ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 105/ मन्त्र 9
ऋषिः - कौत्सः सुमित्रो दुर्मित्रो वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराडुष्निक्
स्वरः - ऋषभः
ऊ॒र्ध्वा यत्ते॑ त्रे॒तिनी॒ भूद्य॒ज्ञस्य॑ धू॒र्षु सद्म॑न् । स॒जूर्नावं॒ स्वय॑शसं॒ सचा॒योः ॥
स्वर सहित पद पाठऊ॒र्ध्वा । यत् । ते॒ । त्रे॒तिनी॑ । भूत् । य॒ज्ञस्य॑ । धूः॒ऽसु । सद्म॑न् । स॒ऽजूः । नाव॑म् । स्वऽय॑शसम् । सचा॑ । आ॒योः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्ध्वा यत्ते त्रेतिनी भूद्यज्ञस्य धूर्षु सद्मन् । सजूर्नावं स्वयशसं सचायोः ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्ध्वा । यत् । ते । त्रेतिनी । भूत् । यज्ञस्य । धूःऽसु । सद्मन् । सऽजूः । नावम् । स्वऽयशसम् । सचा । आयोः ॥ १०.१०५.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 105; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ते) हे परमात्मन् ! तेरे (यत्) जिससे (यज्ञस्य) अध्यात्मयज्ञ की (त्रेतिनी) स्तुतिप्रार्थनोपासना (धूर्षु) तेरे धारण करनेवाले उपासकों में (सद्मन्) उनके हृदयसदन में (ऊर्ध्वा भूत्) उत्कृष्ट हो जाती है, (आयोः) उपासक जन की (स्वयशसं नावम्) स्वयशरूप नौका के समान संसार-सागर से तरानेवाली (सचा सजूः) समान प्रीतिकर है ॥९॥
भावार्थ
अध्यात्मयज्ञ की स्तुति, प्रार्थना, उपासना प्रक्रियात्रयी परमात्मा को धारण करनेवाले उपासकों के हृदय में उत्कृष्टरूप में बैठ जाती है, उपासक के लिए संसारसागर से पार जाने को नौका के समान है, जो उसका साथी हो जाती है ॥९॥
विषय
यज्ञाग्नि का उद्बोधन
पदार्थ
[१] (यत्) = जब (ते) = तेरी त्रेतिनी यज्ञ की तीनों अग्नियाँ [गार्हपत्य, आहवनीय व दक्षिणाग्नि] (यज्ञस्य) = यज्ञ के (सद्मन्) = गृह में (धूर्षु) = [धुर्= wealth] ऐश्वर्यों के निमित्त (ऊर्ध्वा भूत्) = ऊपर होती हैं, अग्निकुण्ड में समिद्ध होकर उद्गत ज्वालावाली होती हैं, तो उस समय (आयोः सचा) = गतिशील व्यक्तियों का सहायभूत तू औरों के साथ मिलकर चलनेवाला तू (स्वयशसम्) = आत्मा के यशोगानवाली (नावम्) = इस शरीरूप नाव को (सजूः) = प्रभु के साथ प्रीतिपूर्वक सेवन करनेवाला होता है। प्रभु का स्मरण करता है और इस शरीर को भवसागर से पार करने की साधनभूत नाव समझता है । [२] जो व्यक्ति इस शरीर को भवसागर के तरण के लिए साधनभूत नाव समझता है, वह यज्ञमय जीवनवाला होता है। यज्ञों को ही यह सब ऐश्वर्यों की प्राप्ति का साधन समझता है। 'यज्ञ इस लोक व परलोक दोनों के लिए हितकर हैं' ऐसा जानकर यह यज्ञों के द्वारा ही प्रभु का उपासन करता है। इस नाव पर प्रभु के साथ बैठने का भाव यह है कि यह उस यज्ञ नाव को प्रभु से ही चलाया जाता हुआ अनुभव करता है और उन यज्ञों का गर्व नहीं करता ।
भावार्थ
भावार्थ - यज्ञरूप नाव सब अशिवों से पार ले जाकर हमें शिव स्थान पर पहुँचानेवाली है।
विषय
मेघ से जलवर्षी अग्नि तत्त्ववत् मोक्षदाता, ज्ञानप्रकाशक, सर्वजीवनदाता प्रभु।
भावार्थ
(यत्) जो (ते) तेरी (यज्ञस्य) महान् यज्ञ की (त्रेतिनी) तीनों लोकों में व्यापक शक्ति (धूः सु) जगत् की धारक शक्तियों वा विद्युत् आदि में और (सद्मनि) सर्वाश्रय सूर्य में (भूत्) है, वह (आयोः) मनुष्य या जीवमात्र की (सचा) सहायक और (सजूः) समान रीति से सबको प्रेरणा देती है। उस (स्वयशसम्) स्वयं यशोरूप (नावम्) सबको सन्मार्ग में चलाने वाली शक्ति को हम प्राप्त करें और जानें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कौत्सः सुमित्रो दुर्मित्रो* वा॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १ पिपीलिकामध्या उष्णिक्। ३ भुरिगुष्णिक्। ४, १० निचृदुष्णिक्। ५, ६, ८, ९ विराडुष्णिक्। २ आर्ची स्वराडनुष्टुप्। ७ विराडनुष्टुप्। ११ त्रिष्टुप्॥ *नाम्ना दुर्मित्रो गुणतः सुमित्रो यद्वा नाम्ना सुमित्रो गुणतो दुर्मित्रः स ऋषिरिति सायणः।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ते) हे परमात्मन् ! तव (यत्) यतः (यज्ञस्य त्रेतिनी) अध्यात्मयज्ञस्य स्तुतिप्रार्थनोपासना (धूर्षु सद्मन्) त्वद्धारकेषूपासकेषु तेषां हृदये सदने (ऊर्ध्वा भूत्) उत्कृष्टा भवति (आयोः) उपासकजनस्य (स्वयशसं नावम्) स्वयशोरूपा नौरिव ‘प्रथमास्थाने द्वितीया व्यत्ययेन’ संसारसागरात्-तारयित्री (सचा सजूः) सह समानप्रीतिकरी भवति ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Your Trinity of divine glory and power rising with the flames of cosmic yajna, the Trinity of Purusha, Prakrti and Jiva, the soul, which pervades the threefold universe of Sattva, Rajas and Tamas, matter, energy and thought, which pervades the three worlds of heaven, earth and the skies, which activates divine stuti, prarthana and upasana (adoration, prayer and meditation) rising in the hearts of yajakas, and which perfumes the house of cosmic yajna in space, that is the ark, friend of humanity, with its own divine glory, and life companion of the human soul in the world of existence: that ark of life and divinity may we embark with the three-dimensional mantra of Rk, Sama and Yajus and cross the seas of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
अध्यात्मयज्ञाची स्तुती, प्रार्थना, उपासना प्रक्रियात्रयी परमात्म्याला धारण करणाऱ्या उपासकाच्या हृदयात उत्कृष्ट रूपात ठसलेली असते. ती उपासकासाठी संसार सागरातून पार पडण्यासाठी नौकेप्रमाणे असते. जी त्याची मित्र बनते. ॥९॥
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