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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 34/ मन्त्र 12
    ऋषिः - कवष ऐलूष अक्षो वा मौजवान् देवता - अक्षकृषिप्रशंसा छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो व॑: सेना॒नीर्म॑ह॒तो ग॒णस्य॒ राजा॒ व्रात॑स्य प्रथ॒मो ब॒भूव॑ । तस्मै॑ कृणोमि॒ न धना॑ रुणध्मि॒ दशा॒हं प्राची॒स्तदृ॒तं व॑दामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । वः॒ । से॒ना॒ऽनीः । म॒ह॒तः । ग॒णस्य॑ । राजा॑ । व्रात॑स्य । प्र॒थ॒मः । ब॒भूव॑ । तस्मै॑ । कृ॒णो॒मि॒ । न । धना॑ । रु॒ण॒ध्मि॒ । दश॑ । अ॒हम् । प्राचीः॑ । तत् । ऋ॒तम् । व॒दा॒मि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो व: सेनानीर्महतो गणस्य राजा व्रातस्य प्रथमो बभूव । तस्मै कृणोमि न धना रुणध्मि दशाहं प्राचीस्तदृतं वदामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । वः । सेनाऽनीः । महतः । गणस्य । राजा । व्रातस्य । प्रथमः । बभूव । तस्मै । कृणोमि । न । धना । रुणध्मि । दश । अहम् । प्राचीः । तत् । ऋतम् । वदामि ॥ १०.३४.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 34; मन्त्र » 12
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वः) हे जुआरियों ! तुम्हारे मध्य में (महतः-गणस्य व्रातस्य यः सेनानीः) महान् जुआरी-समूह का जो अग्रणी (प्रथमः-राजा बभूव) प्रमुख प्रसिद्ध पुरुष है, मेरे वचन को सुने (तस्मै धना न रुणध्मि) उस गण के लिये धन नहीं देता हूँ-नहीं खेलूँगा, यह सङ्कल्प हो गया (दश प्राचीः-अहम्-ऋतं वदामि) दश पूर्वादि दिशाओं को लक्ष्यकर सत्य घोषित करता हूँ अथवा दर्शक प्रजाओं को लक्ष्य कर सत्य घोषित करता हूँ ॥१२॥

    भावार्थ

    जब जुआ खेलने से पूर्ण ग्लानि हो जावे, तो जुआरियों के प्रमुख नेता को स्पष्ट कह दे कि मैं अब जुए में धन नहीं लगाऊँगा तथा खुले स्थान में सब दिशाओं की ओर देखते हुए और सब प्रजाओं के सामने अपने दृढ़ संकल्प की घोषणा कर दे कि अब जुआ नहीं खेलूँगा। इस प्रकार इस दुर्व्यसन से बचने का महान् उपाय है ॥१२॥

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    विषय

    सदा को लिये के प्रणाम जुए

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र में वर्णित कटु अनुभवों को लेने के बाद यह कितव जुए से अन्तिम बिदा लेते हुए कहता है कि हे पासो ! (यः) = जो (वः) = आपके इस (महतः गणस्य) = बड़े भारी समूह का (सेनानी:) = सेनापति (बभूव) = है अथवा (व्रातस्य) = तुम्हारे मण्डल का (प्रथमः राजा) = सबसे प्रधान शासक बभूव है (तस्मै) = उसके लिये (अहम्) = मैं (दश) = दोनों हाथों की इन १० अङ्गुलियों को (प्राची: कृणोमि) = आगे आनेवाली करता हूँ, अर्थात् मैं उसे बद्धाञ्जलि होकर प्रणाम करता हूँ, उसके आगे हाथ जोड़ता हूँ और स्पष्ट कहे देता हूँ कि आज के बाद मैं (धना) = अपने श्रमार्जित धनों को इस जुए के लिये (न रुणध्मि) = अपने से दूर रोकता नहीं हूँ, अर्थात् जुए में धन का व्यर्थ व्यय व नाश नहीं करता । तद् ऋतं वदामि मैं यह बात सत्य कह रहा हूँ । ये मेरा दृढनिश्चय है कि अब मैं जुआन खेला करूँगा। अपने धनों का रक्षण करूँगा और अपने घर की स्थिति को सुन्दर बनाऊँगा ।

    भावार्थ

    भावार्थ - जुए के न खेलना का निश्चय करना आवश्यक है। घर की उत्तम स्थिति इसी पर निर्भर करती है।

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    विषय

    सर्वश्रेष्ठ राजा का आदर।

    भावार्थ

    हे विद्वान जनो ! (वः महतः गणस्य) आप लोगों के गुणों में महान् पुरुषों के समूह का जो (सेनानाः) सेनानायक है और जो (प्रथमः राजा बभूव) सर्वश्रेष्ठ राजा है (तस्मै अहं दश प्राचीः कृणोमि) मैं उसके आदरार्थ दशों अंगुली आगे करता हूं, उसे नमस्कार करता हूं। अथवा, (तस्मैः दश प्राचीः कृणोमि) उसके लिये मैं प्रभु दशों दिशाओं को प्रचीदिशा के समान आगे बढ़ने वा उदय होने के लिये करता हूं। (न धना रुणध्मि) उसके लिये मैं धन भी रोक के नहीं रखता हूं। (तत् ऋतं वदामि) उसके लिये मैं ऋत अर्थात् न्यायानुसार वचन का उपदेश करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कवष ऐलुषोऽक्षो वा मौजवान् ऋषिः। देवताः- १, ७, ९, १२, १३ अक्षकृषिप्रशंसा। २–६, ८, १०, ११, १४ अक्षकितवनिन्दा। छन्द:- १, २, ८, १२, १३ त्रिष्टुप्। ३, ६, ११, १४ निचृत् त्रिष्टुप्। ४, ५, ९, १० विराट् त्रिष्टुप्। ७ जगती॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वः) हे कितवा द्यूतकारिणः ! युष्माकं मध्ये (महतः-गणस्य व्रातस्य यः सेनानीः प्रथमः राजा बभूव) महतः कितवगणस्य योऽग्रणीः कितव-समूहस्य प्रमुखो राजमानः पुरुषोऽस्ति मे वचनं शृणोतु (तस्मै धना न रुणध्मि) तस्मै युष्माकं गणाय व्राताय वा धनानि न स्थापयामि न क्रीडामि, इति संकल्पो जातः (दश प्राचीः-अहम्-ऋतं वदामि) अहं प्राच्याद्या दश दिशोऽभिलक्ष्य सत्यं घोषयामि यद्वा सम्मुखस्थिताः-दर्शकप्रजा अभिलक्ष्य सत्यं घोषयामि ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O dice, O gamblers, to that which is the first and foremost of you, the ruler of your mighty order and organisation, the leading warrior over all of you, my homage and salutation with farewell with folded hands and all the ten fingers, open all in front with the vow that I would lose no money any more, and this is the truth I speak. (The gambler shows his ten fingers, may be, because his hands are empty now.)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा जुगार खेळून पूर्ण ग्लानी येते. तेव्हा जुगारींच्या प्रमुख नेत्याने स्पष्ट सांगावे, की मी आता जुगारात धन घालविणार नाही व मोकळ्या स्थानी सर्व दिशांना पाहात सर्व प्रजेच्या समोर आपल्या दृढ संकल्पाची घोषणा करावी की यापुढे जुगार खेळणार नाही. या प्रकारे या दुर्व्यसनापासून दूर होण्याचा महान उपाय आहे. ॥१२॥

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