ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 59/ मन्त्र 3
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - निर्ऋतिः
छन्दः - स्वराडार्चीत्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒भी ष्व१॒॑र्यः पौंस्यै॑र्भवेम॒ द्यौर्न भूमिं॑ गि॒रयो॒ नाज्रा॑न् । ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता चि॑केत परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । सु । अ॒र्यः । पौंस्यैः॑ । भ॒वे॒म॒ । द्यौः । न । भूमि॑म् । गि॒रयः॑ । न । अज्रा॑न् । ता । नः॒ । विश्वा॑नि । ज॒रि॒ता । चि॒के॒त॒ । प॒रा॒ऽत॒रम् । सु । निःऽऋ॑तिः । जि॒ही॒ता॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभी ष्व१र्यः पौंस्यैर्भवेम द्यौर्न भूमिं गिरयो नाज्रान् । ता नो विश्वानि जरिता चिकेत परातरं सु निॠतिर्जिहीताम् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । सु । अर्यः । पौंस्यैः । भवेम । द्यौः । न । भूमिम् । गिरयः । न । अज्रान् । ता । नः । विश्वानि । जरिता । चिकेत । पराऽतरम् । सु । निःऽऋतिः । जिहीताम् ॥ १०.५९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 59; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अर्यः) शत्रुओं को (पौंस्यैः-सु अभि भवेम) पुरुषार्थों के द्वारा सुगमता से स्वाधीन करें (द्यौः-न-भूमिम्) जैसे सूर्य पृथिवी को अपनी रश्मियों से तपाकर के स्वाधीन करता है (गिरयः-न-अज्रान्) या जैसे पर्वत गतिशील जलप्रवाहों को फेंकते हैं (नः-ता विश्वानि जरिता चिकेत) हमारे उन सब प्रयोजनों को जीर्ण-वृद्ध जानता है। आगे पूर्ववत् ॥३॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिए परस्पर संगठन करके विविध पुरुषार्थों के द्वारा शत्रुओं पर प्रभाव डालकर स्वाधीन करें। जैसे सूर्य तापक रश्मियों से पृथिवी को तपाता है या जैसे जलधाराओं को पर्वत नीचे फेंकता है, इस प्रयोजन के लिए अपने वृद्ध नेता के नेतृत्व में रहकर पुरुषार्थ करें, जिससे कृच्छ्र आपत्ति भी दूर रहे ॥३॥
विषय
शत्रु पर विजय करें और विद्वान् की मार्गदर्शिता में हम दुःख से मुक्त, सुखी हों।
भावार्थ
हम लोग (पौंस्यैः) नाना पौरुष कर्मों से (अर्यः सु अभि भवेम) शत्रुओं को अच्छी प्रकार पराजित करें, उनको कड़ी हार दें। (द्यौः भूमिम्) सूर्य जैसे पृथिवी को प्राप्त होता है और (गिरयः अज्रान् न) मेघ जिस प्रकार अपने प्रेरक वायुओं को प्राप्त करता और चलाता है उसी प्रकार (जरिता) हमारा विद्वान् उपदेष्टा (नः) हमें प्राप्त हो, हमें ज्ञान से प्रकाशित करे, सन्मार्ग में चलावे और (नः) हमें (विश्वानि ता) उन नाना प्रकार के पदार्थों को (चिकेत) स्वयं जाने और हमें बतलावे। इस प्रकार (निर्ऋतिः) कष्टदशा, दुःख दारिद्र्य आदि (परातरं सु जिहीताम्) खूब अच्छी प्रकार से दूर हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायनाः। देवता—१—३ निर्ऋतिः। ४ निर्ऋतिः सोमश्च। ५, ६ असुनीतिः। लिङ्गोक्ताः। ८, ९, १० द्यावापृथिव्यौ। १० द्यावापृथिव्याविन्द्रश्च॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप्। २, ४–६ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ७ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ८ भुरिक् पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
शक्ति
पदार्थ
[१] हे प्रभो! हम आपके सम्पर्क से प्राप्त (पौंस्यै:) = बलों से (अर्य:) = शत्रुओं को (सु) = अच्छी प्रकार (अभिभवेम) = अभिभूत कर लें। इस प्रकार अभिभूत कर लें (न) = जैसे कि (द्यौः) = द्युलोक (भूमिम्) = अपने प्रकाश से भूमि को अभिभूत-सा कर लेता है। सारी पृथिवी द्युलोक से प्राप्त होनेवाले प्रकाश से व्याप्त हो जाती है और चमक उठती है। हम शत्रुओं को इस प्रकार अभिभूत कर लें (न) = जैसे कि (गिरयः) [eloud]=मेघ (अज्रान्) [fiold] = खेतों को वृष्टिजल से अभिभूत कर देता है । मेघ वृष्टिजल के द्वारा खेतों को प्राप्त होता है, इसी प्रकार हम शक्ति के द्वारा शत्रुओं को प्राप्त हों । वृष्टिजल खेत को अभिभूत-सा कर लेता है, हम शत्रुओं को शक्ति से अभिभूत कर लें। [२] प्रभु कहते हैं कि (नः) = हमारी (ता विश्वानि) = उन सब शक्तियों को (जरिता) = स्तोता (चिकेत) = जाने, अपने जीवन में अनूदित करे। और परिणामतः (निर्ऋतिः) = दुर्गति (सु) = खूब ही (परातरम्) = दूर (जिहीताम्) = चली जाये । शक्तियों के द्वारा शत्रुओं का पराभव करते हुए हम उत्तम स्थिति को प्राप्त करें ।
भावार्थ
भावार्थ - शक्ति से शत्रु को अभिभूत करके हम दुर्गति से बच पायें ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अर्यः) अरीन् शत्रून् “अर्यः-अरयः” [ऋ० ७।३४।१८ दयानन्दः] (पौंस्यैः सुअभिभवेम) पुरुषार्थैः सुगमतया-अधिकुर्मः (द्यौः-न-भूमिम्) यथा सूर्यः पृथिवीं स्वरश्मिभिरभितप्तां कृत्वा (गिरयः-न-अज्रान्) पर्वता यथा गतिशीलान् जलप्रवाहान् प्रक्षिपन्ति (नः-ता विश्वानि जरिता चिकेत) नः-अस्माकं तानि विश्वानि प्रयोजनानि जीर्णो वृद्धो जानाति। अग्रे पूर्ववत् ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
As the sun overwhelms the earth, as thunder overwhelms the clouds and clouds overwhelm the fields with rain, so may we overwhelm the negativities and enemies of life and society with our natural and essential strength, virtues and achievements so that the poet, the singer, the senior, the assessor and the admirer may know, and want and adversity, fear and insecurity may fall off and disappear for good.
मराठी (1)
भावार्थ
जसा सूर्य तापक रश्मींद्वारे पृथ्वीला तापवितो किंवा जलधारांना पर्वताखाली फेकतो तसे माणसांनी परस्पर संगठन करून विविध पुरुषार्थाद्वारे शत्रूंना स्वाधीन करावे. या प्रयोजनासाठी आपल्या वृद्ध नेत्याच्या नेतृत्वाखाली राहून पुरुषार्थ करावा, ज्यामुळे कष्ट दूर व्हावेत. ॥३॥
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