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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 92/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - उषाः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विश्वा॑नि दे॒वी भुव॑नाभि॒चक्ष्या॑ प्रती॒ची चक्षु॑रुर्वि॒या वि भा॑ति। विश्वं॑ जी॒वं च॒रसे॑ बो॒धय॑न्ती॒ विश्व॑स्य॒ वाच॑मविदन्मना॒योः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वा॑नि । दे॒वी । भुव॑ना । अ॒भि॒ऽचक्ष्य॑ । प्र॒ती॒ची । चक्षुः॑ । उ॒र्वि॒या । वि । भा॒ति॒ । विश्व॑म् । जी॒वम् । च॒रसे॑ । बो॒धय॑न्ती । विश्व॑स्य । वाच॑म् । अ॒वि॒द॒त् । म॒ना॒योः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वानि देवी भुवनाभिचक्ष्या प्रतीची चक्षुरुर्विया वि भाति। विश्वं जीवं चरसे बोधयन्ती विश्वस्य वाचमविदन्मनायोः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वानि। देवी। भुवना। अभिऽचक्ष्य। प्रतीची। चक्षुः। उर्विया। वि। भाति। विश्वम्। जीवम्। चरसे। बोधयन्ती। विश्वस्य। वाचम्। अविदत्। मनायोः ॥ १.९२.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 92; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः सा कीदृशीत्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    हे स्त्रि यथा प्रतीची चरसे विश्वं जीवं बोधयन्ती देव्युषा मनायोर्विश्वस्य वाचमविदत् विन्दति चक्षुरिव विश्वानि भुवनाभिचक्ष्योर्विया सह बिभाति तथा त्वं भव ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (विश्वानि) सर्वाणि (देवी) देदीप्यमाना (भुवना) लोकान् (अभिचक्ष्य) अभितः सर्वतः प्रकाश्य। अत्रान्येषामापि दृश्यत इति दीर्घः। (प्रतीची) प्रतीचीनं गच्छन्ती (चक्षुः) नेत्रवद्दर्शनहेतुः (उर्विया) उर्व्या पृथिव्या सह। अत्रोर्वी शब्दाट्टास्थाने डियाजादेशः। (वि) विविधार्थे (भाति) प्रकाशयते (विश्वम्) सर्वम् (जीवम्) जीवसमूहम् (चरसे) व्यवहर्तुं भोजयितुं वा (बोधयन्ती) चेतयन्ती (विश्वस्य) सर्वस्य प्राणिजातस्य (वाचम्) वाणीम् (अविदत्) (मनायोः) यो मान इवाचरति तस्य। अत्र मानशब्दस्य ह्रस्वत्वं पृषोदरादित्वात् ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सती स्त्री सर्वथा स्वपतिमानन्दयति तथैवोषाः समग्रं जगदानन्दयति ॥ ९ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसी है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे स्त्रि ! जैसे (प्रतीची) सूर्य की चाल से परे को ही जाती और (चरसे) व्यवहार करने वा सुख और दुःख भोगने के लिये (विश्वम्) सब (जीवम्) जीवों को (बोधयन्ती) चिताती हुई (देवी) प्रकाश को प्राप्त (उषाः) प्रातःसमय की वेला (मनायोः) मान के समान आचरण करनेवाले (विश्वस्य) जीवमात्र की (वाचम्) वाणी को (अविदत्) प्राप्त होती (चक्षुः) और आँखों के समान सब वस्तु के दिखाई पड़ने का निदान (विश्वानि) समस्त (भुवना) लोकों को (अभिचक्ष्य) सब प्रकार से प्रकाशित करती हुई (उर्विया) पृथिवी के साथ (बिभाति) अच्छे प्रकार प्रकाशित होती है, वैसी तू भी हो ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे उत्तम स्त्री सब प्रकार से अपने पति को आनन्दित करती है, वैसे प्रातःकाल की वेला समस्त जगत् को आनन्द देती है ॥ ९ ॥

