्रकृष्टार्थे (तस्मै) (अब्रवीतन) उपदिशेत ॥ १२ ॥

    भावार्थः

    यदाऽध्यापकानां समीपे विद्यार्थिन आगच्छेयुस्तदैते इदं प्रष्टव्याः। यूयं कुत्रत्या युष्माकं कुत्र निवासो मातापित्रोः किन्नाम किमध्येतुमिच्छथाखण्डितं ब्रह्मचर्यं करिष्यथ न वेत्यादि पृष्ट्वैतेभ्यो विद्याग्रहणाय ब्रह्मचर्यदीक्षां दद्युः शिष्याध्यापकानां निन्दामप्रियाचरणं च कदापि नैव कुर्य्युः ॥ १२ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे विद्यार्थिजनो ! तुम (संमील्य) आँखें मिलमिला के (यत्) जो (भुवना) भूमि आदि लोक हैं उनको (पर्यसर्पत) सब ओर से जानो, तब (वः) तुम्हारे (तात्या) उस समय होनेवाले (पितरा) माता-पिता अर्थात् विद्याऽध्ययन समय के माता-पिता (क्व) (स्वित्) कहीं (आसतुः) निरन्तर बसें (यः) और जो (वः) तुम्हारी (करस्नम्) भुजा को (आददे) पकड़ता है वा जिसको (अशपत) अपराध हुए पर कोशो, (यः) जो आचार्य तुमको (प्र, अब्रवीत्) उपदेश सुनावे (तस्मै) उसके लिये (प्रो, अब्रवीतन) प्रिय वचन बोलो ॥ १२ ॥

    भावार्थ

    जब पढ़ानेवालों के समीप विद्यार्थी आवें तब उनसे यह पूछना योग्य है कि तुम कहाँ के हो ? तुम्हारा निवास कहाँ है ? तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है ? क्या पढ़ना चाहते हो ? अखण्डित ब्रह्मचर्य करोगे वा न करोगे ? इत्यादि पूछ करके ही इनको विद्या ग्रहण करने के लिये ब्रह्मचर्य की शिक्षा देवें और शिष्य जन पढ़ानेवालों की निन्दा और उनके प्रतिकूल आचरण कभी न करें ॥ १२ ॥

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    विषय

    सूर्य-किरणों की महिमा

    पदार्थ

    १. हे [ऋभव:] सूर्य-किरणो! (यत्) = जब (भुवना) = सब भुवनों को (सम्मील्य) = मेघसमूहों से आच्छादित करके (पर्यसर्पत) = आप चारों ओर गति करती हो [ इन सूर्य किरणों से ही तो जलों के वाष्पीकरण द्वारा मेघ उत्पन्न होते हैं और सारे आकाश को आवृत कर लेते हैं, ] उस समय दिन-रात वर्षा होने पर (तात्या) = तत्कालीन (वः पितरः) = तुम्हारे पिता, अर्थात् सूर्य और चन्द्रमा (स्वित्) = भला (क्व आसतुः) = कहाँ होते हैं ? सूर्य-चन्द्र का तो दर्शन ही नहीं होता, न जाने ये कहाँ चले जाते हैं? २. हे सूर्य-किरणो! (यः) = जो भी (वः) = आपके (करस्नम्) = हाथ को (आददे) = पकड़ता है, अर्थात् जो भी आपको अपने घर में आने से रोकता है उसे आप अशपत शप्त कर देती हैं, नष्ट कर देती हैं। जिन घरों में सूर्य किरणों का प्रवेश नहीं हो पाता, वहाँ रोग उत्पन्न होकर नाश-ही- नाश होता है। ३. (यः) जो (प्र अब्रवीत्) = प्रकर्षेण आपके गुणों का स्तवन करता है (तस्मै) = उसके लिए (उ) = निश्चय से (प्र अब्रवीतन) = आप भी स्तवन करती हो, अर्थात् उसके जीवन को सुन्दर बना देती हो । सूर्य-किरणें मेघों को उत्पन्न करती हैं जिनसे सूर्य और चन्द्रमा भी ढक जाते हैं। सूर्य-किरणों को रोकनेवाले, उन्हें अपने घर में प्रविष्ट न होने देनेवाले व्यक्ति का नाश होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्य- किरणों का शंसन करनेवाला व्यक्ति इन सूर्य किरणों को अपने शरीर पर लेता है और ये सूर्य-किरणें उसके शरीर को नीरोग बनाती हैं ।

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    विषय

    विद्वानों, राष्ट्रवासियों को लाभप्रद उपदेश ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! हे विद्यार्थी जनो ! ( यत् ) जब ( सम्मील्य = संमिल्य) परस्पर प्रेम से मिल कर या ( संमील्य ) अच्छी प्रकार आंख खोल कर या सबको अच्छी प्रकार वस्त्र रक्षा आदि से आच्छादन कर ( भुवना ) समस्त प्राणियों और पदार्थों और पुत्रों को ( परि असर्पत ) प्राप्त होवो । (ता त्या) उस समय ( वः ) आप लोगों के ( पितरा ) माता पिता ( क्वस्वित् ) कहीं भी ( आसतुः ) रहें । इसकी चिन्ता मत करो । ( यः ) जो ( वः ) आप लोगों के ( करस्नं ) बाहु को ( आददे ) पकड़े, जो तुम्हारे क्रिया शक्ति पर प्रतिबन्ध लगावे ( तस्मै अशपत ) उसको तुम बुरा कहो और ( यः ) जो ( वः ) तुमारे लिये ( प्र अव्रीत् ) उत्तम रीति से उपदेश करे ( तस्मै ) उसके लिये हितकारी, ( प्र अब्रवीतन ) प्रिय वाणी बोला करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः– १ विराट् जगती ॥ ३, ५, ६, ८, १२ निचृज्जगती । ७, १० जगती च । ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४, १३ भुरिक् त्रिष्टुप् । ९ स्वराट् त्रिष्टुप । ११ त्रिष्टुप् । १४ स्वराट् पङ्क्तिः । चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा अध्यापकांजवळ विद्यार्थी येतील तेव्हा त्यांना विचारावे की तुम्ही कुठून आलात? तुमचे निवासस्थान कोणते? तुमच्या माता-पित्याचे नाव काय? काय शिकू इच्छिता? अखंड ब्रह्मचर्यपालन कराल की नाही? इत्यादी विचारून त्यांना विद्या ग्रहण करण्यासाठी ब्रह्मचर्याचे शिक्षण द्यावे व शिष्यांनीही अध्यापकांची निंदा व त्यांच्या प्रतिकूल आचरण कधी करू नये. ॥ १२ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Rbhus, experts of tempestuous action, join together with concentrated action, go round the worlds and know them, and take care where your progenitors then abide. Accost and face whoever holds up your hand, and thank and appreciate whoever approves your action with praise.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O students look around the world carefully. Tell us where your parents are Speak always sweet words to the Acharya (preceptor), who takes arms for your protection, even when you are cross with a person when he is guilty.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    When students approach the teachers, they (students) should be asked questions like, which part of the country you belong to ? Where do you live? What is the name of your father and mother ? What do you want to study? Will you observe complete Brahmacharya (continence) or not? Having got satisfactory answers, they should be initiated into Brahmacharya for the acquisition of knowledge. The pupils should never blame or censure their teachers, nor should they do anything that is not pleasing to their teachers.

    Foot Notes

    (पर्यंसर्यंत) परितः सर्वतो बिजानीत = Know from all sides. (करस्नम् ) बाहुमा करस्ना धिति बाहुनाम (N.G. 2.4 ) = Arms.

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