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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 42/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    किम॒ङ्ग त्वा॑ मघवन्भो॒जमा॑हुः शिशी॒हि मा॑ शिश॒यं त्वा॑ शृणोमि । अप्न॑स्वती॒ मम॒ धीर॑स्तु शक्र वसु॒विदं॒ भग॑मि॒न्द्रा भ॑रा नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम् । अ॒ङ्ग । त्वा॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । भो॒जम् । आ॒हुः॒ । शि॒शी॒हि । मा॒ । शि॒श॒यम् । त्वा॒ । शृ॒णो॒मि॒ । अप्न॑स्वती । मम॑ । धीः । अ॒स्तु॒ । श॒क्र॒ । व॒सु॒ऽविद॑म् । भग॑म् । इ॒न्द्र॒ । आ । भ॒र॒ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किमङ्ग त्वा मघवन्भोजमाहुः शिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि । अप्नस्वती मम धीरस्तु शक्र वसुविदं भगमिन्द्रा भरा नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    किम् । अङ्ग । त्वा । मघऽवन् । भोजम् । आहुः । शिशीहि । मा । शिशयम् । त्वा । शृणोमि । अप्नस्वती । मम । धीः । अस्तु । शक्र । वसुऽविदम् । भगम् । इन्द्र । आ । भर । नः ॥ १०.४२.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 42; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अङ्ग मघवन् शक्र-इन्द्र) हे अध्यात्मधनवाले सबको पालने में समर्थ परमात्मन् ! (किं त्वा भोजम्-आहुः) तुझे मेधावीजन भोगदाता कहते हैं (मा शिशीहि) मेरे प्रति-मेरे लिए अपना अध्यात्मधन-भोग दे (त्वा शिशयं शृणोमि) मैं तुझे देनेवाला सुनता हूँ (मम धीः-अप्नस्वती अस्तु) मेरी बुद्धि कर्मवाली-क्रियाशील हो (नः) हमारे लिए (वसुविदं भगम्-आ भर) समस्त धनों को प्राप्त करानेवाले अध्यात्म ऐश्वर्य को आभरित कर-मेरे अन्दर भर दे ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा सबका पालन करने में समर्थ है, वह अपनी कृपा से सबको यथायोग्य भोग देता है। विशेषतः उपासक को आध्यात्मिक ऐश्वर्य भी प्रदान करता है। उसकी उपासना करनी चाहिए ॥३॥

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    विषय

    'शिशयं', नकि 'भोज'

    पदार्थ

    [१] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! अंग सर्वव्यापक प्रभो ! सर्वत्र गतिशील प्रभो ! (त्वा) = आपको (किम्) = क्यों (भोजम्) = सब भोजनों को प्राप्त कराके पालन करनेवाला (आहुः) = कहते हैं? मैं तो भोजनों की प्रार्थना न करके यही चाहता हूँ कि आप (मा) = मुझे (शिशीहि) = तीक्ष्णा बुद्धिवाला कर दें। मैं (त्वा) = आपको (शिशयम्) = बुद्धि के तीव्र करनेवाले के रूप में (शृणोमि) = सुनता हूँ। [२] साथ ही हे (शक्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो! आपकी कृपा से (मम धी:) = मेरी यह बुद्धि (अप्नस्वती) = कर्मोंवाली (अस्तु) = हो । और हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! आप (नः) = हमारे लिये (वसुविदम्) = सब निवास के लिये आवश्यक तत्त्वों को प्राप्त करानेवाले (भगम्) = भजनीय धन को (आभरः) = सर्वथा प्राप्त कराइये । वस्तुतः प्रभु बुद्धि देकर मुझे इस योग्य बना दें कि मैं निवास के लिये आवश्यक तत्त्वों को जुटाने में समर्थ हो जाऊँ। मैं बुद्धिवाला होऊँ और मेरी बुद्धि कर्म से युक्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - भोजन की प्रार्थना के स्थान में क्रियायुक्त बुद्धि की प्रार्थना उत्तम है। हम प्रभु को शिशय के रूप में स्मरण करें, नकि भोज के रूप में।

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    विषय

    उत्तम पालक प्रभु। उससे ऐश्वर्य की याचना।

    भावार्थ

    (अङ्ग मघवन्) हे ऐश्वर्यवन् ! (त्वां किम् भोजम् आहुः) विद्वान् लोग तुझको सब का पालक क्यों कहते हैं ? तू (मा शिशीहि) मुझे तीक्ष्ण, कार्य करने में खूब उत्साहित और कुशल कर, वा मुझे शासन कर। (त्वा शिशयं शृणोमि) तुझे मैं अति तीक्ष्ण करने, उत्साह देने वाला उत्तम शासक सुनता हूँ। (मम धीः अप्नस्वती) मेरी बुद्धि कर्म करने वाली (अस्तु) हो। हे (शक्र) शक्तिशालिन् ! हे (इन्द्र) ऐश्वर्यप्रद ! (नः) हमें (वसुविदं भगं आ भर) उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त कराने वाला ऐश्वर्य प्राप्त करा। अध्यात्म में—वसु, आत्मा का ज्ञान कराने वाले सेव्य ज्ञान आदि का उपदेश कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः कृष्णः। इन्द्रो देवता॥ छन्द:–१, ३, ७-९, ११ त्रिष्टुप्। २, ५ निचृत् त्रिष्टुम्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ६, १० विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अङ्ग मघवन् शक्र-इन्द्र) हे अध्यात्मधनवन् सर्वपालने समर्थ परमात्मन् ! (किं त्वा भोजम्-आहुः) अहो ! त्वां भोजयितारं भोगदातारं विप्राः कथयन्ति (मा शिशीहि) मां प्रति-मह्यं तदध्यात्मधनं भोगं वा देहि “शिशीहि-शिशीतिर्दानकर्मा” [निरु० ५।२३] (त्वा शिशयं शृणोमि) अहमपि त्वां दातारं शृणोमि (मम धीः-अप्नस्वती-अस्तु) मम बुद्धिः कर्मवती कर्मपरायणा भवतु “अप्नः कर्मनाम” [निघ० २।१] (नः) अस्मभ्यम् (वसुविदं भगम्-आभर) समस्तधनानां प्रापयितारमध्यात्मैश्वर्यमाभरितं कुरु-देहि ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, mighty soul, dear as breath of life, grand and sublime, don’t they say you are the giver of all pleasure and glory of life? Pray bless me too with the wealth of light and grandeur. I hear you are the all omnificent lord. O Lord Almighty, refine and sharpen my vision and understanding to the efficiency of divine attainment. Indra, pray bring us glory and good fortune full of wealth, power and peace.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सर्वांचे पालन करण्यास समर्थ आहे. तो आपल्या कृपेने सर्वांना यथायोग्य भोग देतो. विशेषकरून उपासकाला आध्यात्मिक ऐश्वर्यही प्रदान करतो. त्याची उपासना केली पाहिजे. ॥३॥

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