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    विषय

    उषा द्वारा जागरण

    पदार्थ

    १. (देवी) = प्रकाशमयी - हृदयों में दिव्य गुणों को जन्म देनेवाली उषा (विश्वानि भुवना) = सब लोकों को (अभिचक्ष्या) = प्रकाशित करके (प्रतीची) = [प्रति अञ्च] प्रत्येक व्यक्ति की ओर जानेवाली (चक्षुः) = प्रकाशक आँख के समान (उर्विया विभाति) = खूब ही दीप्त होती है अथवा [उर्विया = उर्व्या - द०] इस पृथिवी के साथ सुशोभित होती है । इस प्रथिवी को अपनी शोभा से शोभायुक्त करती है । २. यह उषा (विश्वं जीवम्) = सब प्राणियों को (चरसे) = इधर - उधर विचरण के लिए (बोधयन्ती) = बोधयुक्त करती हुई है, सबको अपने - अपने कार्य में लगने के लिए जागरित कर देती है । ३. यह उषा (विश्वस्य) = सब (मनायोः) = विचारशील पुरुषों के (वाचम्) = स्तुतिवचनों को (अविदत्) = प्राप्त करती है । सब विचारशील पुरुष प्रातः उठकर प्रभु के उपासन व स्तवन में प्रवृत्त होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ = उषा का प्रकाश सबके लिए मार्ग दर्शन करता है । उषा सबको कार्यों में व्याप्त होने के लिए जगाती है और विचारशील पुरुष उषाः काल में प्रभुस्तवन में प्रवृत्त होते हैं ।

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    विषय

    उषा के वर्णन के साथ, उसके दृष्टान्त से उत्तम गृह-पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( देवी ) प्रकाशमान सूर्य की प्रभा जिस प्रकार ( विश्वानि भुवना अभिचक्ष्य ) समस्त लोकों को प्रकाशित करके ( प्रतीची ) पूर्व से पश्चिम को जाती हुई ( उर्विया चक्षुः ) बड़े भारी प्रकाशक तेज या सूर्य से ( विभाति ) विशेष रूप से प्रकाशित होती हैं । और ( विश्वं जीवं ) समस्त प्राणिमात्र को ( चरसे ) चलने फिरने और कार्य व्यवहार करने के लिये ( बोधयन्ती ) जगाती हुई ( विश्वस्य मनायोः ) समस्त चेतनावान्, मान या ज्ञान के इच्छुक पुरुष के ( वाचम् अविदत् ) वाणी को प्राप्त करती है उसी प्रकार ( देवी ) उत्तम गुणों से युक्त स्त्री ( विश्वानि भुवनानि ) समस्त लोकों, पदार्थों को ( उर्विया ) विशाल ज्ञान से युक्त ( चक्षुः ) चक्षु द्वारा ( अभिचक्ष्य ) साक्षात् करके (प्रतीची) साक्षात् सब के सन्मुख ( विभाति ) विशेष रूप से शोभा को प्राप्त होती है । वह ( विश्वं जीवं ) समस्त प्राणिमात्र को ( चरसे ) सत् कर्म के आचरण करने के लिये ( बोधयन्ती ) ज्ञान प्रदान करती हुई ( विश्वस्य मनायोः ) मान सत्कार या ज्ञान के इच्छुक समस्त विद्वान् मनुष्यों के ( वाचम् ) वाणी को ( अविदत् ) प्राप्त करे, विद्वानों का उपदेश ग्रहण किया करे । अध्यात्म में—वह ज्योतिष्मती ( प्रतीची ) साक्षात् आत्म तत्वमयी चिति शक्ति ज्ञानप्रकाशक चक्षु होकर प्रकाशित होती है। उत्तम पद को प्राप्त होने के लिये जीव को प्रबुद्ध, ज्ञानवान करती है और मननशील स्तुतिकर्त्ता की या ज्ञानमय परमेश्वर की वेदवाणी को प्राप्त करती है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, २ निचृज्जगती । ३ जगती । ४ विराड् जगती । ५, ७, १२ विराड् त्रिष्टुप् । ६, १२ निचृत्त्रिष्टुप् ८, ९ त्रिष्टुप् । ११ भुरिक्पंक्तिः । १३ निचृत्परोष्णिक् । १४, १५ विराट्परोष्णिक् । १६, १७, १८ उष्णिक् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उत्तम स्त्री सर्व प्रकारे आपल्या पतीला आनंदित करते तशी प्रातःकाळची वेळ संपूर्ण जगाला आनंद देते. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Dawn, brilliant daughter of light and heaven, eye of the eye, watching all the regions of the world, shines and moves to the west in relation to the earth, awakening all the forms of life to daily activities, speaking as if and inspiring the language of the people of thought and imagination.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Usha is told further in the 9th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O wife ! you should be like the bright Usha (dawn) who having lighted up the whole world, spreads, expanding with her radiance, towards the west arousing all living creatures to their labours; she obtains the speech of all endowed with thought. (As they begin to utter at her rise).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (देवी) देदीप्यमाना = Bright. (उर्विया) उर्जा पृथिव्या सह । अत्रोवींशब्दात् टास्थाने डियाजादेशः । (भाति) प्रकाशयते = Illuminates. उर्वीति पृथिवीनाम (निघ० १.१ )

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As a chaste woman always pleases her husband, in the same manner, Usha (dawn) delights the whole world.

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